अवधेश कुमार का ब्लॉग: रैपिड टेस्ट किट में देश की क्षमता का ही करना होगा उपयोग
By अवधेश कुमार | Updated: April 27, 2020 08:42 IST2020-04-27T08:42:27+5:302020-04-27T08:42:27+5:30
कोरोना कोविड-19 की भयावह आपात स्थिति में एक-एक क्षण का महत्व है. इसमें हम चीन से शिकायत भले कर दें, वह दूसरी खेपें भी भेज सकता है, पर इसमें जो समय का अंतर होगा उसकी भरपाई कैसे होगी? दूसरे, इसकी क्या गारंटी है कि आगे जो टेस्ट किट आएंगे वे गुणवत्ता पर खरे ही उतरेंगे.

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)
कोविड-19 प्रकोप में टेस्ट का सर्वाधिक महत्व है. इसकी अभी तक कोई सर्वस्वीकृत दवा उपलब्ध नहीं है. इसलिए परीक्षण में कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमित पाया गया तो तुरंत उसे क्वारंटाइन करके लक्षणों के अनुसार औषधियां एवं अन्य उपचार किए जाते हैं. अगर टेस्ट किट ही सही परिणाम न दे तो फिर कोविड-19 के फैलने का खतरा बढ़ जाएगा. कारण, हम टेस्ट करेंगे और पता ही नहीं चलेगा कि वह संक्रमित है या नहीं. इस बीच वह अनेक लोगों को संक्रमित कर चुका होगा.
इस दृष्टि से विचार करें तो चीन से आयातित रैपिड टेस्ट किट का संदेह के घेरे में आना अत्यंत ही चिंताजनक है. भारतीय चिकित्सा परिषद यानी आईसीएमआर को तत्काल इससे टेस्ट करने पर विराम लगा देना पड़ा. कहा गया है कि पहले फील्ड परीक्षण किया जाएगा एवं उसमें यदि परिणाम वैज्ञानिक मानक के अनुरूप आया तो फिर से आरंभ होगा. राजस्थान सरकार के अनुसार इस किट से मिले नतीजों में छह से 71 प्रतिशत तक अंतर आ रहा है.
वास्तव में इतना बड़ा अंतर सामान्य नहीं है. राजस्थान से पहले प. बंगाल ने भी किट पर सवाल उठाए थे. इसके बाद लैब में परीक्षण कराने का कोई मायने नहीं रह गया था. टेस्ट रोकने का फैसला केंद्र से गई टीम और राज्य से मिले फीडबैक के आधार पर लिया गया है.
इसका मतलब हुआ कि केंद्र की टीम को भी इसमें दोष नजर आया है. तो इंतजार करिए कि फील्ड में यानी लोगों के बीच जाकर परीक्षण के परिणाम का. आईसीएमआर कह रहा है कि अगर किट का बैच खराब होगा तो इसे कंपनी से बदलवाया जाएगा. ऐसे प्रकोप में यदि कुछ दिनों तक केवल इस कारण रैपिड टेस्ट रोक दिया जाए तो इसका परिणाम भयानक हो सकता है. हालांकि राजधानी दिल्ली में इसका टेस्ट परिणाम 71.5 प्रतिशत सही भी पाया गया है. इसका अर्थ एक ही हो सकता है कि इसे बनाने वाली चीनी कंपनी ने लोगों के जीवन से ज्यादा अपने व्यवसाय का ध्यान रखते हुए अंधाधुंध तरीके से उत्पादन किया और संपूर्ण गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा.
कोरोना कोविड-19 की भयावह आपात स्थिति में एक-एक क्षण का महत्व है. इसमें हम चीन से शिकायत भले कर दें, वह दूसरी खेपें भी भेज सकता है, पर इसमें जो समय का अंतर होगा उसकी भरपाई कैसे होगी? दूसरे, इसकी क्या गारंटी है कि आगे जो टेस्ट किट आएंगे वे गुणवत्ता पर खरे ही उतरेंगे.
हम यह नहीं कह सकते कि भारत ने कोरोना से जूझने में अपना सर्वस्व नहीं झोंका है. पिछले साढ़े तीन माह में जो भी प्रगति हुई है, उसी की वजह से वायरस ग्रसित लोगों की पहचान हो पा रही है. हमारे अनुसंधान एवं प्राप्तियों का रिकॉर्ड शानदार है. इसी समयावधि में किसी भी नई बीमारी का पीसीआर टेस्ट पहली बार सामने आया है, जो काफी सटीक है. यही नहीं, 70 वैक्सीन की खोज हो चुकी है उनमें से पांच का मनुष्यों पर ट्रायल भी शुरू हो गया है. ऐसा आज तक कभी किसी बीमारी में नहीं हुआ है.
हमारे वैज्ञानिक दवाओं पर भी काम कर रहे हैं. गंभीर रोगियों पर ड्रग ट्रायल भी कई अस्पताल जल्द शुरू करेंगे. बायोटेक्नोलॉजी विभाग ड्रग से संबंधित 16 प्रस्तावों को वित्तीय मदद भी दे रहा है. हमारे देश की अनेक कंपनियां पीपीई बना रही हैं और वह गुणवत्ता पर खरी उतरी हैं. वेंटिलेटर का निर्माण भी हो रहा है. कई कंपनियों के वेंटिलेटर और पीपीई को आईसीएमआर ने मान्यता दे दी है. रेलवे जैसा विभाग अपने दो चयनित कारखानों में से एक में पीपीई एवं दूसरे में वेंटिलेटर का निर्माण कर रहा है.
कहने का तात्पर्य यह कि इस संकट में भारत ने जो आंतरिक क्षमता दिखाई है उस पर फोकस करके तीव्र गति से बढ़ावा देने से और ज्यादा से ज्यादा कंपनियों को गुणवत्ता सिद्ध सामग्रियों के निर्माण की अनुमति देकर ऐसी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है.