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69वां गणतंत्र दिवस: 'झोलंबा' ग्रामीण भारत की एक तस्वीर!

By कोमल बड़ोदेकर | Updated: January 26, 2018 17:39 IST

'झोलंबा' यह नाम शायद ही आपने इससे पहले सुना होगा। दरअसल यह महाराष्ट्र के विदर्भ का एक छोटा सा गांव है।

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आज देश 69वें गणतंत्र दिवस के जश्न में डूबा है। एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य के सिद्धांत के साथ 26 जनवरी 1950 को जब समूचे देश में संविधान लागू किया गया तो आजाद भारत में एक नई उमंग छा गई। लोगों के मौलिक अधिकारों को पहचान मिली। सभी को समानता का अधिकार दिया गया। भारत सरकार ने योजनाबद्ध तरीके से देश के विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएं बनाई। इनमें शहरों के साथ- साथ ग्रामीण भारत के विकास की बात भी प्रमुखता से की गई। लेकिन 69 साल बीत जाने के बाद भी देश के कई इलाके ऐसे हैं जो विकास की मुख्य धारा से अब भी दूर है।

अब तक देश में कुल 12 पंचवर्षीय योजनाएं लागू हुई है। हर बार चुनावों में लोक लुभावने वादे कर सरकार बनाने वाले नेताओं ने देश को जितना छला है उतना शायद ही फिरंगियों ने ठगा होगा। 'विकास' का नारा बुलंद कर सरकार बनाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भाषणों में अपनी उपलब्धताओं को जितना बेहतर ढंग से गिनाते है उतना सटीक काम जमीन पर नजर नहीं आता। अगर ग्रामीण भारत की बात करें तो स्थिति अब भी गंभीर बनी हुई है।

एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देश में कुल 6, 49, 481 गांव है। यहां देश की करीब 70 फीसदी आबादी बसती है। हालांकि अब तक ऐसी कोई सटीक रिपोर्ट सामने नहीं आ पाई जो यह मजबूती के साथ कह सके कि देश के इतने गांवो में बुनियादी सुविधाएं जैसे साफ पानी, बिजली, सड़क मुहैया करवाई जा चुकी है। साल 2016 में स्वतंत्रता दिवस के दिन प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में जिक्र करते हुए कहा था, 'हमारी सरकार ने ग्रामीण भारत के विकास के लिए चालू वित्त वर्ष में 7060 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।' 

इन सबसे इतर चौंकाने वाली बात यह है कि हजारों करोड़ रुपये आवंटित करने के बावजूद भी न तो इन गांवो की स्थिति में कोई सुधार हुआ है और न ही इन गांवो को अन्य गांवो या शहरों से जोड़ने के लिए बेहतर सड़के बनी है। प्रधानमंत्री मोदी दावा करते हुए इस बात को कहते हैं, पिछली सरकार में जहां तीन सालों में 80 हजार किलोमीटर सड़के बनीं वहीं हमारी सरकार ने बीते तीन सालों में 1 लाख 20 हजार किलोमीटर नई सड़कों का निर्माण किया। हमारी सरकार में प्रतिदिन 133 किलोमीटर नई सड़कें बन रही है।"

वहीं 4 जनवरी 2018 को संसद सत्र के दौरान केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा में एक रिपोर्ट पेश करते हुए बताते हैं, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 1 लाख 78 हजार गांवों को सड़को से जोड़ने का काम 2019 तक पूरा किया जाएगा। अब तक 1 लाख 64 हजार गांवो को जोड़ने का काम पूरा किया जा चुका है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत जहां साल 2012 में प्रतिदिन 66 किलोमीटर, 2013-14 में 69 किलोमीटर प्रतिदिन सड़के बन रही थी वहीं साल 2014-15 में मोदी सरकार बनने के बाद 104, साल 2015-16 में 100 और साल 2016-17 के दौरान हमारी सरकार ने 133 किलोमीटर प्रतिदिन नई सड़के बनाई है।

यह आंकड़े पढ़कर आपको विश्वास हो गया होगा कि सरकार तेजी से विकास कर रही है, लेकिन जमीन पर विकास दूर-दूर तक नजर नहीं आता। उदाहरण के लिए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के विदर्भ के एक छोटे से गांव की ही बात करते हैं। 'झोलंबा' यह नाम शायद ही आपने इससे पहले सुना होगा। दरअसल यह महाराष्ट्र के विदर्भ का एक छोटा सा गांव है। नागपुर से करीब 127 और अमरावती से 76 किलोमीटर दूर इस गांव की तालुका वरुड़ है। ये वो गांव है जो देश-दुनिया को बेहतर क्वालिटी के संतरे मुहैया करवाता है जिसे आप नागपुर ऑरेंज के नाम से जानते है। 

केंद्रीयमंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस दोनों ही विदर्भ से ताल्लुक रखते हैं। खास बात यह है कि विदर्भ का यह गांव अब भी आधारभूत समस्याओं के लिए जूझ रहा है। आपको बता दें कि इस गांव में ग्रामीणों की संख्या 1100 से अधिक है। किसी गांव की आबादी अगर कम से कम 500 है तो प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के नियमों के मुताबिक वहां सड़क बनाई जाएगी। 

खैर चौंकाने वाली बात यह है कि इस मामले में जब स्थानीय प्रशासन से जानकारी मांगी तो पहले तो उन्होंने ठीक से कोई जवाब नहीं दिया। वहीं गठ विकास अधिकार ने इस बात को स्वीकारते हुए कहा कि सड़क का निर्माण काफी पहले ही हो चुका है। लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि न तो वहां दूर-दूर तक विकास नजर आता और न ही उनके द्वारा निर्माण की गई वह सड़क जिसकी जानकारी उन्होंने दी।

बहरहाल इस संबंध में जब सांसद रामदास तड़स से बात की गई तो उन्होंने इस मामले को दिखवाने का आश्वासन दिया। बीते कई सालों में यहां के ग्रामीणों को 'विकास' के नाम पर सिर्फ आश्वासन ही मिले हैं। अब देखना यह होगा कि प्रशासन अपने ग्रामीण भारत के प्रति कब संवेदनशील होगा और कब नींद से जाग उनके 'विकास' के लिए काम करेगा। खैर यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल इस एक गांव के माध्यम से हमने आपको बाकी गांवों की स्थिति बताने की कोशिश की है।

सरलता के साथ अगर आखिर में यह कहें कि विकास पूंजी के बल आता है तो शायद कब का आ चुका होता। लेकिन ये गवाही ही शेष है कि हमने जीर्णोद्धार में अपने निर्माण की गति को कहीं खो दिया है। खासकर उस जगह पर जहां, गांधी जी के कथन के अनुसार, भारत देश की आत्मा आज भी गांवों में बसती है।

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