छत्रपति संभाजीनगर के चिकलथाना औद्योगिक परिसर में चलने वाले जिस अंतर्राष्ट्रीय फर्जी कॉल सेंटर का पुलिस ने पर्दाफाश किया है, वह हैरान करने वाला है. पुलिस ने वहां काम करने वाले एक-दो या दस-बीस नहीं बल्कि पूरे 116 युवक-युवतियों को हिरासत में लिया है. इतने कर्मचारियों के साथ यह फर्जी कॉल सेंटर पिछले एक साल से ठगी की घटनाओं को अंजाम दे रहा था और कार्रवाई के लिए जिम्मेदार सरकारी विभागों को जरा भी खबर नहीं लगी!
इस फर्जी कॉल सेंटर से विदेशी, विशेषकर अमेरिकी नागरिकों को ठगा जाता था. हम भारतीयों से साइबर ठगी करने के लिए जिस तरह नाइजीरियाई कुख्यात हैं, वैसे ही ये ठग भी विदेशियों की नजर में क्या हम भारतीयों को बदनाम नहीं कर रहे थे? ऐसा भी नहीं है कि वहां काम करने वाले युवाओं को पता न रहा हो कि वे कितना गलत काम कर रहे हैं. महंगी-महंगी गाड़ियों में वे रात में आकर काम करते थे, इमारत के अंदर की गतिविधियां बाहर न दिखें, इसलिए भारी पर्दे लगाए गए थे और स्थानीय लोगों का कहना है कि लौटते समय इनके हाथों में बड़े-बड़े बैग रहते थे.
इसलिए इस ठगी के सूत्रधारों पर तो कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी ही चाहिए, उनका मोहरा बनने वालों को भी बख्शा नहीं जाना चाहिए. अभी कुछ दिन पहले ही पुणे में भी बड़े पैमाने पर चल रहे फर्जी कॉल सेंटरों का भंडाफोड़ वहां की पुलिस ने किया था. पुलिस की कार्रवाई वहां मई में शुरू हुई थी.
पुणे के खराडी इलाके में एक कॉल सेंटर पर छापा मारा था, जहां से 5 लोगों को गिरफ्तार किया गया और 123 लोगों पर मामला दर्ज किया गया. इसके बाद जुलाई में, इसी इलाके में सीबीआई ने एक और अवैध कॉल सेंटर पर छापा मार कर 3 और संदिग्धों को पकड़ा था. 1 अक्तूबर को पुणे क्राइम ब्रांच ने हडपसर में तीसरे कॉल सेंटर पर छापा मार कर वहां 32 लोगों पर इसी तरह के अपराधों के लिए मामला दर्ज किया था.
इन घटनाओं से उन लोगों को भी सतर्क हो जाना चाहिए, जो अपने डाटा की सुरक्षा पर ध्यान नहीं देते हैं. आजकल बहुत सी कंपनियां लोगों का संवेदनशील डाटा एकत्रित करके उन्हें कई सुविधाएं नि:शुल्क देने की पेशकश करती हैं. मुफ्त के लालच में लोग अपना डाटा बांटने में संकोच नहीं करते, लेकिन उन्हें पता नहीं होता कि उसी डाटा को वे कंपनियां साइबर ठगों को कितने महंगे दामों में बेचती हैं.
बाद में यही ठग उस डाटा के बल पर लोगों को ब्लैकमेल करके पैसे ऐंठते हैं. इसलिए जहां सरकार को ऐसे साइबर ठगों पर बेरहमी से कार्रवाई करनी होगी, वहीं लोगों को भी अपने डाटा की सुरक्षा के प्रति सतर्क रहते हुए ‘मुफ्त’ के झांसों से बचना होगा, क्योंकि हकीकत यही है कि मुफ्त जैसी कोई भी चीज नहीं होती, किसी न किसी तरह से, कहीं न कहीं उसकी कीमत चुकानी ही पड़ती है.