सरकार ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा दिया है। अब हमारी शास्त्रीय भाषाओं की संख्या बढ़कर 11 हो गई है। इन सभी भाषाओं का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है और शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से इनके संरक्षण, अध्ययन और शोध को बढ़ावा मिलेगा। इससे पहले तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उड़िया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया था।
अब इन पांच नई भाषाओं को इस श्रेणी में शामिल करने के साथ ही महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में अधिकांश लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा को विशेष मान्यता मिल गई है। गौरतलब है कि साल 2013 में तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था। मराठी भाषा की एक हजार साल से भी पुरानी समृद्ध साहित्यिक परंपरा है।
1960 से यह राज्य की आधिकारिक भाषा रही है। मराठी सहित पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषा का भी लिखित साहित्य का एक बड़ा और प्राचीन संग्रह है। शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त होने के बाद अब इन भाषाओं की प्राचीन साहित्यिक धरोहर जैसे ग्रंथों, कविताओं, नाटकों आदि के डिजिटलीकरण और संरक्षण के कार्य में प्रगति होगी।
इससे आने वाली पीढ़ियां उस धरोहर को समझ पाएंगी। किसी भी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से उस भाषा और उसकी सांस्कृतिक विरासत के प्रति समाज में जागरूकता और सम्मान दोनों बढ़ता है, साथ ही उस भाषा के दीर्घकालिक संरक्षण और विकास को भी गति मिलती है। वैसे, महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से ठीक पहले लिए गए इस निर्णय को एक राजनीतिक कदम भी माना जा रहा है।
बहरहाल, हमारी सभी भाषाओं का समृद्ध इतिहास है और हमें अपनी भाषाई विविधता और सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करना ही चाहिए। शास्त्रीय भाषाएं स्वतंत्र परंपराओं और समृद्ध साहित्यिक इतिहास वाली प्राचीन भाषाएं हैं, जो विभिन्न साहित्यिक शैलियों और दार्शनिक ग्रंथों को प्रभावित करती हैं। आमतौर पर ये ऐसी भाषाएं होती हैं, जिन्हें विशेष सांस्कृतिक, साहित्यिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण उच्च स्तर का माना जाता है। सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और भाषाई विविधता को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।
शास्त्रीय भाषाओं को जानने और अपनाने से विश्व स्तर पर भाषा को पहचान ओर सम्मान मिलेगा और वैश्विक स्तर पर हमारे साहित्य और संस्कृति का प्रसार होगा। जहां साहित्य और संस्कृति के संरक्षण और विकास की जिम्मेदारी सरकार की है, वहीं स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देना समाज का भी दायित्व है। सरकार के इस निर्णय को साहित्य और संस्कृति को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान माना जा सकता है।