आलोक मेहता का ब्लॉग: बर्फ धीरे-धीरे पिघलने से कश्मीर को सुकून

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 12, 2020 05:51 IST2020-01-12T05:51:42+5:302020-01-12T05:51:42+5:30

जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक और सामाजिक स्थिति बिल्कुल सामान्य होने में अवश्य समय लगेगा. तीन पूर्व मुख्यमंत्नी फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को आरामदायक विश्रामघरों में हिरासत में रखे जाने के अलावा कुछ अलगाववादियों और आपराधिक तत्वों को जेल में रखने से सड़कों पर हंगामे, प्रायोजित पत्थरबाजी तथा तोड़फोड़ नहीं हो रही है. पर्यटक अच्छी संख्या में पहुंचने लगे हैं. श्रीनगर के अलावा अन्य शहरों और गांवों में जनजीवन सामान्य हो रहा है. 

Alok Mehta blog: Peace in Kashmir by gradually melting snow | आलोक मेहता का ब्लॉग: बर्फ धीरे-धीरे पिघलने से कश्मीर को सुकून

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

हिम श्रृंखलाओं का तेजी से पिघलना और चट्टानें गिरना अच्छा नहीं होता. जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के साथ बन रही लोकतांत्रिक व्यवस्था में जल्दबाजी में परिणाम की अपेक्षा ठीक नहीं है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने बहुत सोच-विचार और कानूनों की समीक्षा के बाद संचार व्यवस्था सामान्य करने तथा कुछ प्रतिबंधात्मक आदेशों पर संतुलित फैसला दिया है. 

सरकार को प्रतिबंधों की साप्ताहिक समीक्षा का आदेश दिया गया है और धारा 144 लगातार जारी नहीं रखे जाने की सलाह दी है. दूसरी तरफ अमेरिका सहित एशिया, अफ्रीका, लातिनी अमेरिकी 15 देशों के राजदूत- वरिष्ठ राजनयिकों के दल ने जम्मू-कश्मीर जाकर स्थिति को देखा-समझा और विभिन्न पक्षों के प्रतिनिधियों से बातचीत की है.

यह दोनों कदम सकारात्मक आशावादी संकेत दे रहे हैं. यह बात अलग है कि प्रतिपक्ष के नेता और मीडिया का एक वर्ग संतुष्ट नहीं है और सब कुछ खुला छोड़ देने को ही आवश्यक बता रहा है. राजनयिकों को सरकारी अतिथि की तरह यात्ना कराए जाने और स्थिति सामान्य कहे जाने पर आपत्ति को अनुचित करार देते हुए पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने सही कहा कि क्या हिंसा और आतंकवादी घटनाएं होने की छूट देना सामान्य कहा जाएगा. दुनिया के समझदार राजनयिक आतंक प्रभावित क्षेत्नों की स्थितियां समझते हैं. निश्चित रूप से हाल के महीनों में पाक समर्थित आतंकवादी घटनाओं पर कड़ा नियंत्नण संभव हुआ है और संभवत: पाकिस्तान आने वाले महीनों में बर्फ पिघलने पर घुसपैठ फिर बढ़ाने का इंतजार भी कर रहा होगा.

जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक और सामाजिक स्थिति बिल्कुल सामान्य होने में अवश्य समय लगेगा. तीन पूर्व मुख्यमंत्नी फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को आरामदायक विश्रामघरों में हिरासत में रखे जाने के अलावा कुछ अलगाववादियों और आपराधिक तत्वों को जेल में रखने से सड़कों पर हंगामे, प्रायोजित पत्थरबाजी तथा तोड़फोड़ नहीं हो रही है. पर्यटक अच्छी संख्या में पहुंचने लगे हैं. श्रीनगर के अलावा अन्य शहरों और गांवों में जनजीवन सामान्य हो रहा है. 

असल में लोग शांति से रहना, जीना और अपना कामधंधा करना चाहते हैं. फोन सुविधा चल रही है. इंटरनेट के लिए सरकारी बूथ लगे हैं और समय-सीमा रखी गई है, क्योंकि इंटरनेट और वाट्सएप्प का दुरुपयोग अफवाहें फैलाने, आतंकवादी गतिविधि के लिए होता रहा है. स्कूल-कॉलेज चल रहे हैं. भारत जैसे देश में यह तर्क कुछ अजीब लगता है कि इंटरनेट नहीं होने से छात्नों की पढ़ाई असंभव है. क्या इंटरनेट व्यवस्था का जाल फैलने से पहले हम जैसे लोगों को शिक्षा नहीं मिली या आज भी ग्रामीण क्षेत्नों में कम्प्यूटर के बिना शिक्षा-दीक्षा का काम नहीं हो रहा है?

सबसे दिलचस्प बात यह हुई है कि महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी के सर्वोच्च नेता संरक्षक मुजफ्फर हसन बेग खुलकर नई व्यवस्था का समर्थन कर रहे हैं और कश्मीर की स्थिति बिगाड़ने-भड़कीले भाषण के लिए महबूबा को ही दोषी ठहरा रहे हैं. उनकी पार्टी के अन्य कई पूर्व विधायक, नेता अलग होते जा रहे हैं. इसी तरह कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के कई स्थानीय नेता विद्रोह कर सामान्य व्यवस्था के लिए आगे आते जा रहे हैं. उन्हें जनता के मूड और इच्छाओं का अहसास है. 

इसी तरह प्रशासन में व्यापक बदलाव हो रहा है. भ्रष्ट और पूर्वाग्रही कट्टरपंथी अधिकारी किनारे करके ईमानदार समर्पित अधिकारी तैनात हो रहे हैं. सुरक्षा बलों और पुलिस के बीच अच्छे तालमेल से शांति व्यवस्था बनाना आसान हुआ है. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि कड़ाई के कारण कई अतिवादी विध्वंसक और पाक समर्थक अलगाववादी गुपचुप मौके की तलाश में तैयारियां भी कर रहे हैं. 

गुप्तचर एजेंसियों का अनुमान है कि फिलहाल सुरक्षा कार्रवाई या छापेमारी सीमित रहने से छुपे बैठे आतंकवादियों की संख्या 500 तक हो सकती है. बहरहाल सरकार और प्रतिपक्ष ने कोर्ट के निर्णय के अपने अनुकूल होने के दावे किए हैं. संचार और कानून व्यवस्था की नियमित समीक्षा, सार्वजनिक सूचना देने और उन्हें अदालत में भी चुनौती देने पर किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती है. 

कोर्ट ने स्वयं कोई अधिकार लेने या सरकार की निंदा करने जैसा कदम नहीं उठाया है. प्रदेश और प्रशासन को ही सही न्यायिक काम करते रहने की जिम्मेदारी दी है. वैसे भी पूरे प्रदेश में चौबीस घंटे धारा 144  नहीं लगी है. कुछ संवेदनशील इलाकों में रात को आवागमन नियंत्रित है. धार्मिक स्थानों से बाहर निकल कर भीड़ एकत्रित कर उकसाने वाली गतिविधियों पर अंकुश लगा हुआ है. यों तो पूर्वोत्तर के राज्यों में ऐसी स्थितियां पहले और अब भी रही हैं.

जहां तक नई व्यवस्था को पूरी तरह अपनाने की बात है, जर्मनी के एकीकरण के बाद पूर्व और पश्चिम के लोगों को अपनी पुरानी आदतों- व्यवहार, सामाजिक-आर्थिक नियम-कानून और अपनों को साथ रखने में कुछ वर्ष लगे थे. कम्युनिस्ट व्यवस्था से परिवर्तन को स्वीकारने में पूर्व के लोगों को थोड़ा कष्ट था. भारत के कुछ इलाकों में एक अरसे तक कुछ बुजुर्ग अंग्रेजों के राज को भी अच्छा कहते रहे. इसलिए हड़बड़ी में सब नियंत्रित होने और रातोंरात व्यवस्था में क्रांति की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. 

जिला और पंचायत स्तर पर विकास के काम जारी रहने, आने वाले महीनों में इन्वेस्टर्स मीटिंग के साथ नए उद्योग-धंधों की शुरुआत होने पर कश्मीर की बर्फ धीरे-धीरे पिघलने और प्रगति की हवा बनने का विश्वास किया जाना चाहिए.

Web Title: Alok Mehta blog: Peace in Kashmir by gradually melting snow

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