घड़ी में अब दोपहर के एक बज चुके थे, मेरी हालत वैसी ही थी जैसी जल बिन मछली की होती है। मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी। दिल्ली से मेरा घर इलाहाबाद कुछ सौ किलोमीटर दूर है। लेकिन ट्रेन से सफर करना मेरे लिए इस बार बहुत भारी पड़ रहा था। मैं कोई पहली बार घर नहीं जा रही थी। मेरा दिल किसी और वजह से धक-धक कर रहा था। इस बार मैं इलाहाबाद परीक्षा देने जा रही थी। मैंने जिस दिन एग्जाम था उसी दिन सुबह पहुँचने वाली ट्रेन में रिजर्वेशन कराने का रिस्क लिया जो मुझे भारी पड़ा।
12 जनवरी की रात 10:30 बजे जब मैं दुरंतों में बैठी तो लगा बस सुबह घर जाकर घर वालों के साथ नाश्ता करूंगी और एक बजे आराम से अपने एग्जाम सेंटर जाकर अपने मास्टर्स का एग्जाम दे दूंगी। मुझे नहीं पता था नाश्ता तो दूर की बात है भारतीय रेल की वजह से मेरा एग्जाम भी छूट जाएगा। दिल्ली से चलने वाली दुरंतों रात 10:30 बजे निकल कर अगली सुबह 5:55 पर इलाहाबाद पहुंचने वाली थी। हां, मुझे लगा था कि ट्रेन लेट होगी लेकिन 9 घंटे लेट होगी इसकी उम्मीद मैंने नहीं की थी। 12 तारीख की रात जब मैं इलाहाबाद के लिए चली तो मौसम भले ही ठंडा रहा लेकिन कोहरे कुछ खास नहीं था।
अगली सुबह जब सात बजे का अलार्म बजा तो नींद खुली, रेलवे के कर्मचारियों से पूछा की ट्रेन कहां पहुंची है तो पता चला अभी तक कानपुर भी नहीं आया है। दिमाग में एक बार ख्याल आया की कहीं ट्रेन ज्यादा लेट हो गयी तो मेरा एग्जाम छूट जाएगा, लेकिन फिर खुद को समझाया की नहीं अब सूरज निकल आया है, कोहरा भी छट गया है, अब तो बस कुछ घंटें बाद मैं घर पहुँच ही जाऊंगी। यही सोच के किताब निकाला और अपने एग्जाम की तैयारी में जुट गई। पापा का फोन आया तो पता चला दिन के 12 बज गए हैं। मैंने अब सोच लिया था कि बस इलाहाबाद उतरते ही पहले घर जाउंगी और बस सामन रख कर एग्जाम सेंटर निकल जाऊंगी ताकि एग्जाम दे पाऊं।
इन्हीं सब सोच-विचार करते एक घंटा और निकल गया। एक बजते ही मेरी जान हलक तक आ चुकी थी, भारतीय रेल को सिर्फ मैं ही नहीं मेरे सामने बैठा एक शादी-शुदा कपल भी बहुत गरिया रहा था। ध्यान लगा के उनकी बात सुना तो वो इलाहाबाद, शायद किसी डॉक्टर के पास जा रहे थे, शायद डॉक्टर के साथ उनका अपॉइंटमेंट का समय निकल चुका था। बस वो फोन पर विनती कर रहा था कि सर प्लीज ट्रेन बहुत लेट हो गयी है और हमें शाम को निकलना भी है कुछ कर दीजिये, प्लीज, डॉक्टर साहब से मिलवा दीजिये।
रेल मंत्री भले ही एक ट्विट से बच्चे के लिए दूध या डाइपर भेजते हों लेकिन उन बुजुर्गों के लिए खाना, उन दो दम्पत्तियों का डॉक्टर से अपॉइंटमेंट और मेरा एग्जाम, इनका निष्कर्ष कैसे निकालेंगे?? कोई जाकर इनको बोलो कि बुलेट ट्रेन चलाने से पहले सालों से चले आ रहे भारतीय रेल को सही करवाएं। कोहरे में भी ट्रेन की स्पीड कम ना हो, किसी को लेट ना हो कुछ ऐसी व्यवस्था कराएं। "भाइयों और बहनों" बोल कर लोगों को बरगलाने का काम बंद करें और भारतीय रेल के विकास के लिए कुछ काम करें। जिस देश में बुलेट ट्रेन चलने की तैयारी हो रही हो उसमें ट्रेन की इतनी धीमी स्पीड को देखना देश के लिए शर्म की बात है। ऊंचे सपने और इंडियन रेलवे की तरक्की के नए-नए स्कीम लाने वाले रेल मंत्रियों और माननीय प्रधानमंत्री जी को मेट्रो और बुलेट ट्रेन के अलावा कभी-कभी भारतीय रेल में भी सफर करना चाहिए। जिस देश में ट्रेन आठ घंटे का सफर 18 घंटे में पूरा करती हो उस देश में बुलेट ट्रेन चलाना अपने आप से मजाक करना होगा। सिर्फ विदेशों की नकल मार कर आप अपने देश में तरक्की नहीं कर सकते। इसके लिए बड़े कदम और कुछ नयी सोच के साथ आना जरुरी है। वरना हर साल बस हम वोट देंगे और ये नेता अपनी जेब भरते रहेंगे।