ब्लॉगः हिंदी नहीं तो कौन होगी संपर्क भाषा? एमपी ने भारत के भाषाई अंधकार में हिंदी की मशाल जला दी है

By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 14, 2022 03:00 PM2022-10-14T15:00:11+5:302022-10-14T16:18:12+5:30

गृह मंत्री के तौर पर राजभाषा को बढ़ाने के लिए अमित शाह के उत्साह की मैं तहे-दिल से दाद देता हूं। म.प्र. की चौहान सरकार ने देश के करोड़ों गरीबों, ग्रामीणों और पिछड़ों के बच्चों की प्रगति का मार्ग खोल दिया है। जहां तक अ-हिंदीभाषी प्रांतों का प्रश्न है, उन पर हिंदी थोपने की कोई कोशिश नहीं होनी चाहिए।

BIf not Hindi then who will be the contact language MP has lit the torch of Hindi in the linguistic darkness of India | ब्लॉगः हिंदी नहीं तो कौन होगी संपर्क भाषा? एमपी ने भारत के भाषाई अंधकार में हिंदी की मशाल जला दी है

ब्लॉगः हिंदी नहीं तो कौन होगी संपर्क भाषा? एमपी ने भारत के भाषाई अंधकार में हिंदी की मशाल जला दी है

केरल, तेलंगाना और तमिलनाडु के क्रमशः मुख्यमंत्री, मंत्री और नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की है कि उनके प्रदेशों पर हिंदी न थोपी जाए। ऐसा उन्होंने इसलिए किया है कि संसद की राजभाषा समिति ने केंद्र सरकार की भर्ती-परीक्षाओं में हिंदी अनिवार्य करने और आईआईटी तथा आईआईएम शिक्षा संस्थाओं में भी हिंदी की पढ़ाई को अनिवार्य करने का सुझाव दिया है।

एक तरफ दक्षिण भारत से हिंदी विरोध की यह आवाज उठ रही है और दूसरी तरफ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भारत के भाषाई अंधकार में हिंदी की मशाल जला दी है। उनके और स्वास्थ्य शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग के प्रयत्नों से एमबीबीएस के पहले वर्ष की किताबों के हिंदी संस्करण का भोपाल में 16 अक्तूबर को विमोचन गृह मंत्री अमित शाह करेंगे।

गृह मंत्री के तौर पर राजभाषा को बढ़ाने के लिए अमित शाह के उत्साह की मैं तहे-दिल से दाद देता हूं। म.प्र. की चौहान सरकार ने देश के करोड़ों गरीबों, ग्रामीणों और पिछड़ों के बच्चों की प्रगति का मार्ग खोल दिया है। जहां तक अ-हिंदीभाषी प्रांतों का प्रश्न है, उन पर हिंदी थोपने की कोई कोशिश नहीं होनी चाहिए। यदि उनके बच्चों को भी उनकी उच्चतम शिक्षा उनकी मातृभाषा के जरिये दी जाने लगे तो वे हिंदी को संपर्क-भाषा के तौर पर सहर्ष स्वीकार कर लेंगे।

दूसरे शब्दों में ‘हिंदी लाओ’ का नहीं, ‘अंग्रेजी हटाओ’ का नारा देना चाहिए। यदि अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई पर देश भर में प्रतिबंध लग जाए तो विभिन्न स्वभाषाओं में पढ़े लोग परस्पर संपर्क के लिए कौनसी भाषा का सहारा लेंगे? हिंदी के अलावा वह कौनसी भाषा होगी? वह और कोई भाषा हो ही नहीं सकती। इसीलिए मैं कहता रहा हूं कि कोई स्वेच्छा से अंग्रेजी तथा अन्य विदेशी भाषाएं पढ़ना चाहे तो जरूर पढ़े लेकिन देश में हिंदी तभी चलेगी जबकि स्वभाषाएं सर्वत्र अनिवार्य होंगी।
 

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