भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होने के दावे की सच्चाई
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 28, 2019 07:25 AM2019-04-28T07:25:10+5:302019-04-28T07:25:10+5:30
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा बनाए गए पर्यावरण सूचकांक में इंग्लैंड को छठा रैंक मिला था जबकि भारत को 177वां. इसका महत्व यह है कि भारत में प्रदूषण अधिक है और उस प्रदूषण को उत्पन्न करने में एवं उससे राहत पाने के लिए हम अपना जीडीपी बढ़ा रहे हैं.
वर्ष 2014 में भाजपा ने आर्थिक विकास के मुद्दे पर चुनाव जीते थे. भाजपा का कहना था कि कांग्रेस में निर्णय लेने की क्षमता नहीं रह गई थी. भाजपा अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढाएगी जिससे कि तमाम रोजगार उत्पन्न होंगे. बीते समय में तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने भारत को शाबासी भी दी है. कहा है कि विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत सबसे तेजी से आर्थिक विकास की राह पर चल रहा है और शीघ्र ही विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. हम इंग्लैंड से आगे हो जाएंगे. लेकिन दूसरी तरफ यह भी सत्य है कि बीते 5 वर्ष में हमारी आर्थिक विकास दर 7 प्रतिशत पर ही टिकी है. जमीनी स्तर पर भी जनता आर्थिक विकास से प्रसन्न नहीं दिखती है. किसानों में त्नाहि-त्नाहि है, युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहे हैं और छोटे उद्यम दबाव में हैं. इन दो परस्पर विरोधी बातों के रहस्य को समझने की जरूरत है. पहली बात यह है कि सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी आर्थिक विकास का सही मापदंड है ही नहीं. जीडीपी में देश में होने वाले कुल उत्पादन का आकलन किया जाता है. यह नहीं देखा जाता कि उत्पादन किस प्रकार के माल का हुआ.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा बनाए गए पर्यावरण सूचकांक में इंग्लैंड को छठा रैंक मिला था जबकि भारत को 177वां. इसका महत्व यह है कि भारत में प्रदूषण अधिक है और उस प्रदूषण को उत्पन्न करने में एवं उससे राहत पाने के लिए हम अपना जीडीपी बढ़ा रहे हैं. इस पृष्ठभूमि में जीडीपी को समझना होगा. भारत की जीडीपी 3000 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाने का अनुमान है जबकि इंग्लैंड की 2900 बिलियन डॉलर. लेकिन पर्यावरण की परिस्थिति विपरीत होने के कारण हम ऐसा मान सकते हैं कि भारत में 3000 बिलियन डॉलर के पोल्यूशन मास्कों का उत्पादन हो रहा है जबकि इंग्लैंड में 2900 बिलियन डॉलर के दूध अथवा संगीत का. अर्थात यद्यपि कोरे धन के मापदंड पर हम आगे हैं लेकिन हमारे धन की गुणवत्ता न्यून है. यह इस प्रकार हुआ कि सड़क पर दो ट्रक जा रहे हैं. भारत के ट्रक में शहर का कूड़ा भरा हुआ है और इंग्लैंड के ट्रक में फल और सब्जी. उत्पादित जीडीपी की दृष्टि से दोनों ट्रक भरे हैं और दोनों के चलने से उत्पादन हो रहा है, लेकिन जाहिर है कि हमारी जीडीपी सही नहीं है.
हमें बार-बार बताया जा रहा है कि भारत की विकास दर चीन से आगे है. वर्तमान में भारत की विकास दर 7.4 प्रतिशत होने का अनुमान है जबकि चीन की 6.6 प्रतिशत. इसे समझने के लिए ध्यान दें कि भारत की जीडीपी वर्तमान में 2600 बिलियन डॉलर है. इसमें 7.4 प्रतिशत की ग्रोथ रेट के अनुसार हम प्रति वर्ष 197 बिलियन डॉलर जोड़ रहे हैं. चीन की वर्तमान में जीडीपी 12300 बिलियन डॉलर है. इसमें 6.6 प्रतिशत की विकास दर से हर वर्ष 807 बिलियन डॉलर की वृद्धि हो रही है. यानी हम कुल वृद्धि को देखें तो हमारी वृद्धि 197 बिलियन डॉलर की है जबकि चीन की वृद्धि 807 बिलियन अमेरिकी डॉलर की है. अर्थात हमारी जीडीपी वृद्धि चीन की वृद्धि की तुलना में मात्न चौथाई है. वास्तविक तुलना हमें चीन की उस समय की विकास दर से करनी चाहिए जिस समय चीन की भी जीडीपी लगभग 2600 बिलियन डॉलर थी, जैसी कि आज हमारी है. जैसे 1991 के लगभग चीन की जीडीपी ग्रोथ रेट 12 प्रतिशत थी. यानी जिस स्तर पर हम हैं उस स्तर पर चीन था तब उसकी ग्रोथ रेट 12 प्रतिशत थी.
हमें फर्जी अहंकार से बचना चाहिए. सच यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था अपनी संभावनाओं से बहुत पीछे रह गई है. अत: हमें अपने आर्थिक विकास को और बढ़ाने की मूल चिंता करनी चाहिए.