Assembly Elections 2024: महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा के चुनाव बुधवार को संपन्न हो गए. चुनाव में हार-जीत तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है लेकिन असली विजेता तो मतदाता है. महाराष्ट्र में एक ही चरण में 288 सीटों के लिए मतदान हो गया जबकि झारखंड में बुधवार को मतदाताओं ने दूसरे चरण में 38 सीटों के लिए अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. विभिन्न राजनीतिक दलों के दो सप्ताह के सघन चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं ने वोट मांगने आए उम्मीदवारों को परखा और अपने विवेक से मताधिकार का प्रयोग किया. दोनों राज्यों में वोट शांति से डाले गए.
अपवादस्वरूप कुछ छिटपुट घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो लोकतंत्र के प्रति आम आदमी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. 72 साल पहले देश में पहले आम चुनाव हुए थे. उस वक्त देश को आजाद हुए पांच वर्ष ही हुए थे. अंग्रेजों ने जब देश छोड़ा था, तब उन्हें भारत की जनता की मानसिक परिपक्वता पर संदेह था लेकिन भारतीय जनता ने उन्हें गलत साबित कर दिया.
देश में 1952 के बाद से लगातार आम चुनाव हो रहे हैं और हर चुनाव में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती चली जा रही हैं. मतदाताओं की लोकतंत्र के प्रति अगाध आस्था का ही नतीजा है कि आज भारत को दुनिया का सबसे सफल लोकतांत्रिक देश माना जाने लगा है. महाराष्ट्र और झारखंड में मतदाताओं की जितनी संख्या है, उतनी तो दुनिया के आधे देशों की कुल आबादी भी नहीं है.
जब भारत में लोकसभा के चुनाव इस वर्ष हुए तब मतदाताओं की संख्या एक अरब के पास पहुंच गई थी. लगभग सौ करोड़ मतदाताओं से शांतिपूर्ण तथा सुव्यवस्थित ढंग से मतदान करवा लेना पूरी दुनिया के लिए अजूबे से कम नहीं है. पहले आम चुनाव में 17.32 करोड़ मतदाता थे. उसमें 72 वर्षों में लगभग 6 गुना वृद्धि हुई है. देश में लोकतंत्र की गहरी जड़ों का इससे पता चलता है.
चुनाव में सभी दल लुभावने वादे करते हैं, जाति तथा धर्म के समीकरणों को देखकर उम्मीदवार मैदान में उतारे जाते हैं लेकिन मतदाता के मन के आगे राजनीतिक दलों के सारे समीकरण ध्वस्त हो जाते हैं और अंत में विजयी लोकतंत्र ही होता है. महाराष्ट्र के चुनाव पर पूरे देश की नजरें हैं क्योंकि यहां के नतीजे देश के भावी चुनावी समीकरणों को व्यापक रूप से प्रभावित कर सकते हैं.
महाराष्ट्र राजनीतिक रूप से संवेदनशील होने के साथ-साथ बेहद जागरूक भी है. हिंदी पट्टे में विधानसभा और लोकसभा के हाल के चुनाव में शानदार जीत हासिल करने के बाद जहां भाजपा आत्मविश्वास से लबरेज होकर महाराष्ट्र में उतरी तो कांग्रेस के सामने राज्य में अपनी खोई जमीन को वापस पाने की चुनौती है. महाराष्ट्र में इंडिया और एनडीए गठबंधन के नाम पर चुनाव नहीं लड़ा गया.
यहां कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) तथा उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को मिलाकर बनी महाविकास आघाड़ी और भाजपा, शिवसेना (एकनाथ शिंदे) तथा अजित पवार के नेतृत्ववाली राकांपा को मिलाकर बनी महायुति के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई है. चुनाव प्रचार में इंडिया और एनडीए की जगह महायुति और आघाड़ी के नाम पर ही वोट मांगे गए.
महाराष्ट्र देश की आर्थिक गतिविधियों की नब्ज है. इसीलिए इस राज्य में सत्ता हासिल करना किसी भी पार्टी के लिए गर्व की बात समझी जाती है. महाराष्ट्र 1960 में अस्तित्व में आया और उसके बाद हर चुनाव में राज्य के मतदाताओं ने परिपक्वता के साथ अपने जनप्रतिनिधियों को चुना है. महाराष्ट्र के तेजी से विकास का एक कारण यह भी है कि यहां की राजनीतिक संस्कृति सबसे अलग है.
चुनाव के दौरान एक-दूसरे का विरोध कर रहे उम्मीदवार तथा राजनीतिक दल मतदान के बाद राज्य की विकास प्रक्रिया में एकजुट होकर काम करते हैं. मुद्दों पर उनके बीच मतभेद जरूर रहते हैं लेकिन जब महाराष्ट्र के हितों की बात आती है, तो सब एकजुट दिखाई देते हैं. इस चुनाव के बाद भी महाराष्ट्र में राजनीतिक सौहार्द्र की ऐसी ही तस्वीर नजर आनेवाली है.
राज्य में पिछले कुछ चुनावों में कम मतदान चिंता का विषय रहा है लेकिन बुधवार को मतदाताओं के बीच अच्छा-खासा उत्साह दिखाई दिया, खासकर नई पीढ़ी के मतदाताओं का उल्लास देखते ही बनता था. जहां तक झारखंड की बात है, वहां भी लोकतंत्र के पर्व में आस्था की धारा वेग से प्रवाहित होती दिखी.
आदिवासीबहुल इस राज्य में मतदाताओं ने बढ़-चढ़कर मताधिकार का प्रयोग किया और इस धारणा को गलत साबित कर दिया कि पिछड़े इलाकों के गरीब आदिवासियों में राजनीतिक समझदारी का अभाव होता है. खनिज तथा घने जंगलों की प्राकृतिक संपदा से भरपूर झारखंड की जनता के विवेक की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है.
लोकतंत्र के इस पर्व के प्रति गहरा समर्पण दिखाने के लिए महाराष्ट्र तथा झारखंड की जनता बधाई की पात्र है. 23 नवंबर को जब चुनाव परिणाम घोषित होंगे तो हारने-जीतने वाले सामने आ जाएंगे लेकिन लोकतंत्र की जीत का उल्लास अपने चरम पर दिखाई देगा.