अश्वनी कुमार का ब्लॉग: नई दुनिया के लिए चाहिए नए तरह का नेतृत्व

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 19, 2020 02:43 PM2020-08-19T14:43:50+5:302020-08-19T14:43:50+5:30

संघर्ष और अन्याय से त्रस्त दुनिया में, नेतृत्वकर्ता ऐसा होना चाहिए जो हाशिए पर के लोगों में उनके भविष्य के प्रति उम्मीद जगा सके, लोगों की आकांक्षाओं का सम्मान करे और प्रतिस्पर्धी विचारों के बीच मध्यस्थता करते हुए स्थायी राजनीतिक सहमति बना सके.

Ashwani Kumar's blog: A new kind of leadership is needed for the new world | अश्वनी कुमार का ब्लॉग: नई दुनिया के लिए चाहिए नए तरह का नेतृत्व

अश्वनी कुमार का ब्लॉग: नई दुनिया के लिए चाहिए नए तरह का नेतृत्व

महामारी से हिली हुई एक संतप्त दुनिया, जिसमें मनुष्य की सामूहिक क्षमता असहाय बनकर रह गई है, हमारे भविष्य के बारे में जवाब पाने के लिए बेचैन है. विश्व व्यवस्था की निरंतर बनी रहने वाली असमानताएं, जिन्हें वायरस और डिजिटल विभाजन ने और भी तीखा कर दिया है, एक असफल नेतृत्व और सहस्त्रब्दी विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में विफलता की कहानी को दर्शाती हैं.

नेतृत्व का सवाल जितना आज प्रासंगिक है, शायद ही कभी पहले था. इतिहास हमें एक बार फिर से नेतृत्व के संबंध में मार्ग दिखा रहा है, जो हमारे मानवता को परिभाषित करने वाले मूल्यों के माध्यम से सभी के लिए एक सुखद और सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करे. कोई चाहे तो यह मान सकता है कि इतिहास अपने समय के महान पुरुषों और महिलाओं की उपलब्धियों का वृत्तांत है, या यह मान सकता है कि वे इतिहास नहीं बनाते हैं. 

''...जैसा भी वे चाहें, लेकिन पहले से ही मौजूद परिस्थितियों में...'' इतिहास के ऐसे परिवर्तनकारी क्षणों में नेतृत्व की केंद्रीयता अनुभवजन्य रूप से स्थापित है. जैसा कि ड्यूरेंट हमें याद दिलाते हैं.. नेता ही इतिहास की जीवनशक्ति हैं जिसमें राजनीति और उद्योग केवल मुखौटे हैं.'' 

अर्नाल्ड टॉयनबी, अपनी महान कृति, ए स्टडी ऑफ हिस्ट्री में भी हमें यही बताते हैं कि सभ्यताओं का उदय और पतन आवधिक चुनौतियों और उसको लेकर हमारी प्रतिक्रिया का इतिहास है. साफ है कि नेतृत्व का प्रश्न इस संदर्भ में अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है.

वर्तमान परिदृश्य को अगर देखें तो यह चुनौतीपूर्ण और निराशाजनक दोनों है. लोकतंत्र का वैश्विक स्तर पर कमजोर होना, नैतिक अनिवार्यताओं का त्याग, निरंकुश सत्ता हासिल करने का जुनून, संस्थागत वैधता का संकट और कठिन या महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए आवश्यक राजनीतिक सहमति बनाने की चुनौती, लोकतांत्रिक लचीलेपन की घोषित मान्यता को सवालों के घेरे में लाना यही दिखाता है.

आम चुनौतियों का सामना करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहकारी प्रयास को लेकर ‘कट्टर राष्ट्रवाद’ का उदय, सुरक्षा की मांग और नागरिक अधिकारों की पवित्रता के बीच जटिल संतुलन, फेक न्यूज और गलत सूचनाओं की अनैतिक गाथा, अभूतपूर्व वैश्विक वित्तीय संकट जिसने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को बचाने की हमारी सामूहिक क्षमता को कमजोर कर दिया है, लाखों नौकरियों का जाना, जिससे श्रम राजस्व में अनुमानित 3.4 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है और परिणामस्वरूप सामाजिक संकट, बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता, नस्लवाद, विदेशियों को पसंद न करने की प्रवृत्ति और जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए एकजुट वैश्विक प्रतिक्रिया का दुखद अभाव मिलकर सामूहिक रूप से सामाजिक अस्थिरता और राजनीतिक व्यवधान का एक शक्तिशाली कॉकटेल प्रस्तुत करते हैं.

डिजिटल तकनीकों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दुरुपयोग के माध्यम से एक ‘निगरानी राज्य’ द्वारा निजी क्षेत्र पर अतिक्रमण बढ़ाना नैतिकता और कार्यक्षमता पर दोषपूर्ण प्रभुत्व के बारे में असुविधाजनक सवाल उठाता है. हालांकि तकनीकी सशक्तिकरण मानवता के हित में पूरी तरह स्वागत योग्य कदम है, लेकिन डिजिटल असमानता, एल्गोरिदम संचालित प्लेटफॉर्मो की सर्वव्यापकता और व्यक्तिगत डाटा का वाणिज्यिक उपयोग गोपनीयता अधिकारों और मानवीय गरिमा के उल्लंघन को लेकर बेचैन करने वाले प्रश्न उठाते हैं.

अलग-अलग विचारधारा के नेताओं से उम्मीद है कि वे संकीर्ण राष्ट्रवाद से प्रेरित हुए बिना और निरंकुश सत्ता के लालच के बिना, अपने कर्तव्य पथ पर चलते रहेंगे. वास्तव में, उन्हें फैसला करना होगा कि उन्हें किन चीजों को खत्म करना है और किन चीजों को आगे बढ़ाना है. नेताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे लोगों के सामूहिक चिंतन को आकार दें और हाथ में लिए हुए काम के बारे में पूरा ब्यौरा लोगों के सामने रखें. 

उन्हें जनभावना के साथ सामंजस्य स्थापित करना होगा. संघर्ष और अन्याय से त्रस्त दुनिया में, नेतृत्वकर्ता ऐसा होना चाहिए जो हाशिए पर के लोगों में उनके भविष्य के प्रति उम्मीद जगा सके, लोगों की आकांक्षाओं का सम्मान करे और प्रतिस्पर्धी विचारों के बीच मध्यस्थता करते हुए स्थायी राजनीतिक सहमति बना सके.

सत्यनिष्ठा, निरंतरता, सहानुभूति, अथक दृढ़ संकल्प, विनम्रता, नैतिकता और राजनीति के नैतिक तथा वैचारिक ढांचे के भीतर जनता को प्रेरित करने की क्षमता जैसे नेतृत्व के गुण आज के लिए अधिक प्रासंगिक हैं. आज के संकटों भरे दौर में विशाल हृदयता, व्यक्तिगत स्वार्थो से ऊपर उठने की क्षमता एक बौद्धिक वैश्विक समाज की स्थापना के लिए विचारों की लड़ाई का नेतृत्व करने के लिए आवश्यक है.

यह नेतृत्व के गुणों को सर्वोत्तम रूप से परिभाषित करते हैं. आज जिन परेशान करने वाले सवालों का हम सामना कर रहे हैं, उनमें अहंकार, अज्ञानता, अशिष्टता, घमंड आदि का आदर्श नेतृत्व में कोई स्थान नहीं है. सच्चा नेतृत्व अपने समय के बड़े उद्देश्यों के प्रति वफादार होगा और जब उनके चुनाव का समय आएगा तो वह उससे कतराएगा नहीं. उच्च नैतिक उद्देश्यों वाली राजनीति यही है.

वर्तमान समय का अस्तित्वगत सवाल यही है कि हम किस तरह से एक उदार, समावेशी और वास्तव में समतावादी व्यवस्था के लिए प्रतिबद्ध प्रेरक नेतृत्व के महत्व को बढ़ाते हैं. इस समय ऐसे ही नेतृत्व की  जरूरत है.

Web Title: Ashwani Kumar's blog: A new kind of leadership is needed for the new world

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