ब्लॉग: केरल में हो रही तुष्टिकरण की राजनीति

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 23, 2023 11:04 AM2023-11-23T11:04:26+5:302023-11-23T11:16:31+5:30

माना जाता है कि युगों पहले, ऋषि परशुराम ने अपना फरसा अरब सागर में फेंक दिया था। ऋषियों का अपना देश जल से उभरा, जो हिंदू धर्म की परम शक्ति का प्रतीक है। इसके जन्म के मिथक को स्थानीय-वैश्विक सांप्रदायिकता की नई वास्तविकता ने पीछे छोड़ दिया है, जिसे केरल की दो प्रमुख पार्टियों-कांग्रेस और कम्युनिस्टों द्वारा पोषित किया गया है।

Appeasement politics happening in Kerala | ब्लॉग: केरल में हो रही तुष्टिकरण की राजनीति

photo credit twitter

Highlightsकेरल के हमास समर्थक प्रदर्शन ने राष्ट्रीय सुरक्षा और राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव पर मंडराते खतरे का गंभीर सवाल उठाया हैकेरल में भाजपा हाशिये पर है, वहां कांग्रेस और माकपा का दबदबा हैभाजपा द्वारा त्रिपुरा के गढ़ से बाहर किए जाने के बाद कम्युनिस्ट अपनी प्रासंगिकता के लिए विशेष रूप से केरल पर ही निर्भर हैं

माना जाता है कि युगों पहले, ऋषि परशुराम ने अपना फरसा अरब सागर में फेंक दिया था। ऋषियों का अपना देश जल से उभरा, जो हिंदू धर्म की परम शक्ति का प्रतीक है। इसके जन्म के मिथक को स्थानीय-वैश्विक सांप्रदायिकता की नई वास्तविकता ने पीछे छोड़ दिया है, जिसे केरल की दो प्रमुख पार्टियों-कांग्रेस और कम्युनिस्टों द्वारा पोषित किया गया है। गाजा और कोझिकोड के बीच 4,780 किमी की दूरी नफरत के बीज बोने में बाधक नहीं है।

धार्मिक कट्टरता और पहचान की राजनीति से प्रेरित, कोझिकोड के लोगों ने इजराइल में 7 अक्तूबर के नरसंहार के बाद गाजा पट्टी पर इजराइल के घातक हमलों के खिलाफ पिछले हफ्ते अपने आक्रोश का इजहार किया। कोझिकोड में आक्रोश सांप्रदायिक रूप से जहरीला था, जो हमास के आतंकवादियों का समर्थन करता था। एक मुस्लिम युवा संगठन द्वारा आयोजित, यह भारत में सबसे बड़ा फिलिस्तीन एकजुटता मार्च था, जिसे सभी इस्लामी राजनीतिक और धार्मिक समूहों का पूर्ण समर्थन हासिल था।

मलयाली चादर पर सबसे गंदा दाग हमास नेता खालिद मशाल द्वारा एक लाख से अधिक की भीड़ को लाइव वर्चुअल संबोधन था। यह एक ऐसा सम्मान था जो किसी भी हमास आतंकवादी को किसी अन्य देश में नहीं मिला है। मशाल के 7 मिनट के वीडियो में नारा दिया गया, ‘बुलडोजर हिंदुत्व और रंगभेदी जायोनीवाद को उखाड़ फेंको.’ स्थानीय प्रायोजक जहर उगलने और राज्य में कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के लिए गाजा युद्ध का फायदा उठा रहे हैं, जो एनएसए द्वारा पीएफआई नेताओं की व्यापक गिरफ्तारी के कारण भूमिगत हो गया था।

केरल के हमास समर्थक प्रदर्शन ने राष्ट्रीय सुरक्षा और राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव पर मंडराते खतरे का गंभीर सवाल उठाया है। केरल में भाजपा हाशिये पर है, वहां कांग्रेस और माकपा का दबदबा है। भाजपा द्वारा त्रिपुरा के गढ़ से बाहर किए जाने के बाद कम्युनिस्ट अपनी प्रासंगिकता के लिए विशेष रूप से केरल पर ही निर्भर हैं। 2019 में कांग्रेस ने जो 52 लोकसभा सीटें जीतीं, उनमें से 15 केरल से हैं, जिसमें राहुल गांधी की सीट भी शामिल है।

वहां इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के दो सांसद हैं, जबकि माकपा के पास एक है और भाजपा शून्य पर। लेकिन दोष केवल किसी एक मुस्लिम संगठन का नहीं है। केरल में फिलिस्तीनी एकजुटता के नाम पर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के पक्षधर खतरनाक रूप से विभाजनकारी आत्मप्रदर्शन के जिन्न से ग्रस्त है। आईयूएमएल द्वारा समर्थित सत्तारूढ़ सीपीएम भी इजराइल के खिलाफ उग्र बयानबाजी में पीछे नहीं है।

लाल झंडे वालों ने आतंकवादी से शांतिदूत बने यासिर अराफात की 19वीं बरसी मनाने के लिए एक विशाल रैली का आयोजन किया, जो फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन का नेतृत्व करते थे और इंदिरा गांधी के पसंदीदा थे. कोझिकोड में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से ज्यादा नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने गरजते हुए कहा, “भारत इजराइल में निर्मित हथियारों का सबसे बड़ा उपभोक्ता है।

भारतीय करदाताओं का पैसा निर्दोष फिलिस्तीनी बच्चों को मारने के लिए नहीं दिया जाना चाहिए। इसलिए भारत को इजराइल के साथ सभी सैन्य सौदे रद्द कर देने चाहिए और उसके साथ राजनयिक संबंध तोड़ लेने चाहिए। यदि माकपा कट्टरपंथी समूहों के दबाव के आगे झुक गई है तो क्या कांग्रेस बहुत पीछे रह सकती है? उसने देर से ही सही लेकिन 23 नवंबर को कोझिकोड समुद्र तट पर एक बड़ी रैली के साथ अपने कम्युनिस्ट विरोधियों को हराने का वादा किया।

कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट माकपा के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट का एकमात्र विकल्प है। जब स्थानीय पुलिस ने अनुमति देने से इनकार कर दिया, तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के. सुधाकरन ने पलटवार किया, ‘‘या तो रैली होगी या पुलिस के साथ संघर्ष होगा, अगर वे परेशानी पैदा करेंगे।’’ दोनों पार्टियां चुनावी फायदे के लिए मृत फिलिस्तीनियों की लाशों पर राजनीति कर रही हैं।

मुसलमानों के सक्रिय समर्थन के बिना किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिल सकता है, जो राज्य की आबादी का लगभग 35 प्रतिशत है - जो राष्ट्रीय औसत से दोगुना है। हालांकि, कांग्रेस ने फिलिस्तीन समर्थक आंदोलन को एक स्थानीय मामले में बदल दिया है क्योंकि राष्ट्रीय नेतृत्व की प्रतिक्रिया अस्पष्ट है। मल्लिकार्जुन खड़गे या गांधी परिवार जैसा कोई भी प्रमुख नेता रैली में शामिल नहीं हो रहा है, जिसे कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल संबोधित करते हैं, जो राज्य के ही हैं।

गाजा समर्थक इस बात से इनकार करते हैं कि केरल की घटनाओं का हमास से कोई लेना-देना है और इसे अनुचित तरीके से हरे रंग में रंगा जा रहा है। शायद मलाबार स्थित मुसलमानों का फिलिस्तीन मुद्दे से जुड़ाव इतिहास में निहित है। 7वीं शताब्दी के दौरान पश्चिम एशिया से मुसलमानों ने मलाबार क्षेत्र में प्रवेश किया और हिंदुओं को बेदखल करके जमींदार बन गए। इतिहासकारों के अनुसार, फारस की खाड़ी के माध्यम से फलते-फूलते अरब व्यापार के कारण कोझिकोड को ‘मसालों का शहर’ उपनाम मिला।

इन व्यापारियों को व्यवसाय स्थापित करने और स्थानीय लड़कियों से शादी करने की उदार अनुमति दी गई। स्थानीय अधिकारियों की मदद से वे बड़ी संख्या में बस गए और बड़े किसान और व्यापारी बन गए। उन्हें ‘मोपला’ (दामाद) कहा जाता था। कोझिकोड उनका पसंदीदा निवास स्थान बन गया। अंग्रेजों के आने के पहले कुछ शताब्दियों तक मोपलाओं ने यहां शासन किया। 18वीं शताब्दी के अंत तक, भूमि का स्वामित्व मूल हिंदू जमींदारों को काफी हद तक बहाल कर दिया गया था।

मोपला इस परिवर्तन को पचा नहीं सके। उन्होंने 1921 में हिंदू जमींदारों के खिलाफ विद्रोह किया। हालांकि इसे ब्रिटिश विरोधी विद्रोह के रूप में देखा गया, लेकिन दंगे प्रकृति में हिंदू विरोधी थे। यहां तक कि डॉ. बाबासाहब आंबेडकर और एनी बेसेंट जैसे उदारवादी नेताओं ने भी लिखा है कि मोपला विद्रोह कोई कृषि विद्रोह नहीं था, बल्कि इसका उद्देश्य केरल के हिंदुओं को खत्म करना था। सौ से अधिक वर्षों के बाद, पुरानी घृणा की चिंगारी सार्वजनिक चर्चा पर हावी हो गई है।

आरएसएस, जो आगे बढ़कर नेतृत्व कर रहा है, ने कट्टरपंथियों के कारण अपने सैकड़ों कार्यकर्ताओं को खो दिया है। लेकिन केरल के सामाजिक परिदृश्य के एकतरफा ध्रुवीकरण के रंग और रूपरेखा को बदलने का उसका संघर्ष विफल हो रहा है। जहां पूरे भारत ने इजराइल-अरब संघर्ष पर बीच का रास्ता अपनाया है, वहीं केरल का एक बड़ा वर्ग सांप्रदायिक और सांस्कृतिक विनाश की राह पर है। यह राज्य की पार्टियों के लिए भले ही अच्छी राजनीति हो, लेकिन नए दक्षिणी भारत के कुछ हद तक बदसूरत चेहरे का प्रतिनिधित्व करती है।

Web Title: Appeasement politics happening in Kerala

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे