लाइव न्यूज़ :

अश्विनी महाजन का ब्लॉग: मंदी के वास्तविक कारण को समझें

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: December 28, 2019 15:31 IST

कोई समस्या होगी तो सुझाव भी आएंगे और नीति-निर्माता समस्याओं को दूर करने का प्रयास भी करेंगे. यदि समस्या का सही निदान होता है और उपयुक्त उपचारात्मक उपाय किए जाते हैं तो देर-सबेर हम समाधान कर भी पाएंगे. लेकिन यदि निदान में ही गलती होती है तो समाधान भी गलत ही होगा.

Open in App
ठळक मुद्देकोई समस्या होगी तो सुझाव भी आएंगे और नीति-निर्माता समस्याओं को दूर करने का प्रयास भी करेंगे. यदि समस्या का सही निदान होता है और उपयुक्त उपचारात्मक उपाय किए जाते हैं तो देर-सबेर हम समाधान कर भी पाएंगे.

अश्विनी महाजन

पिछली तिमाही में भारत की जीडीपी की ग्रोथ दर घटकर मात्र 4.5 प्रतिशत रह गई, जो पिछले 26 तिमाहियों की ग्रोथ दर में सबसे कम है. इससे पहले 2012-13 की चौथी तिमाही में ग्रोथ दर 4.3 प्रतिशत दर्ज की गई थी. एक अर्थव्यवस्था, जो दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज गति से बढ़ रही थी, के लिए यह चिंता का विषय है.

कोई समस्या होगी तो सुझाव भी आएंगे और नीति-निर्माता समस्याओं को दूर करने का प्रयास भी करेंगे. यदि समस्या का सही निदान होता है और उपयुक्त उपचारात्मक उपाय किए जाते हैं तो देर-सबेर हम समाधान कर भी पाएंगे. लेकिन यदि निदान में ही गलती होती है तो समाधान भी गलत ही होगा. भारतीय अर्थव्यवस्था के धीमेपन में यह सच साबित हो रहा है. नीति-निर्माता और साथ ही ‘विशेषज्ञ’ यदि निदान में गलती करते हैं तो समाधानों में भी फिसल सकते हैं.

यह समझना होगा कि यह धीमापन आपूर्ति (सप्लाई) पक्ष के कारण नहीं है, बल्कि मांग (डिमांड) पक्ष के कारण है. वास्तव में अर्थव्यवस्था में मांग में कमी होने के कारण उत्पादन में धीमापन आ रहा है, जबकि अर्थव्यवस्था में अधिक उत्पादन करने की क्षमता बरकरार है. भारत में उच्च मुद्रास्फीति (तेजी से महंगाई) का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसके कारण गरीबों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.

इसके कारण जो धन उत्पादक कार्यों में लग सकता था, वह जमाखोरी और कालाबाजारी के लिए लगने लगा, जिससे संसाधनों का गलत उपयोग होता था. एक दशक से ज्यादा समय से पारित वित्तीय दायित्व एवं बजटीय प्रबंधन (एफआरबीएम) एक्ट के तहत सरकार ने स्वयं पर अपने राजकोषीय घाटे को एक सीमा तक रखने का अंकुश लगाया था. इसे धीरे-धीरे लागू किया जा रहा है.

सीमित राजकोषीय घाटे के साथ-साथ नोटबंदी जैसे उपायों से देश में लिक्विडिटी कम होने के कारण मुद्रा-स्फीति की दर बहुत कम हो गई. समझना होगा कि थोड़ी मात्रा में मुद्रा-स्फीति उत्पादन एवं निवेश को प्रोत्साहित करती है.

महंगाई दर घटने से निवेश के लिए प्रोत्साहन कम हो गया, जिसके कारण मांग में धीमापन देखा गया और यही नहीं हमारी सकल स्थिर पूंजी निर्माण की दर भी घट गई.वर्तमान समस्या का स्थायी समाधान तभी हो सकता है, जब गरीबों के पास क्रय शक्ति बढ़े और उससे मांग बढ़े.

टॅग्स :इंडियाशेयर बाजारshare bazar
Open in App

संबंधित खबरें

भारतजान्हवी कपूर से लेकर काजल अग्रवाल तक..., सेलेब्स ने बांग्लादेश में हिंदुओं की हत्या पर खोचा मोर्चा

विश्वCanada: टोरंटो में भारतीय छात्र की हत्या, अज्ञात ने मारी गोली; भारतीय दूतावास ने कही ये बात

भारतअरावली पर्वतमाला राष्ट्रीय धरोहर, बचाना जरूरी

क्रिकेटदीप्ति शर्मा श्रीलंका की महिला टीम के खिलाफ इतिहास रचने को तैयार, सबसे ज़्यादा T20I विकेट लेने वाली खिलाड़ी बनने से सिर्फ़ 4 विकेट दूर

कारोबारStock Market Holiday Today: क्रिसमस डे पर आज बंद रहेंगे शेयर बाजार, BSE, NSE पर नहीं होगी ट्रेडिंग

भारत अधिक खबरें

भारत2006 से लालू परिवार का था ठिकाना?, 10 सर्कुलर रोड से विदाई शुरू?, राबड़ी देवी ने चुपचाप घर खाली करना शुरू किया, रात के अंधेरे में सामान हो रहा शिफ्ट?

भारतYear Ender 2025: ऑपरेशन सिंदूर से लेकर एशिया कप तक..., भारत-पाक के बीच इस साल हुए कई विवाद

भारतबांग्लादेशी पर्यटकों के लिए सिलीगुड़ी के होटलों में एंट्री बंद, लोगों ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अटैक का किया विरोध

भारतचार वीर साहिबजादों ने दी थी अविस्मरणीय शहादत 

भारतUddhav Thackeray Raj Thackeray: गठबंधन तो हो गया लेकिन चुनौतियां कम नहीं हैं