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ऑटिज्म पीड़ित भी जी सकते हैं सामान्य जीवन

By रमेश ठाकुर | Updated: April 2, 2025 07:41 IST

विश्व में ऑटिज्म निदान की उच्चतम दर वाला देश कतर है और सबसे कम दर वाला फ्रांस. रिपोर्ट ये भी बताती है कि लड़कियों की तुलना में लगभग 4 गुना अधिक लड़के ऑटिज्म से पीड़ित हैं.

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ऑटिज्म एक विकास संबंधी विकार है जो जन्मजात होता है. इसके प्रति जनजागृति लाने के लिए ही हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है. मौजूदा वक्त में इस बीमारी को लेकर चिंताएं इसलिए भी बढ़ी हुई हैं, क्योंकि सालाना करीब 10 हजार बच्चे सिर्फ भारत में ही जन्म के साथ ऑटिज्म से ग्रस्त हो रहे हैं. ये आंकड़ा विगत वर्षों में कुछ ज्यादा ही बढ़ा है. दु:ख इस बात का है कि इस बीमारी की न तो अभी तक कोई दवा है, न ही रोकथाम का समुचित इंतजाम. लेकिन ध्यान दिया जाए तो वे भी सामान्य जीवन जी सकते हैं.

बीमारी की गंभीरता को देखते हुए ‘संयुक्त राष्ट्र’ ने सर्वसम्मति से 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म दिवस मनाने का निर्णय लिया था. अप्रैल 1988 को राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने इस दिवस को मनाने की वकालत सबसे पहले की थी. डब्ल्यूएचओ की मानें तो भारत में इस वक्त करीब 1.8 करोड़ बच्चे ऑटिज्म से पीड़ित हैं. 2-9 वर्ष की आयु के 1-1.5 प्रतिशत बच्चों में ऑटिज्म यानी एएसडी है.

वर्तमान में अमेरिका कुछ ज्यादा ही पीड़ित है. रोग नियंत्रण संबंधी अमेरिका की सीडीसी रिपोर्ट बताती है कि वहां लगभग 36 में से एक बच्चा ऑटिज्म से ग्रस्त है. संसार भर की बात करें तो दुनिया की एक फीसदी आबादी इस वक्त ऑटिज्म से पीड़ित है.

सन् 2022 में सीडीसी द्वारा किए गए शोध के मुताबिक, दुनिया में ऑटिज्म से पीड़ितों की संख्या 7.5 करोड़ थी. तमाम देशों के वैज्ञानिक इसके टीके और दवाई को लेकर रिसर्च करने में लगे हैं, पर अफसोस, अभी तक कोई सफल नतीजे तक नहीं पहुंच पाया है. विश्व में ऑटिज्म निदान की उच्चतम दर वाला देश कतर है और सबसे कम दर वाला फ्रांस. रिपोर्ट ये भी बताती है कि लड़कियों की तुलना में लगभग 4 गुना अधिक लड़के ऑटिज्म से पीड़ित हैं.

वैश्विक स्तर पर तमाम देशों के प्रतिनिधियों ने साल 2008 में ‘कन्वेन्शन ऑन द राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसएबिलिटीज’ लागू कर अक्षम लोगों के मानव अधिकारों की रक्षा और प्रोत्साहन सुनिश्चित करने का संकल्प लिया ताकि ऑटिज्म से पीड़ित सभी वयस्क और बच्चों की सही देखरेख सुनिश्चित करने पर जोर दिया जा सके.

पीड़ित अपना जीवन उद्देश्यपूर्ण तरीके से जिए, इसकी पैरवी अपने स्तर पर यूनीसेफ और डब्ल्यूएचओ करते आए हैं.

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