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भगत सिंह: एक ओर था शहादत का जज्बा, दूसरी ओर क्रूरता की पराकाष्ठा!

By कृष्ण प्रताप सिंह | Updated: September 28, 2022 09:34 IST

भगत सिंह की आज 115वीं जयंती है। अपने विचारों और ओजस्वी व्यक्तित्व की वजह से भगत सिंह आज भी देश के नौजवानों के दिलों में अपनी एक अलग जगह रखते हैं।

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वर्ष 1907 में आज ही के दिन अविभाजित पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा गांव, जिसे अब उनके नाम पर भगतपुर कहा जाता है, में जन्मे शहीद-ए-आजम भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में जो शहादत हासिल हुई, निस्संदेह वह उनका चुनाव थी. इसी शहादत के लिए उन्होंने देश की राजधानी में स्थित सेंट्रल असेंबली में धमाके के आठ अप्रैल, 1929 के हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के ऑपरेशन को (जिसका उद्देश्य बहरों को सुनाने के लिए जोरदार धमाके की जरूरत पूरी करना था) बटुकेश्वर दत्त के साथ खुद अंजाम दिया था. 

यह जानते हुए भी उन्होंने धमाके के बाद भागने की कोशिश नहीं की थी और ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाते हुए गिरफ्तारी के लिए खड़े रहे थे कि उनके हाथ आते ही राजगुरु व सुखदेव के साथ मिलकर उनके द्वारा 17 दिसंबर, 1928 को लाहौर में की गई पुलिस अधिकारी जॉन पी सांडर्स की हत्या से खार खाये बैठे गोरे सत्ताधीश उन्हें फांसी के फंदे तक पहुंचाकर ही दम लेंगे.

हम जानते हैं कि उन दिन उनके निशाने पर सांडर्स नहीं बल्कि उसका सीनियर जेम्स ए. स्काट था. स्काट को मारकर वे 30 अक्तूबर 1928 को निकले साइमन कमीशन विरोधी जुलूस पर उसके द्वारा कराए गए उस लाठीचार्ज का बदला लेना चाहते थे, जिसमें पुलिस की लाठियों से आई सांघातिक चोटों के कारण देश को लाला लाजपत राय को गंवाना पड़ा था. लेकिन जब वे घात में थे, स्काट की जगह सांडर्स बाहर निकला और पहचान के धोखे में शिकार हो गया.

बहरहाल, अदालत में ट्रायल शुरू हुआ तो उन्होंने अपने बचाव की कतई कोई कोशिश नहीं की. हां अपने बयानों से क्रांतिकारी आंदाेलन के पक्ष में भरपूर माहौल बनाया. कहते हैं कि इसी उद्देश्य से उन्होंने खुद को गिरफ्तार भी कराया था. पंजाब के तत्कालीन कांग्रेसी नेता भीमसेन सच्चर ने उनसे बचाव के प्रयास न करने की वजह पूछी तो उनका जवाब था: इंकलाबियों को तो मरना ही होता है क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मजबूत होता है.

शहादत से एक दिन पहले अपने साथियों को पत्र में भी उन्होंने यही लिखा था कि उनके दिल में फांसी से बचने का कोई लालच नहीं और बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है.  

‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ और ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारों के बीच फांसी पर चढ़ने के पहले उन्होंने वहां उपस्थित मजिस्ट्रेट से कहा था, ‘मिस्टर मजिस्ट्रेट, आप बेहद भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है कि भारत के क्रांतिकारी किस तरह अपने आदर्शों के लिए फांसी पर भी झूल जाते हैं.’

टॅग्स :भगत सिंह
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