इन दिनों मेरे लबों पर बार-बार पाकिस्तानी शायर कतील शिफाई की गजल तैरती रहती है...चांदी जैसा रंग है तेरा...! शायर ने चांदी के सौंदर्य को शब्दों में ऐसा ढाला और पंकज उधास ने ऐसा गाया कि हर किसी का गुनगुनाना लाजिमी हो गया! चलिए, आज इसी चांदी पर बात करते हैं. चांदी का वैज्ञानिक महत्व तो है ही, भारतीय परंपरा में चांदी को शुभ्रता, समृद्धि, सौम्यता, शक्ति और ईश्वरीय ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. देवाधिदेव महादेव ने भी अपने मुकुट पर चांद के रूप में चांदी धारण कर रखा है. भगवान की मूर्तियां चांदी में गढ़ी जाती हैं. चांदी की प्लेट पर न जाने कितने ग्रंथों को उकेरा गया है.
हमारे संत चांदी के ग्लास में पानी पीते हैं. हमें किसी को सम्मान देना रहता है तो चांदी की थाली में खाना खिलाते हैं. बच्चों को पहला निवाला चांदी के चम्मच में खिलाने की परंपरा है. समृद्धि को लेकर एक मुहावरा भी है- चांदी का चम्मच लेकर पैदा होना! चांदी की शक्ति को लेकर भी एक कहावत बहुत प्रचलित है- पास में चांदी का जूता हो या फिर पावर हो.
इसीलिए कवि और शायर चांदी और चांद को लेकर सौंदर्य के प्रतिमान गढ़ते रहे हैं. कतील शिफाई ने लिखा...चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल/ इक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कंगाल! लेकिन क्या ये लिखते वक्त कतील ने ये सोचा होगा कि चांदी किसी दिन इतनी कातिल भी हो जाएगी? शायर ने लिखा- हर आंगन में आए तेरे उजले रूप की धूप/छैल-छबेली रानी थोड़ा घूंघट और निकाल!
और मजा देखिए कि इस गोरी ने घूंघट ऐसा निकाला कि दुनिया कह उठी...हाय री चांदी! और अगली पंक्ति पर गौर करिए- सामने तू आए तो धड़कें मिल कर लाखों दिल/अब जाना धरती पर कैसे आते हैं भौंचाल! तो, इन दिनों चांदी को लेकर दुनिया में भूचाल ही तो मचा है! किसने सोचा था कि साल 2000 में जो चांदी 7900 रुपए प्रति किलो थी वह 2025 में तीस गुना से ज्यादा भाव खा रही होगी!
चांदी का मौजूदा हाल शायर की एक और पंक्ति पर दाद देने को मजबूर कर रहा है...बीच में रंग-महल है तेरा खाई चारों ओर/हम से मिलने की अब गोरी तू ही राह निकाल! मगर क्या कहें... हमारे आपके जैसे उसके प्रेमी उसके भाव खाने की अदा में ही उलझे जा रहे हैं! चलिए, गजल की अंतिम पंक्ति को भी याद कर लेते हैं...ये दुनिया है खुद-गरजों की लेकिन यार ‘कतील’/तूने हमारा साथ दिया तो जिए हजारों साल!
इसीलिए तो बड़े-बुजुर्ग एक कहावत भी रच गए हैं...चांदी काटना! यानी बड़ी शान के साथ और मस्ती में रहना! बहरहाल सवाल है कि चांदी क्यों इतना भाव खा रही है? क्यों सोने से भी ज्यादा उछल रही है? बिल्कुल सामान्य भाषा में बताएं तो तकनीकी उन्नति के साथ इसकी मांग बेतहाशा बढ़ती जा रही है.
इलेक्ट्रिक वाहनों, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, सोलर पैनल के निर्माण से लेकर डिफेंस तक में इसकी खूब खपत हो रही है. चीन इसमें सबसे आगे है. चीन ने 2022 में केवल सोलर उद्योग में ही 4000 टन चांदी की खपत की. सोचिए, मौजूदा खपत क्या होगी? चीन के पास करीब 70 हजार मीट्रिक टन चांदी का भंडार है. हर साल 3300 मीट्रिक टन से ज्यादा उत्पादन करता है.
6000 मीट्रिक टन सालाना उत्पादन के साथ मैक्सिको पहले नंबर पर है. जहां तक भारत का सवाल है तो 2024 में चांदी का वैश्विक उत्पादन 25000 मीट्रिक टन था, जबकि भारत में उत्पादन 700 मीट्रिक टन था. इसमें ज्यादातर उत्पादन अनिल अग्रवाल के नेतृत्व वाले वेदांता समूह की कंपनी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड करती है.
उदयपुर की जावर खदान देश की सबसे बड़ी चांदी की खदान है. वैसे आंध्रप्रदेश, झारखंड और कर्नाटक में भी चांदी के भंडार हैं और उत्पादन भी होता है. भारत चांदी का जितना उत्पादन करता है, उससे कई गुना ज्यादा खपत करता है. ज्यादातर हिस्सा जेवर के रूप में होता है लेकिन अब दूसरे सेक्टर में भी मांग तेज हो चुकी है तो चांदी का भाव खाना लाजिमी है.
मगर दुनिया में एक बड़ी चिंता भी सता रही है! क्या चांदी धरती की कोख से सदा हमें मिलती रहेगी? अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, दुनिया के पांच लाख तीस हजार टन चांदी के खनिज भंडार अगले आठ वर्षों में खत्म हो जाएंगे. जो प्रमाणित भूमिगत भंडार हैं, उन्हें भी जोड़ लें तो चांदी का उत्पादन चौदह-पंद्रह वर्षों तक के लिए ही पर्याप्त होगा.
बहुत हुआ तो अगले बीस वर्ष तक! हम तो बस यही उम्मीद करें कि और भंडार मिले, नहीं तो कैसे गा पाएंगे...चांदी जैसा रूप है तेरा...! अब चलिए, आपको एक बड़ी दिलचस्प जानकारी देता हूं. क्या आपको पता है कि अमेरिका ने जो पहला परमाणु बम बनाया, उसके निर्माण की प्रक्रिया के लिए एक बहुत ही शक्तिशाली चुंबक की जरूरत थी.
ऐसा चुंबक बनाने के लिए करीब 12 से 14 हजार टन चांदी का उपयोग किया गया था. चांदी बम का हिस्सा नहीं थी लेकिन चांदी के बिना बम कातिल कैसे बनता? ये चांदी वाकई बहुत ही कातिल है. बहरहाल मुझे ब्रिटिश कवि वाल्टर डे ला मारे की कोई सौ साल पहले लिखी गई एक कविता याद आ रही है...
धीरे-धीरे, चुपचाप, अब चांद/ अपनी चांदी की जूतियों में/ रात में विचरण करता है/इधर-उधर देखता है/और चांदी के पेड़ों पर चांदी के फल देखता है.
चांदी वाकई चांदी के पेड़ पर चढ़ गई है.
सोने की बात फिर कभी...!'