आर. के. सिन्हा का ब्लॉग: व्यवहार में हिंदी पा चुकी है विश्व भाषा का स्थान
By आरके सिन्हा | Published: February 17, 2023 12:09 PM2023-02-17T12:09:17+5:302023-02-17T12:18:21+5:30
भारत से दूर प्रशांत महासागर के द्वीप लघु भारत फिजी में 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन का वैदिक मंत्रोच्चार के बीच विधिवत उद्घाटन फिजी के राष्ट्रपति रातू विनिमाये कोटो निवरी और भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त रूप से किया.
भारत से दूर प्रशांत महासागर के द्वीप लघु भारत फिजी में 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन का वैदिक मंत्रोच्चार के बीच विधिवत उद्घाटन फिजी के राष्ट्रपति रातू विनिमाये कोटो निवरी और भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त रूप से किया. इस अवसर पर विश्व के 50 देशों के हिंदी के विद्वान, हिंदी प्रेमी सम्मेलन में भाग लेने के लिए एकत्र होकर इसके विश्वस्तरीय प्रसार-प्रचार पर चर्चा कर रहे हैं.
वहां अनेक शोध पत्र पढ़े जा रहे हैं तथा सारगर्भित चर्चाएं हो रही हैं. व्यवहार की दृष्टि से देखें तो हिंदी अब विश्व भाषा बन चुकी है. अंग्रेजी और चीनी (मैंडरिन) के बाद हिंदी ही लोकप्रिय भाषा के रूप में उभरी है. फ्रेंच, जर्मन और स्पेनिश को पीछे छोड़ते हुए हिंदी लगातार आगे बढ़ रही है. आप दुबई, सिंगापुर, न्यूयाॅर्क, सिडनी, लंदन जैसे संसार के प्रमुख शहरों में इसे सुनेंगे. कभी दुबई जाइए, आपको एयरपोर्ट से लेकर बाजारों में हिंदी सुनाई देगी.
एयरपोर्ट में इमिग्रेशन विभाग में पहुंचिए. वहां अरब के नागरिक बैठे हैं. वे आपसे हिंदी में सवाल-जवाब कर लेंगे. बातचीत संक्षिप्त होगी, पर होगी आपकी भाषा में. हिंदी जानना-समझना भारत से बाहर भी एक व्यावसायिक आवश्यकता बनती जा रही है. बेशक, हिंदी विश्व भाषा बन चुकी है. इसके दो-तीन कारण तो समझ में भी आते हैं. पहला, पूरी दुनिया में दो करोड़ से ज्यादा प्रवासी भारतीय बसे हुए हैं.
ये भारतीय अपने साथ हिंदी भी लेकर बाहर गए हैं. भले ही कोई दक्षिण भारतीय शख्स भारत में तमिल में ही बतियाता हो, पर देश से बाहर वह भी किसी अन्य भारतीय के साथ हिंदी ही बोलता है. हिंदी प्रेम और मानवीय संवेदनाओं की बेजोड़ भाषा है. भारत से बाहर लगभग सभी टैक्सी वाले भी कुछ न कुछ हिंदी समझ लेते हैं. कम से कम एकाध लाइन हिंदी फिल्मों का गाना तो गुनगुना ही देते हैं.
फिजी में चल रहे विश्व हिंदी सम्मेलन में बॉलीवुड के किसी अभिनेता, अभिनेत्री, गीतकार, संवाद लेखक आदि का न होना जरूर खला. क्या हिंदी सेवी सिर्फ स्कूल-कॉलेज में पढ़ाने वाले हिंदी के अध्यापक, पत्रकार, कवि या कहानीकार ही हैं? यह स्वीकार करना होगा कि हिंदी को दुनिया के कोने-कोने में लेकर जाने में हिंदी फिल्मों का उल्लेखनीय योगदान रहा है. आज सारी दुनिया में हिंदी फिल्मों के चाहने वाले हैं.
ये सब हिंदी फिल्मों की मार्फत हिंदी गानों के प्यार से हिंदी से जुड़ रहे हैं. इस विश्व हिंदी सम्मेलन में शायद ही किसी गैर-हिंदी भाषी राज्यों के हिंदी विद्वान को लेकर जाया गया. जबकि भारत के दक्षिण और पूर्वोत्तर के राज्यों में हिंदी के गैर-हिंदी भाषी सैकड़ों शिक्षकों ने बेहतरीन काम किया है.