ब्लॉग: खारघर त्रासदी की जवाबदेही तय की जानी चाहिए
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 18, 2023 03:16 PM2023-04-18T15:16:58+5:302023-04-18T15:18:53+5:30
प्रसिद्ध समाजसेवक अप्पासाहब धर्माधिकारी को महाराष्ट्र भूषण अलंकरण से सम्मानित करने का समारोह निश्चित रूप से भव्य और व्यापक था लेकिन उसके साथ एक ऐसी त्रासदी जुड़ गई जिसे चाहकर भी कभी भुलाया नहीं जा सकेगा.
प्रसिद्ध समाजसेवक अप्पासाहब धर्माधिकारी को महाराष्ट्र भूषण अलंकरण से सम्मानित करने का समारोह निश्चित रूप से भव्य और व्यापक था लेकिन उसके साथ एक ऐसी त्रासदी जुड़ गई जिसे चाहकर भी कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. यह त्रासदी ऐसे समारोहों में भीड़ के उचित प्रबंधन के सवाल को भी खड़ा कर गई जिसका संतोषजनक जवाब आयोजन का जिम्मा संभालने वाले प्रशासनिक अधिकारी शायद ही कभी दे सकें.
इसके विपरीत जिम्मेदारी से बचने की प्रवृत्ति ही नजर आएगी. जिस समारोह में भीड़ का उचित प्रबंधन न कर सकने के कारण चिलचिलाती धूप से दर्जन भर लोगों की जान गई, उस त्रासदी की जिम्मेदारी भला लेगा कौन? यह समारोह बहुप्रतीक्षित था. अप्पासाहब दशकों से महाराष्ट्र के पिछड़े इलाकों खासकर आदिवासी क्षेत्रों में नि:स्वार्थ भाव से वृक्षारोपण, व्यसनमुक्ति तथा रक्तदान एवं सामाजिक कुप्रथाओं के विरुद्ध काम कर रहे थे.
उनके कार्यों का स्पष्ट प्रभाव नजर आता है. उनके प्रयासों से आदिवासी क्षेत्रों में लाखों लोगों ने अपने व्यसनों को छोड़ा, रक्तदान का महत्व समझा, वृक्षारोपण से पर्यावरण संवर्धन के कार्य में योगदान दिया तथा कई सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति पाई. किसी व्यक्ति के अगर लाखों अनुयायी हैं तो वे उसके समर्पित भाव से किए गए कार्यों के व्यापक प्रभाव को दर्शाते हैं.
अप्पासाहब स्वभाव में दूरगामी तथा स्थायी परिवर्तन लाने वाली हस्ती हैं. इसीलिए जब उन्हें महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार देने की घोषणा हुई तो उनके लाखों अनुयायियों में हर्ष की लहर दौड़ गई. महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार वितरण समारोह को अप्पासाहब की लोकप्रियता को देखते हुए व्यापक रूप देने का राज्य सरकार का फैसला उचित हो सकता है लेकिन आयोजन का समय संभवत: गलत था.
राज्य सरकार का अनुमान था कि समारोह में अप्पासाहब के लाखों अनुयायी आएंगे. इसे देखते हुए चिकित्सा से लेकर यातायात प्रबंधन तक के व्यापक कदम उठाए गए थे मगर सबसे बड़ी कमी रह गई थी चिलचिलाती धूप में बैठने वाले लोगों को छाया प्रदान करने की. राज्य में गर्मी का कहर शुरू हो गया है. पारा 40 डिग्री सेल्सियस के पार जा रहा है.
समारोह स्थल खारघर रायगढ़ जिले में है और वह एक ऐसा क्षेत्र है जहां हर वर्ष भीषण गर्मी पड़ती है. भीषण गर्मी में खुले मैदान में जमा लाखों लोगों को छाया उपलब्ध करवाना लगभग असंभव रहता है लेकिन इस समारोह के आयोजन की जिम्मेदारी जिन अफसरों के कंधों पर थी, उन्हें भीषण गर्मी के खतरे की जानकारी नहीं थी. यह तर्क देकर काम नहीं चलाया जा सकता कि किसी भी चिकित्सकीय आपदा से निपटने के लिए इलाज के व्यापक इंतजाम किए गए थे. कुछ सौ डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी इतने बड़े समारोह में किसी भी स्वास्थ्य संबंधी त्रासदी से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं होते.
सबसे बड़ा खतरा लू लगने का था और वैसा ही हुआ. गर्मी से परेशान लोगों ने छातों का सहारा लिया था लेकिन उससे लू का संकट खत्म नहीं होता. मौसम को देखते हुए समारोह ठंड के मौसम में रखा जा सकता था या उसे किसी सभागृह में सीमित स्तर पर रखा जा सकता था. यदि विशाल रूप में उसे भरी गर्मी में आयोजित करना इतना जरूरी समझा गया तो इंडोर स्टेडियम बेहतर विकल्प हो सकता था.
अप्पासाहब के अनुयायी खारघर तो क्या राज्य के किसी भी हिस्से में पहुंच जाते. इंडोर स्टेडियम में भी बड़ी संख्या में लोग आते और रविवार को खारघर में जो हादसा हुआ, वह टल जाता. भीड़ प्रबंधन हमारे देश में बहुत बड़ी समस्या है. आपदा प्रबंधन में निश्चित रूप से हमारे देश ने महारत हासिल करनी शुरू कर दी है.
अब देश में प्राकृतिक आपदाओं का कहर बिना ज्यादा क्षति पहुंचाए गुजर जाता है लेकिन धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक कार्यक्रम जब विशाल रूप में आयोजित होते हैं, तब भीड़ को नियंत्रित कर घटनाएं टालना आयोजकों तथा स्थानीय प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बन जाते हैं. इसीलिए अक्सर ऐसे आयोजनों में भगदड़ मच जाती है.
खारघर में भगदड़ भले ही नहीं मची लेकिन गर्मी के प्रकोप से भीड़ को बचाने के प्रति उदासीनता ने बड़ी त्रासदी को जन्म दे दिया. इस त्रासदी से सबक सीखना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे आयोजनों में किसी तरह की दुखद घटना न हो. हादसे के कारणों की तह तक जाकर उसकी पुनरावृत्ति रोकने के ठोस उपाय किए जाने चाहिए.