आलोक मेहता का ब्लॉग: निजता के अधिकार और गुप्तचरी के नियम तय हों
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 2, 2019 11:41 AM2019-11-02T11:41:23+5:302019-11-02T11:41:23+5:30
व्हाट्सएप्प यह दावा करता रहा है कि उसके संदेश पूरी तरह सुरक्षित होते हैं. दुनिया भर में उसके 150 करोड़ उपभोक्ता हैं. इनमें से करीब 40 करोड़ भारत में हैं. इसलिए व्हाट्सएप्प की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है और उसने बाकायदा अमेरिका की अदालत में इजराइल की कंपनी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया है.
एक बार फिर फोन से जासूसी पर हंगामा. कम से कम अनुभवी नेताओं और पत्नकारों को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. मुङो 32 वर्ष पहले की घटना याद आती है. ज्ञानी जैल सिंह भारत के राष्ट्रपति थे. उनके करीबी वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल के साथ राष्ट्रपति भवन में बातचीत हो रही थी. पहले हम उनके स्टडी रूम में ही बात कर रहे थे. फिर राजनीतिक उठापटक पर बात शुरू होने पर ज्ञानीजी ने हमसे कहा कि चलो बाहर लॉन में बात करेंगे. मुङो थोड़ा आश्चर्य हुआ. ज्ञानीजी ने बाहर निकल कर खुद ही बताया कि तुम्हें मालूम नहीं है, आजकल दीवारों के कान भले ही न हों, टेलीफोन उठाए बिना कोई दूर बैठा हमारी बात सुन लेगा या रिकॉर्ड भी कर लेगा.
राजनीतिक गलियारों के अलावा सरकारी एजेंसियां और देश-विदेश की निजी एजेंसियां भी वर्षो से अधिकृत अथवा गैरकानूनी ढंग से भारत में जासूसी करती रही हैं. अब इजराइल की एक कंपनी के आधुनिक उपकरण से दुनिया भर के देशों के साथ भारत में भी अनेक लोगों के फोन में सेंध लगाकर व्हाट्सएप्प के जरिए बातचीत अथवा दस्तावेजों की जासूसी का आधा-अधूरा रहस्य मीडिया में उछला है.
सरकार ने स्वयं इस मुद्दे पर व्हाट्सएप्प कंपनी और एजेंसियों से जांच पड़ताल की घोषणा कर अपने हाथ झाड़ने का प्रयास किया है. दूसरी तरफ विपक्षी दलों, मीडिया समूहों व कानूनविदों ने इसे निजता में हस्तक्षेप ठहराते हुए आशंका व्यक्त की है कि प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से इस जासूसी में सरकार का हाथ हो सकता है.
व्हाट्सएप्प यह दावा करता रहा है कि उसके संदेश पूरी तरह सुरक्षित होते हैं. दुनिया भर में उसके 150 करोड़ उपभोक्ता हैं. इनमें से करीब 40 करोड़ भारत में हैं. इसलिए व्हाट्सएप्प की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है और उसने बाकायदा अमेरिका की अदालत में इजराइल की कंपनी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया है. यह मामला आसानी से निपटने वाला नहीं है.
सरकार के अलावा भारतीय अदालतों में भी यह मामला जांच और न्याय के लिए सामने आने के पूरे आसार हैं. यूं मजेदार बात यह है कि इससे पहले भी परस्पर विरोधी संस्थानों और लोगों ने जासूसी के आरोपों पर बड़ी हायतौबा मचाई लेकिन कभी किसी पर गंभीर कार्रवाई नहीं हो सकी.
भारत ही नहीं ब्रिटेन और अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देशों में भी सत्ताधारियों अथवा कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा जासूसी के मामले सामने आते रहे हैं. सार्वजनिक क्षेत्न में सक्रिय रहने पर अन्य खतरों के साथ इस तरह के खतरों का भी सामना करना होता है. बहरहाल यह उचित समय है जबकि सरकार और संसद निजता के अधिकार की सीमाएं और किसी भी तरह की गुप्तचरी के नियमों को तय करें.