Assembly Elections 2024: बीते 20 नवंबर 2024 को इलेक्ट्रॅानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर बटन दबाए जाने के बाद राज्य विधानसभा के 288 स्थानों के लिए चुने जाने वाले उम्मीदवार तय हो चुके हैं. शनिवार की दोपहर तक 4136 चुनाव लड़ने वालों में से विजेताओं के नाम सबके सामने आ जाएंगे. समग्र रूप में देखा जाए तो राज्य में राजनीति का रुख पहले-पहले पारिवारिक झगड़ों से तय हुआ और आगे चलकर मतदाताओं से रिश्ते निभाने पर आकर रुकने जा रहा है. बहन-भाई से आरंभ हुई बात सगे-सौतेले पर पहुंच कर थमी है.
एक तरफ जहां मत पाने के लिए रिश्ते अपने सुविधाजनक रंग में रंगे गए, तो दूसरी तरफ राजनीतिज्ञों ने अपनी निजी रिश्तेदारी को कहीं निभाया और कहीं तार-तार कर दिखाया. फिलहाल रिश्तों के मायाजाल में पहली बार राजनेता के साथ मतदाता भी फंसा नजर आया, जिसमें उलझकर उसने अपना मत दिया. अब मतगणना में रिश्तेदारी की मजबूती जरूर दिखेगी,
लेकिन मतदान में बहनों का भाइयों से आगे बढ़ने की कोशिश नहीं करना भी समझ में आएगा. अब यह बात कागजों पर भी दर्ज हो चुकी है. महाराष्ट्र में राजनीति में परिवार कभी नया विषय नहीं रहा. विदर्भ से लेकर पश्चिम महाराष्ट्र तक, कांग्रेस से लेकर शिवसेना-महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना(मनसे) तक हर दल परिवार से परे राजनीति नहीं कर पाया.
कहीं दूसरी पीढ़ी तो कहीं तीसरी पीढ़ी राजनीति में अपने कदम बढ़ाती दिखाई दी. शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के पौत्र आदित्य ठाकरे पिछली बार ही चुनाव मैदान में उतर गए थे. इस बार उनके चचेरे भाई अमित ठाकरे भी समर में आ गए हैं. सांगली जिले के तासगांव से पूर्व गृह मंत्री आरआर पाटील के बेटे चुनाव लड़ रहे हैं तो खानदेश में पूर्व मंत्री एकनाथ खड़से की बेटी रोहिणी खड़से चुनाव में उतरी हैं.
मराठवाड़ा में पूर्व केंद्रीय मंत्री रावसाहब दानवे की बेटी संजना जाधव अपना भाग्य अजमा रही हैं. नांदेड़ में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की बेटी श्रीजया चव्हाण ने अपनी किस्मत अजमाई है. विदर्भ में पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के बेटे सलिल देशमुख चुनाव में उतरे हैं.
बारामती से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(राकांपा) शरद पवार के पोते युगेंद्र पवार और लातूर से पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटिल चाकूरकर की बहू अर्चना पाटिल चाकूरकर विधानसभा में जाने की तैयारी में हैं. ये वो कुछ नाम हैं जो धनंजय मुंडे, पंकजा मुंडे, समीर भुजबल, हिना गावित, नमिता मुंदड़ा, जीशान सिद्दीकी, मिलिंद देवड़ा आदि के अलावा राजनीति में कदम रख रहे हैं.
इन सभी रिश्तों में कहीं एक-दूसरे के लिए समर्पण और कहीं प्रतिद्वंद्विता साफ दिखाई देती है. बारामती में पवार परिवार और मुंबई में ठाकरे परिवार का संघर्ष किसी से छिपा नहीं है. अब तक राजनीति में परिवार को लेकर भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) काफी अलग नजर आने की कोशिश करती आई है. मगर परिस्थितियों के दबाव ने उसे भी उदार बनाना आरंभ कर दिया है.
उधर, कांग्रेस ने हमेशा परिवार और पीढ़ी को महत्व दिया और रिश्तों को निभाया है. राकांपा ने भी कांग्रेस परंपरा को ही स्वीकार किया है. शिवसेना के संस्थापकों ने सत्ता की सक्रिय सहभागिता से दूर रहने की कोशिश की, लेकिन अब उस विचार को तिलांजलि दी जा चुकी है. शिवसेना के पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं, जिसके चलते पिछले चुनाव में अपना उम्मीदवार नहीं उतारने वाली मनसे ने अपना उम्मीदवार चुनाव में उतारा है. वहीं शिवसेना ने मनसे के पहली बार चुनाव लड़ रहे अमित ठाकरे के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतार दिया है.
यही हाल बारामती का है, जहां चाचा से मुकाबला भतीजा कर रहा है. कभी वहां चाचा के इशारों पर भतीजा राज करता था. स्पष्ट है कि अब राज्य में नई पीढ़ी को राजनीति में लाने से आगे बात निकल चुकी है, जिसमें पारिवारिक संघर्ष आरंभ हो चला है. मराठवाड़ा में मुंडे परिवार में अलगाव समाप्ति के बाद एकजुटता सामने आई है, लेकिन खानदेश में बेटी ही परिवार की बहू की विरोधी पार्टी से चुनाव लड़ रही है.
मराठवाड़ा के ही छत्रपति संभाजीनगर जिले में कन्नड़ विधानसभा सीट से भाजपा नेता दानवे की बेटी अपने ही पति के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं. लिहाजा यह चुनाव नई पीढ़ी को राजनीति में लाने की बजाय वर्चस्व और श्रेष्ठता की लड़ाई में बदल गया है. वैसे भी हर चुनाव भविष्य के दावों-प्रतिदावों पर अपनी मुहर लगाता है.
राजनीति के इन्हीं रिश्तों में संघर्ष के बीच राज्य के सत्ताधारी महागठबंधन ने अपनी लाड़ली बहन योजना के माध्यम से मतदाता से नया रिश्ता जोड़ने की कोशिश की है. यहां तक कि युवाओं और किसानों की सहायता कर उन्हें भी लाड़ले भाई बनाने के प्रयास हुए हैं. मजेदार बात यह कि एक तरफ नया संबंध जोड़ा गया, तो दूसरी ओर उसमें भी सगे-सौतेले का अंतर बीच में ला दिया गया है.
सरकार की योजनाओं की आलोचना करने वाले विपक्ष के नेताओं को सौतेला भाई बता कर उनसे सावधान रहने तक की हिदायत दी गई है. अब राज्य में जहां घरों में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ने की ताकत मिल रही है, वहीं सरकार को योजनाओं के लाभार्थी मतदाता भाई-बहन दिखने लगे हैं. इसी परिदृश्य में शनिवार को आने जा रहा परिणाम रिश्तों की गंभीरता को साबित करेगा.
हालांकि राकांपा अजित पवार गुट ने सबसे अधिक अपने चाचा की पार्टी राकांपा शरद पवार गुट के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए हैं. यही हाल मनसे का भी है, जिसने शिवसेना के उद्धव गुट के खिलाफ बड़ी संख्या में उम्मीदवार उतारे हैं. इसके साथ ही कुछ दलों ने चुनाव के टिकट पाने में तकनीकी समस्या आने पर अपने मित्र दलों से भी रिश्तेदारों को टिकट दिलाने में कोई संकोच नहीं किया है. करीब आठ निर्वाचन क्षेत्रों में मैत्रीपूर्ण मुकाबले के नाम पर दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं.
स्पष्ट है कि राजनीति अब पारिवारिक रिश्ते ही नहीं, हर बंधन तोड़ने के लिए तैयार है. संकोच, संयम या अनुशासन जैसी बातें राजनीतिक महत्वाकांक्षा के आगे कुचली जा चुकी हैं. नए दौर में संबंधों की सही पहचान मतदाता के हाथ है, जो अपना निर्णय दर्ज कर चुका है. जिनसे रिश्तों की राजनीति के असली रंग अब दिखेंगे, जो बताएंगे कि वे कितने दिन साथ चलेंगे.