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River Linking Project: नदियां जोड़ने के बजाय नदी से तालाब जोड़ें

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: February 16, 2024 11:22 IST

River Linking Project: सन्‌ 2010 में पहली बार जामनी नदी को महज सत्तर करोड़ के खर्च से टीकमगढ़ जिले के पुश्तैनी विशाल तालाबों तक पहुंचाने और इससे 1980 हेक्टेयर खेतों की सिंचाई की योजना तैयार की गई.

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ठळक मुद्देबड़ी सफलता के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है. योजना अब 44 हजार 650 करोड़ की हो गई.योजना में न तो कोई विस्थापन होना था और न ही कोई पेड़ काटना था.

River Linking Project: प्यास-पलायन-पानी के कारण कुख्यात बुंदेलखंड में हजार साल पहले बने चंदेलकालीन तालाबों को छोटी सदानीर नदियों से जोड़ कर मामूली खर्च में कलंक मिटाने की योजना  आखिर हताश होकर ठप हो गई. ध्यान दें कि बीते ढाई दशकों से यहां केन और बेतवा नदियों को जोड़ कर इलाके को पानीदार बनाने के सपने बेचे जा रहे हैं. हालांकि पर्यावरण के जानकार बताते रहे हैं कि इन नदियों के जोड़ने से बुंदेलखंड तो घाटे में रहेगा लेकिन कभी चार हजार करोड़ की बनी योजना अब 44 हजार 650 करोड़ की हो गई और इसे बड़ी सफलता के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है. सन्‌ 2010 में पहली बार जामनी नदी को महज सत्तर करोड़ के खर्च से टीकमगढ़ जिले के पुश्तैनी विशाल तालाबों तक पहुंचाने और इससे 1980 हेक्टेयर खेतों की सिंचाई की योजना तैयार की गई.

इस योजना में न तो कोई विस्थापन होना था और न ही कोई पेड़ काटना था. सन्‌  2012 में काम भी शुरू हुआ लेकिन पूरा नहीं हुआ.जामनी नदी बेतवा की सहायक नदी है और यह सागर जिले से निकल कर कोई 201 किमी का सफर तय कर टीकमगढ़ जिले में ओरछा में बेतवा से मिलती है. आमतौर पर इसमें सालभर पानी रहता है, लेकिन बारिश में यह ज्यादा उफनती है.

योजना तो यह थी कि बम्होरी बराना के चंदेलकालीन तालाब को नदी के हरपुरा बांध के पास से एक नहर द्वारा जोड़ने से तालाब में सालभर लबालब पानी रहे. इससे 18 गांवों के 1800 हेक्टेयर खेत सींचे जाएंगे. यही नहीं नहर के किनारे कोई 100 कुएं बनाने की भी बात थी  जिससे इलाके का भूगर्भ स्तर बना रहता. हुआ यूं कि इस योजना की शुरुआत 2012 में हुई और बीते दस सालों में कम से कम दस बार हरपुरा नहर ही टूटती रही. पिछले साल अगस्त में अचानक तेज बरसात आई तो 41 करोड़ 33 लाख लागत की हरपुरा नहर पूरी ही बह गई.

पहली बार जब नहर में नदी से पानी छोड़ा गया तो सिर्फ चार तालाबों में ही पानी पहुंचा था, जबकि पहुंचना था 18 में. नहर बनाने में तकनीकि बिंदुओं को सिरे से नजरअंदाज किया गया था. इसे कई जगह लेवल के विपरीत ऊंची-नीची कर दिया गया था. शुरुआत में ही नहर का ढाल महज सात मीटर रखा गया, जबकि कई तालाब इससे ऊंचाई पर हैं, जाहिर है वहां पानी पहुंचने से रहा.

इसलिए धीरे-धीरे एक शानदार योजना कोताही का कब्रगाह बन गई. यह समझना होगा कि देश में जलसंकट का निदान स्थानीय और लघु योजनाओं से ही संभव है. ऐसी योजनाएं जिनसे स्थानीय समाज का जुड़ाव हो  और यदि जामनी नदी से तालाबों को जोड़ने का काम सफल हो जाता तो सारे देश में एक बड़ी परियोजना से आधे खर्च में नदियों से तालाबों को जोड़ कर खूब पानी संजोया जाता. शायद तालाबों पर कब्जा करने वाले, बड़ी योजनाओं में ठेके और अधिग्रहण से मुआवजा पाने वालों को यह रास नहीं आया.

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