आलोक मेहता का ब्लॉग: बदले भारत की सही तस्वीर के साथ हो लक्ष्मी-गणेश की अर्चना
By आलोक मेहता | Updated: October 24, 2022 16:36 IST2022-10-24T16:25:49+5:302022-10-24T16:36:17+5:30
भारत की सांस्कृतिक पहचान आज भी विश्व में अनूठी है। अपने विचार, अपना भोजन, अपने कपड़े, अपनी परंपराएं, अपनी भाषा-संभाषण, अपनी मूर्तियां, अपने देवता, अपने पवित्र ग्रंथ और अपने जीवन मूल्य, यही तो है अपनी संस्कृति।

फाइल फोटो
दीपावली पर्व इस बार अधिक धूमधाम से मनाया जा रहा है। आधुनिक अर्थव्यवस्था ने भारत में बहुत कुछ बदला है। महानगरों से सुदूर गांवों तक जीवन में बदलाव नजर आ रहा है। तभी तो संपन्न विकसित राष्ट्रों के ग्रुप-20 सम्मेलनों में न केवल भारत को आमंत्रित किया जा रहा, बल्कि उसे अगले वर्ष आयोजक के रूप में महत्व दिया जा रहा है।
कोरोना महामारी का मुकाबला करने और उस पर काबू पाने में धन्वन्तरि के देश ने सभी चिकित्सा पद्धतियों का उपयोग किया और दुनिया के अनेक देशों की सहायता की। आतंकवाद से लड़ने में भी भारत अग्रणी है। संघर्ष और विषमता के रहते विकास का रथ रूका नहीं है।
भारत की सांस्कृतिक पहचान आज भी विश्व में अनूठी है। अपने विचार, अपना भोजन, अपने कपड़े, अपनी परंपराएं, अपनी भाषा-संभाषण, अपनी मूर्तियां, अपने देवता, अपने पवित्र ग्रंथ और अपने जीवन मूल्य, यही तो है अपनी संस्कृति। इसी संस्कृति का दीपावली पर्व कई अर्थों में समाज को जोड़ने वाला है।
दूसरी तरफ देश-विदेश के कुप्रचार से यह भ्रम बनाया जाता है कि जन सामान्य का जीवन स्तर पड़ोसी पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल से भी कमतर है। पिछले दिनों आइरिश और जर्मन एनजीओ ने एक रिपोर्ट में विश्व भुखमरी मानदंड (वर्ल्ड हंगर इंडेक्स ) में लिख दिया कि इस साल भारत 107 वें स्थान पर चला गया है। इस तरह वह पड़ोसी देशों से भी बदतर हालत में है।
यह रिपोर्ट राजनीतिक मुद्दा भी बन गया। असलियत यह है कि भारत में अन्न की कमी नहीं है और कई देशों को अनाज निर्यात अथवा सहायता के रूप में भेजा जा रहा है। यही नहीं, मान्यता प्राप्त विश्व संगठन ‘संयुक्त राष्ट्र विकास संगठन’ (यूएनडीपी) की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया में गरीबी की स्थिति में भारत पिछले वर्षों की तुलना में कई गुना बेहतर हो गया है। लगभग 41 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे हैं।
गरीबी का आंकड़ा 55 प्रतिशत से घटकर करीब 16 प्रतिशत रह गया है। केवल सात-आठ राज्यों में अब भी सुधार के लिए अधिक ध्यान देने की जरूरत है। बहरहाल, लोकतंत्र में सबको अपने काम-धंधे को चुनने की स्वतंत्रता है। चीन या अन्य देशों की तरह सत्ता व्यवस्था यह तय नहीं करती कि किस क्षेत्र में कितने लोगों को नौकरी मिलेगी या उन्हें देश की जरूरत के हिसाब से शिक्षित-प्रशिक्षित होना पड़ेगा।
इसीलिए अब सरकार ही नहीं सामाजिक संगठनों के नेता भी पढ़ाई के साथ कार्य कौशल (स्किल ) विकास, अधिकार के साथ कर्तव्य, सरकारी नौकरी पर निर्भरता में कमी पर जोर देने लगे हैं। दीवाली पर लक्ष्मी पूजा के साथ समाज की आत्म निर्भरता और भारत की सही छवि बनाने के लिए भी संकल्प लिया जाना चाहिए। शुभकामनाएं।