राजनीति में अक्सर जीत उन लोगों की होती है जिनके पास बड़ा संगठन, मज़बूत संसाधन और पुराना अनुभव होता है। लेकिन कभी-कभार एक कहानी ऐसी भी जन्म लेती है जो इन सभी नियमों को तोड़ देती है एक ऐसी कहानी जिसमें एक युवा नेता अपनों की बगावत, पार्टी के बिखराव और निजी त्रासदी के मलबे से उठकर अपनी किस्मत खुद लिखता है।
यही कहानी है चिराग पासवान की, जिन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अपनी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को ऐसी ऊँचाई पर पहुंचाया जिसे किसी ने संभव नहीं माना था। 2020 में सिर्फ एक सीट से शुरुआत करने वाला यह नेता 2025 में 19 सीटों के साथ एनडीए की सबसे चमकती ताकत बनकर उभरा और यह सिर्फ चुनावी जीत नहीं, बल्कि अदम्य साहस और जुझारूपन की गाथा है।'
पिता की छत्रछाया: रामविलास पासवान की राजनीतिक दर्शन
28 नवंबर 2000 का दिन बिहार की राजनीति के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया, जब दलित राजनीति के सिरमौर रामविलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना की। यह केवल एक राजनीतिक दल का जन्म नहीं था, बल्कि सामाजिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों के लिए समर्पित एक आंदोलन का आरंभ था।
रामविलास जी का राजनीतिक चिंतन व्यापक और समावेशी था। पांच दशकों के अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली और हमेशा वंचित वर्गों की आवाज बनकर खड़े रहे। उनकी राजनीति जातीय संकीर्णता से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित और भाईचारे पर आधारित थी। उनका मानना था कि राजनीति सेवा का माध्यम है, सत्ता का साधन नहीं। यही संस्कार आज चिराग पासवान की राजनीतिक यात्रा में दिखाई देते हैं।
काले बादलों का दौर: 2020-2021 की परीक्षा की घड़ी
8 अक्टूबर 2020 की वह शाम जब रामविलास पासवान ने अंतिम सांस ली, तो न केवल चिराग पासवान के लिए बल्कि संपूर्ण दलित राजनीति के लिए एक अंधकारमय अध्याय शुरू हुआ। चिराग जो अब तक पिता के मार्गदर्शन में राजनीतिक कौशल सीख रहे थे, अचानक पूरी जिम्मेदारी के साथ अकेले खड़े हो गए।
रिस्की फैसला: एनडीए से अलगाव
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग ने एक साहसिक लेकिन जोखिम भरा निर्णय लिया। एनडीए गठबंधन से अलग होकर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने का फैसला राजनीतिक जगत में हलचल मचा गया। परिणाम निराशाजनक रहे - पार्टी को केवल एक सीट मिली।
चाचा से मिला सबसे बड़ा झटका
चाचा पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में पार्टी में विद्रोह हुआ। पांचों लोकसभा सांसदों ने चिराग का साथ छोड़ दिया। पार्टी का नाम, चुनाव चिन्ह और संसदीय दर्जा - सब कुछ छिन गया। राजनीतिक रूप से चिराग पूर्णतः अकेले पड़ गए।
पुनर्निर्माण की प्रक्रिया: नींव से नई शुरुआत
विपरीत परिस्थितियों में चिराग पासवान की वास्तविक क्षमता सामने आई। हताशा में डूबने के बजाय उन्होंने नई रणनीति के साथ पुनर्निर्माण का रास्ता चुना। चुनाव आयोग के समक्ष कानूनी लड़ाई लड़कर उन्होंने "लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास)" के नाम से पार्टी का पुनर्पंजीकरण कराया। नया चुनाव चिन्ह मिलने के बाद चिराग ने जमीनी स्तर पर काम शुरू किया।
प्रत्येक क्षेत्र में जाकर कार्यकर्ताओं से प्रत्यक्ष संवाद स्थापित किया। लोगों की समस्याओं को सुना, उनके सुझावों को समझा और धीरे-धीरे अपना आधार मजबूत किया। इस दौरान चिराग ने राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया। उन्होंने समझा कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है पार्टी का भविष्य और जनसेवा का लक्ष्य।
2024: पुनरुत्थान का प्रारंभ
2024 के लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान ने अपनी राजनीतिक बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया। एनडीए गठबंधन में वापसी का निर्णय लेकर उन्होंने रणनीतिक राजनीति की मिसाल पेश की। परिणाम अभूतपूर्व रहे - जितनी सीटों पर पार्टी ने चुनाव लड़ा, सभी पर विजय हासिल की। हाजीपुर से चिराग की व्यक्तिगत जीत विशेष रूप से भावनात्मक थी, क्योंकि यह उनके पिता की कर्मभूमि थी। इस सफलता के बाद उन्हें प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल में केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री का पद सौंपा गया।
2025 विधानसभा चुनाव के एतिहासिक परिणाम
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में चिराग पासवान और उनकी पार्टी ने राजनीतिक विश्लेषकों की सभी अपेक्षाओं को पार कर दिया। 28 सीटों पर चुनाव लड़कर 19 में जीत हासिल करना न केवल संख्यात्मक सफलता है बल्कि राजनीतिक प्रभाव के लिहाज से भी महत्वपूर्ण उपलब्धि है। गठबंधन की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर एलजेपी (रामविलास) ने अपनी महत्ता सिद्ध की।
भाजपा और जेडीयू से बेहतर स्ट्राइक रेट हासिल करना चिराग की रणनीतिक सोच और जमीनी संपर्क का प्रमाण है। आज चिराग पासवान केवल अपने पिता की राजनीतिक विरासत के वाहक नहीं हैं, बल्कि बिहार की दलित राजनीति के एक नवीन और ऊर्जावान चेहरे हैं। उन्होंने साबित किया है कि लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) केवल जातीय आधार तक सीमित नहीं है,
बल्कि सामाजिक न्याय की व्यापक राजनीति का प्रतिनिधित्व करती है। बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने स्पष्ट संकेत दिया है कि चिराग पासवान राज्य की राजनीति में दीर्घकालिक प्रभाव डालने वाली शक्ति हैं। उनकी यात्रा संघर्ष से सफलता तक पहुंचने वाले हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। यह एक नए अध्याय की शुरुआत है, जहां युवा नेतृत्व, राजनीतिक परिपक्वता और जमीनी संपर्क मिलकर बिहार की राजनीति को नई दिशा देने के लिए तैयार हैं।
विशेष आलेख:
एडवोकेट राकेश कुमार सिंहअध्यक्ष - भारत उत्थान संघ, खाना चाहिए फाउंडेशन, महाराणा प्रताप फाउंडेशन