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Goa Nightclub Fire: गोवा अग्निकांड हादसा नहीं, लापरवाही

By विजय दर्डा | Updated: December 15, 2025 05:41 IST

Goa Nightclub Fire: सच सुनना नहीं चाहता और सच के बारे में कुछ कहने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. गोवा अग्निकांड इसी का नतीजा है.

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ठळक मुद्देचेयरमैन सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश होते हैं. पर्यटन में वह ताकत होती है कि वह किसी देश की किस्मत बदल दे.अच्छे पर्यटन की हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं?

Goa Nightclub Fire: गोवा के बारे में कहा जाता है कि यहां के दिन तो खुशनुमा और मौज-मस्ती से भरे होते ही हैं, यहां की रातें भी बड़ी रंगीन होती हैं! मगर चमचमाती रोशनी से नहाए गोवा की रातों का एक स्याह चेहरा भी है, जहां दबंगई है, भ्रष्टाचार है, ड्रग्स का काला कारोबार है और इन सबके बीच बेलगाम घूमते मौत के सौदागर भी हैं. स्थानीय प्रशासन गांधीजी के तीन बंदरों की तरह है, जिसके बारे में कई लोग सोचते हैं कि वह सच देखना नहीं चाहता, सच सुनना नहीं चाहता और सच के बारे में कुछ कहने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. गोवा अग्निकांड इसी का नतीजा है.

इस अग्निकांड के बारे में बात शुरू करने के पहले मैं इस बात का जिक्र करना चाहता हूं कि पर्यावरण पर ध्यान रखने के लिए हमारे देश में ग्रीन ट्रिब्यूनल बना है जिसके चेयरमैन सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश होते हैं. जिस देश में पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा जाता, वहां अच्छे पर्यटन की हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं? पर्यटन में वह ताकत होती है कि वह किसी देश की किस्मत बदल दे.

स्पेन इसका उदाहरण है. उसकी अर्थव्यवस्था चौपट हो गई थी लेकिन पर्यटन के माध्यम से अपनी आर्थिक सेहत सुधारने में स्पेन कामयाब रहा. मगर भारत में पर्यटन की क्या स्थिति है? मैंने पहले भी अपने कॉलम में लिखा है कि पर्यटक दो तरह के होते हैं. एक तो अपने देश से आने वाले पर्यटक हैं और दूसरे हैं अंतरराष्ट्रीय पर्यटक.

बाहर से आने वालों में कुछ पर्यटक ऐसे होते हैं जिनकी जेब भरी होती है और दूसरे वो होते हैं जिनकी जेब में बस कामचलाऊ पैसा होता है. दुर्भाग्य से गोवा में कम पैसे वाले पर्यटक ज्यादा होते हैं. कईयों की जेब में तो लौटने के पैसे तक नहीं होते हैं. फिर वो हर तरह के धंधे करते हैं. गोवा में यही हो रहा है. मैंने संसद में भी यह मामला उठाया था लेकिन गोवा में ऐसा नेक्सस है कि किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता.

एक बात और कि विदेश में समुद्र तटों के संंरक्षण पर खास ध्यान दिया जाता है. वहां के पर्यावरण को क्षतिग्रस्त करने की इजाजत किसी को नहीं होती लेकिन हमारे यहां क्या हो रहा है? हमने नियम बना दिए कि समुद्र तट के 500 मीटर तक कोई निर्माण नहीं होगा लेकिन हमारे यहां इस 500 मीटर के भीतर ही हर तरह के धंधे हो रहे हैं.

यहां के कैसिनो पर्यावरण का ध्यान नहीं रख रहे हैं जिससे मरीन लाइफ प्रभावित हो रही है. जलीय जंतुओं में बीमारियां फैल रही हैं. हमने प्रमाण सहित खबरें भी प्रकाशित की थीं लेकिन स्थानीय शासन के कानों पर जूं नहीं रेंगी. अवैध रूप से निर्मित जिस नाइट क्लब में आग लगी, वह पणजी से 25 किलोमीटर दूर ऐसे इलाके में है जहां ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी, ऐसे अधकच्चे रास्ते से होकर जाना पड़ता है कि राहत पहुंचाने में भी वक्त लग जाए. लोग आग से बचने के लिए बेसमेंट की तरफ भागे जहां वेंटिलेशन नहीं था. भागने का कोई रास्ता नजर नहीं आया.

इलेक्ट्रिक फायर क्रैकर्स से जो चिनगारियां निकलीं उसने लकड़ी की सीलिंग को अपनी चपेट में ले लिया. जब छतों में लकड़ी की सीलिंग थी तो फिर इलेक्ट्रिक फायर क्रैकर्स चलाए ही क्यों गए? और इसके अवैध निर्माण को लेकर 2023 में ही शिकायत हो गई थी. फिर सीवेज नदी में बहाने की शिकायत हुई.

जनवरी 2024 में अरपोरा पंचायत ने क्लब का निरीक्षण किया था और अवैध ढांचे के लिए दो महीने बाद मार्च में नोटिस जारी किया. क्लब के मालिक गौरव और सौरभ लूथरा ने कोई जवाब ही नहीं दिया. राजस्व अधिकारियों ने नोटिस दिया कि क्लब कृषि भूमि पर बना हुआ है. एक नोटिस कोस्टल जोन मैनेजमेंट अथॉरिटी ने भी दिया लेकिन लूथरा बंधुओं का ऐसा जलवा था कि सारे नोटिस रद्दी की टोकरी में डाल दिए.

हकीकत यही है कि पूरे देश के राजनीतिक संरक्षण वाले दबंगों के लिए गोवा लूट का अड्डा बना हुआ है. दिल्ली के लूथरा बंधुओं  के लिए भी गोवा का उनका नाइट क्लब केवल पैसा कमाने का जरिया था. कोई मरे या जिए, उन्हें क्या फर्क पड़ता है! आग की घटना में 25 लोगों की मौत के बाद उनका अमानवीय बर्ताव इसकी गवाही देता है.

रात सवा एक बजे उन्हें भीषण अग्निकांड की जानकारी मिली. यदि उनमें मानवीयता होती तो वे मातमपुर्सी के लिए गोवा पहुंचते लेकिन उन्होंने तो थाईलैंड के लिए हवाई टिकट बुक कराया और सुबह 5.30 बजे उड़ चले. बहरहाल, वे अब थाईलैंड पुलिस की गिरफ्त में हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय कानून के दायरे में वे जल्दी लाए जाएंगे.

एक बड़ा सवाल यह भी है कि कैसिनो और नाइट क्लबों का गोरखधंधा, सुरक्षा के प्रति भारी लापरवाही और ड्रग्स का जो खुला खेल गोवा में चल रहा है, उसे कौन रोकेगा? वहां कानून-व्यवस्था की स्थिति कौन सुधारेगा? 2013 में तब के जाने-माने पत्रकार तरुण तेजपाल द्वारा सहकर्मी के साथ छेड़खानी का मामला तो सामने आ गया था, छेड़खानी के कई मामले बस दबे ही रह जाते हैं.

ड्रग्स ने हालत और खराब की है. 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने स्वीकार किया था कि गोवा में ड्रग्स तस्करी होती है. इसी साल अप्रैल में गोवा में 43 करोड़ की कोकीन जब्त की गई. इससे पहले फरवरी में एक जर्मन नागरिक और मार्च में नाइजीरिया के नागरिक को गिरफ्तार किया गया था. ये गिरफ्तारियां तो बस छोटा सा हिस्सा हैं.

ध्यान रखिए कि जब किसी इलाके में ड्रग्स का पैसा प्रवाहित होता है तो उसके साथ कई बुराइयां पैदा होती हैं. आज गोवा में टैक्सी माफिया का बोलबाला है. दक्षिणी गोवा से यदि आपको मनोहर पर्रिकर विमानतल जाना हो तो टैक्सी वाले पांच हजार रुपए मांगते हैं! क्या सरकार को यह पता नहीं है?

चलते-चलते एक आंकड़ा आपके सामने रखना चाहूंगा कि कोविड से पहले 2019 में 90 लाख अंतरराष्ट्रीय पर्यटक गोवा आए थे. पिछले साल केवल 15 लाख अंतरराष्ट्रीय पर्यटक ही आए. ऐसा क्यों? एक बात और कहना चाहूंगा कि मैं नाइट क्लब के खिलाफ नहीं हूं लेकिन पहली जरूरत इस बात का ध्यान रखना है कि नाइट क्लब स्तरीय हों और पूरी तरह से सुरक्षित हों. गोवा इस वक्त वाकई संकट में है.

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