ब्लॉग: विश्व में एक मैन्युफैक्चरिंग हब की तरह उभर सकता है भारत, इंडस्ट्री की बढ़ रही मांग
By ऋषभ मिश्रा | Published: May 18, 2023 11:39 AM2023-05-18T11:39:15+5:302023-05-18T11:45:42+5:30
भारत में मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों को लेकर एक नई आशा विश्व की दिग्गज टेक कंपनियों की तरफ से आ रहे निवेश प्रस्तावों की वजह से इसकी जरूरत काफी अधिक महसूस की गई है।
देश में मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों खासकर इलेक्ट्रॉनिक सेक्टर में कोविड काल के बाद जबरदस्त तेजी देखी जा रही है।
मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों को लेकर एक नई आशा विश्व की दिग्गज टेक कंपनियों की तरफ से आ रहे निवेश प्रस्तावों की वजह से भी जगी है।
पिछले कई दशकों से भारत में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का देश की जीडीपी में योगदान 15 फीसदी के आसपास बना हुआ है, जिसे अब सरकार ने अगले दो साल में 25 फीसदी तक करने का लक्ष्य रखा है।
हालांकि, मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में नित नई उम्मीदें बंधने के बावजूद भारत चीन से अब भी काफी पीछे है। चीन में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का जीडीपी में योगदान 27 फीसदी है।
वहां कुल विनिर्माण भारत से 10 गुना ज्यादा है, यानी भारत को चीन के बराबर आने में दस गुना अधिक तेज चलना होगा।
‘इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च’ की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद एफडीआई यानी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के मामले में देश का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर सर्विस सेक्टर से काफी पीछे है।
सर्विस सेक्टर में अप्रैल 2014 से मार्च 2022 के बीच 153 अरब डॉलर का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) हुआ, जबकि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में इसी अवधि के दौरान 94 अरब डॉलर का एफडीआई दर्ज किया गया है।
ये आंकड़े दर्शाते हैं कि कुछ खास सेक्टरों को छोड़ मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को लेकर विदेशी निवेशक अब भी आश्वस्त नहीं हैं।
हालांकि, वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 21 अरब डॉलर का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश हुआ जो पिछले वित्त वर्ष यानी 2020-21 के मुकाबले 76 फीसदी ज्यादा है।
सरकार की प्रोत्साहन नीतियों, अमेरिका व चीन के बीच जारी तनाव, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में आई बेहतरी, सस्ता लेबर और डिजिटाइजेशन जैसी वजहों से देश में इलेक्ट्रॉनिक व ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है और उम्मीद है कि आने वाले समय में यह स्थिति और बेहतर होगी।
लेकिन अन्य क्षेत्रों में मैन्युफैक्चरिंग को लेकर स्थिति अब भी काफी निराशाजनक है। इन क्षेत्रों में विदेशी निवेश की स्थिति भी काफी धीमी है।
सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम, लेबर लॉ, लैंड एक्वीजिशन, स्किल्ड लेबर, कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर, टैरिफ और सरकार की नीतियों को लेकर स्पष्टता और स्थायित्व अभी भी कुछ ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जिन पर बहुत काम किए जाने की जरूरत है।
इसके साथ निर्यात बढ़ाने और एमएसएमई सेक्टर को और प्रोत्साहित करने पर भी अत्यधिक ध्यान देने की दरकार है। अगर आने वाले समय में इन मुद्दों को सुलझा लिया जाता है तो भारत के लिए मैन्युफैक्चरिंग हब बनना आसान होगा।