रेणु जैन
पूजा हो या रसोई, नारियल एक ऐसा फल है जिसके प्रत्येक भाग का हम तरह-तरह से उपयोग करते हैं. कहा जाता है कि नारियल की खेती हमारे देश के एक करोड़ नागरिकों को रोजगार देती है. यही वजह है कि नारियल उद्योग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से दो सितंबर को विश्व नारियल दिवस मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत 1969 में एशियाई देशों से हुई. देश का 90 फीसदी नारियल केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा आंध्रप्रदेश में पैदा होता है. नारियल का कई तरह से उपयोग करके इसके कई भागों से विभिन्न वस्तुएं भी बनाई जाती हैं.
देश के साथ-साथ दुनिया के अन्य देशों में इसका व्यापार भी किया जाता है. इससे बनी वस्तुओं के निर्यात से हमारे देश को लगभग 470 करोड़ की आय होती है. विश्व नारियल दिवस मनाने का उद्देश्य नारियल को उद्योगों के लिए कच्चे माल के रूप में उपयोग किए जाने को प्रोत्साहन देना और इसके उपयोग के प्रति जागरूकता फैलाना है.
इससे एक बड़ा फायदा प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने का भी होगा क्योंकि पॉलीथिन को हटाकर नारियल की जटाओं से बने थैलों को बाजार में उतारकर इस समस्या से निजात पाने में सफलता मिल सकती है. श्रीफल या नारियल एक ऐसा मांगलिक प्रतीक या चिन्ह है जिसके माध्यम से हम सुख, कल्याण व उत्तम स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं. प्राचीन समय से ही श्रीफल का प्रयोग हो रहा है.
नारियल के पेड़ से हर साल 70 से 100 नारियल मिलते है. ये पेड़ 80 वर्ष तक फल देता है. कहा जाता है कि 1. 5 करोड़ नारियल के पेड़ अकेले केरल में हैं. इसलिए केरल को कोकोनट लैंड भी कहा जाता है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा नारियल उत्पादक देश है. बीसवीं शताब्दी तक निकोबार द्वीप पर सामान खरीदने के लिए साबुत नारियल का इस्तेमाल बतौर करेंसी किया जाता था.
नारियल के पेड़ का प्रत्येक भाग किसी न किसी काम में आता है. पेड़ का तना मकान की छत तथा फर्नीचर बनाने के काम में आता है. पत्तों से पंखे, टोकरियां, चटाइयां तथा घरों के छप्पर, छाजन बनते हैं. नारियल की जटाओं से रस्सी, ब्रश, जाल, थैले आदि अनेक उपयोगी चीजें बनाई जाती हैं. इन्हें गद्दों में भी भरा जाता है.