Bihar Chunav Result: बिहार के चुनाव नतीजों से साबित हो गया कि राज्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति जनता में जबर्दस्त विश्वास है. उसने जाति, धर्म और पंथ की राजनीति को दरकिनार कर बिहार के हित में मतदान किया. बिहार के चुनाव परिणाम यह भी सिद्ध करते हैं कि जिस पार्टी या गठबंधन ने महिलाओं का विश्वास जीत लिया, उसकी झोली में सत्ता आ जाती है. बिहार के चुनाव में नीतीश सरकार ने महिलाओं के वोट बैंक को आकर्षित करने के लिए दस हजार रुपए का जो दांव चला था, वह बेहद कारगर साबित हुआ और मोदी-नीतीश के नेतृत्व वाला राजग सीटों की संख्या के मामले में डबल सेंचुरी मारने में सफल रहा. दूसरी ओर तेजस्वी यादव और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी के सारे दांव-पेंच औंधे मुंह गिरे.
बिहार के बारे में सारे एग्जिट पोल एनडीए (राजग) की जीत की भविष्यवाणी कर रहे थे लेकिन चुनाव परिणामों ने सबको चाैंका दिया. किसी को भी शायद उम्मीद नहीं थी कि एनडीए 200 से ज्यादा सीटें जीत लेगा और महागठबंधन एक-एक सीट के लिए तरस जाएगा. बिहार की राजनीति में जातिवाद बुरी तरह हावी रहता है. जाति के नाम पर वहां पर कई पार्टियां बनी हुई हैं.
अपनी-अपनी जाति में इन छोटी पार्टियों के नेताओं का अपना वोटबैंक है. ये वोटबैंक बहुत छोटा है लेकिन विधानसभा चुनाव में हार-जीत में उनकी भूमिका निर्णायक मानी जाती है. इसीलिए चुनाव के पूर्व बिहार में नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी तथा तेजस्वी यादव ने छोटी-छोटी पार्टियों को अपने साथ जोड़ा. इन सबके बीच प्रशांत किशाेर की जनसुराज पार्टी भी तकदीर आजमा रही थी.
कई चुनाव पंडितों का अनुमान था कि बिहार में अगर त्रिशंकु विधानसभा उभरी तो प्रशांत किशोर किंग मेकर की भूमिका अदा कर सकते हैं. प्रशांत किशाेर को लेकर सारे अनुमान ध्वस्त हो गए और मतदाताओं ने फैसला सुना दिया कि यह चुनाव विशेषज्ञ बिहार की राजनीति में कोई बड़ी अहमियत नहीं रखता.
एक रणनीतिकार के रूप में प्रशांत किशाेर ने कांग्रेस, भाजपा सहित कई पार्टियों को चुनाव जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की लेकिन वह अपने गृह राज्य में अपनी खुद की पार्टी का भविष्य संवार नहीं पाए. तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की जोड़ी पर मोदी तथा नीतीश कुमार की जोड़ी भारी पड़ी.
एनडीए का यह प्रचार काम कर गया कि अगर महागठबंधन की सरकार आई तो बिहार में जंगलराज की वापसी हो जाएगी. पिछले 20 वर्षों में बिहार ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में विकास की नई गाथा लिखी है. विकास के हर क्षेत्र में आम आदमी को बेहतरीन नतीजे दिखे हैं. चुनाव के ठीक पहले नीतीश सरकार ने महिलाओं के खाते में स्वरोजगार के लिए 10-10 हजार रुपए डाल दिए.
उनके इस कदम ने जादू का काम किया और महिलाओं ने एनडीए के पक्ष में जमकर मतदान किया. इस चुनाव में बिहार में पुरुषों के मुकाबले नारी शक्ति ने करीब 9 प्रतिशत ज्यादा मतदान किया. यह सारा अतिरिक्त वोट एनडीए के खाते में गया और नीतीश कुमार के पक्ष में चमत्कारिक नतीजे सामने आए. चुनाव में रिकाॅर्डतोड़ मतदान हुआ.
महागठबंधन यह दावा कर रहा था कि बंपर वोटिंग का फायदा उसे मिलेगा लेकिन नतीजों से साफ हो गया कि मतदाताओं ने प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भरोसा जताकर उनकी झोली भर दी. महागठबंधन पर मतदाताओं ने भरोसा नहीं किया और सुशासन बाबू उसकी पसंद बने रहे. चुनाव नतीजों को लेकर विपक्ष वोट चोरी और एसआईआर के नाम पर धांधली का आरोप लगाएगा लेकिन उसे विनम्रता और सम्मान के साथ जनता के फैसले का आदर करना चाहिए.