Bihar Bridge Collapse: बिहार में एक हफ्ते के भीतर तीन-तीन पुल ढहने की घटना ने निर्माणकार्यों की गुणवत्ता को लेकर एक गहरा सवाल खड़ा कर दिया है. यह संयोग ही है कि इन हादसों में किसी की जान नहीं गई है लेकिन इसकी वजह से हादसों के जिम्मेदार लोगों का अपराध कम नहीं हो जाता. मोतिहारी के घोड़ासहन प्रखंड में शनिवार की रात निर्माणाधीन पुल ध्वस्त हो गया. इससे पहले शनिवार को सीवान और मंगलवार को अररिया में भी पुल ढह गया था. बिहार में लगातार ढहते पुलों पर वहां के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा का यह कहना गले के नीचे नहीं उतरता कि जो पुल टूट कर पानी में बह गए हैं, वह 35-40 साल पुराने हैं और काफी जर्जर हो चुके थे. क्या पुलों की उम्र सिर्फ 35-40 साल ही होती है? जबकि मोतिहारी में जो पुल ढहा है, उसका निर्माणकार्य भी अभी पूरा नहीं हुआ था.
अररिया में ढहने वाले पुल का भी अभी उद्घाटन तक नहीं हुआ था! स्थानीय लोग पुल के बनने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री की गुणवत्ता पर सवाल उठा रहे हैं और उनका आरोप है कि पुल बनने में जिस स्तर के माल का प्रयोग होना चाहिए था, वह नहीं हुआ. उन्होंने शुरू में पुल के कुछ खंभों के निर्माण पर आपत्ति जताई थी.
अररिया में पुल गिरने का जो वीडियो सामने आया है उसमें साफ दिख रहा है कि पुल के निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल हुआ है. बिहार में पुलों के ढहने की घटना नई नहीं है. नया सिर्फ यह है कि एक सप्ताह के भीतर ही तीन पुल ढह गए. जबकि बीते वर्षों में बिहार में गिरने वाले पुलों की एक लम्बी फेहरिस्त है.
इसी साल मार्च में सुपौल में शुक्रवार तड़के एक निर्माणाधीन पुल का हिस्सा गिर जाने की वजह से एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. जबकि पिछले साल जून में खगड़िया के अगुवानी गंगा घाट पर निर्माणाधीन पुल का पूरा एक सेगमेंट ही गंगा में समा गया था. बीते साल फरवरी महीने में राजधानी पटना में बना रहा एक निर्माणाधीन पुल भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया था.
जबकि 2022 के नवंबर महीने में नालंदा जिले में एक निर्माणाधीन पुल ढह गया था जिसमें एक व्यक्ति की जान चली गई थी. सहरसा जिले में भी जून 2022 में एक निर्माणाधीन पुल गिरने से तीन लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे. इस तरह हादसों की एक लंबी श्रृंखला है.
ऐसे इतिहास को देखते हुए क्या उम्मीद की जा सकती है कि वर्तमान हादसों से कोई सबक लिया जाएगा और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी? विडंबना यह है कि विपक्ष में रहते हुए जो नेता भ्रष्टाचार को लेकर सरकार पर हमलावर रहता है, सत्ता में आते ही वह बचाव की मुद्रा में आ जाता है. ऐसे में क्या भविष्य में भी परिस्थिति में सुधार होने की उम्मीद की जा सकती है?