अवधेश कुमार का ब्लॉग: चारा घोटाले में सजा से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने की उम्मीद

By अवधेश कुमार | Published: February 23, 2022 01:46 PM2022-02-23T13:46:22+5:302022-02-23T13:46:22+5:30

भारत में एक समय आम धारणा थी कि नेता चाहे जितना भ्रष्टाचार करे उनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता. लालू यादव को हुई सजा और अलग-अलग राज्यों में नेताओं को मिली सजा से यह धारणा ध्वस्त करती नजर आती है.

Awadhesh Kumar's blog: Punishment in fodder scam is expected to curb corruption | अवधेश कुमार का ब्लॉग: चारा घोटाले में सजा से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने की उम्मीद

चारा घोटाले में सजा से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने की उम्मीद (फाइल फोटो)

बहुचर्चित चारा घोटाले का यह पांचवां मामला है जिसमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव दोषी करार दिए गए. झारखंड के डोरंडा कोषागार से 139 करोड़ 35 लाख रु पए की अवैध निकासी में 75 लोग दोषी पाए गए. इसके पूर्व देवघर, चाईबासा, डोरंडा कोषागार का एक मामला और दुमका मामले में उन्हें सजा हो गई थी. 

पिछले वर्ष मिली जमानत पर वे अभी बाहर थे. पूरा मामला न्यायालय में जिस दिशा में जा रहा था उसमें साफ था कि लालू यादव भले जमानत पर छूटे हों लेकिन उन्हें राहत नहीं मिलने वाली. वास्तव में चारा घोटाले में सजा के कारण ही लालू यादव चुनावी राजनीति से बाहर हो गए. जुलाई 2013 में उच्चतम न्यायालय ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में दो वर्ष से ज्यादा सजायाफ्ता के लिए चुनाव लड़ने का निषेध कर दिया. 

लालू यादव को सितंबर 2013 में सजा मिली और वह वंचित हो गए. अगर उच्चतम न्यायालय का फैसला नहीं होता तो वे जेल के अंदर से भी चुनाव लड़ते और इस समय शायद राजनीति में एक सांसद या विधायक के विशेषाधिकार के साथ सक्रिय होते. सच कहा जाए तो चारा घोटाले में मिली सजा ने लालू यादव का व्यक्तिगत राजनीतिक करियर नष्ट कर दिया. यही नहीं बिहार की राजनीति में भी इसने परिवर्तनकारी भूमिका निभाई तथा राष्ट्रीय राजनीति तक इसकी प्रतिध्वनि पहुंची.

यह बात सही है कि जेल में उनका स्वास्थ्य भी गिरता गया. हालांकि न्यायालय ने उनकी चिकित्सा की मॉनिटरिंग की तथा दिल्ली के केंद्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान में उनका इलाज हुआ. सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे राजनीति में आक्रामक रूप से सक्रि य किसी नेता को सजा मिले और जेल में बंद हो जाए तो उसका असर उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ना बिल्कुल स्वभाविक है. किंतु उनकी पार्टी राजद का यह आरोप किसी दृष्टि से गले नहीं उतरता कि उनके साथ अन्याय हुआ है. 

लालू यादव के साथ अन्य कई आरोपी अपने समय के शीर्ष नेता और नौकरशाह थे और उनकी ओर से बड़े-बड़े वकीलों ने केस लड़ा. न्यायालय के सामने अगर सबूत मौजूद है तो वह सजा देगा. जिन्हें 1990 और उसके बाद की राजनीति का ज्ञान है वे जानते हैं कि तब चारा घोटाला बिहार में कितना बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना था. 

दरअसल, 1990 से 1995 के बीच पशुपालन विभाग के लिए आवंटित राशि की अलग-अलग कोषागारों से अजीब तरीके से निकासियां हुईं. तब बिहार और झारखंड एक ही राज्य थे. इस मामले में आरंभ में 170 लोगों को आरोपी बनाया गया था जिनमें से 55 की मृत्यु हो चुकी है. सात इसमें सरकारी गवाह बन गए. छह आरोपियों का अभी तक पता नहीं चला है. किसी भ्रष्टाचार के मामले में किसको कितना धन मिला इसका पूरी तरह पता लगाना कठिन होता है किंतु भ्रष्टाचार हुआ है इसका पता चल जाता है तथा नियमों के उल्लंघन आदि का पता करना ज्यादा आसान होता है.

जिस मामले में अभी उन्हें सजा हुई है वहां डोरंडा कोषागार में 50 हजार तक के बिल का प्रावधान था. घोटालेबाजों ने इससे थोड़ा कम दिखा कर कई भागों में बांट कर अलग-अलग बिल से करोड़ों रुपए निकाल लिए. छानबीन में ये सारे भ्रष्टाचार साबित हो गए. यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि सीबीआई ने न्यायालय के समक्ष सबूत के रूप में 16 ट्रक दस्तावेज प्रस्तुत किए थे.  

बिहार मुख्यत: कृषि और पशुपालन पर निर्भर राज्य है. समाज के बड़े वर्ग की आय के यही मुख्य साधन थे और आज भी हैं. कल्पना कर सकते हैं कि तब क्या स्थिति रही होगी. जिन लोगों ने गरीब किसानों और पशुपालकों के हिस्से का धन मारा या जो सहयोग या सहायता उन्हें मिलनी चाहिए थी उसको डकार गए वे कितने बड़े अपराधी हो सकते हैं यह बताने की आवश्यकता नहीं. 

लालू प्रसाद यादव ने खुद उसमें से कितना धन लिया यह कहना मुश्किल है. बावजूद कोई यह नहीं कह सकता कि एक मुख्यमंत्री होते हुए ऐसे जनविरोधी शर्मनाक षड्यंत्र में उनकी भूमिका हो ही नहीं सकती. वह विद्यार्थी जीवन में पशुपालन विभाग के ही कर्मचारी आवास में रहते थे. वहां की गतिविधियों का उन्हें पता था. जिस तरह सीबीआई न्यायालय ने लंबे समय तक मामले की सुनवाई की उसके बाद तत्काल फैसले में त्रुटि की गुंजाइश ढूंढ़ना जरा कठिन है. 

एक समय भारत में आम धारणा थी कि नेता चाहे जितना भ्रष्टाचार करे उनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता. लालू यादव को हुई सजा तथा साथ में अलग-अलग राज्यों में नेताओं को मिली सजा से यह धारणा ध्वस्त हुई है. सत्ता से जुड़े नेता और प्रभावी लोग इससे सीख लें तो देश में बेहतर स्थिति कायम हो सकती है.

Web Title: Awadhesh Kumar's blog: Punishment in fodder scam is expected to curb corruption

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