भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: मंदी से निपटने के लिए छोटे उद्योगों को संरक्षण दें

By भरत झुनझुनवाला | Updated: December 9, 2019 07:44 IST2019-12-09T07:44:16+5:302019-12-09T07:44:16+5:30

अर्थव्यवस्था की वर्तमान दुर्गति नोटबंदी और जीएसटी के बाद शुरू हुई है. इन दोनों कदमों से बड़े उद्योगों को लाभ और छोटे उद्योगों को हानि हुई है

Bharat Jhunjhunwala's blog: Protect small industries to cope with recession | भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: मंदी से निपटने के लिए छोटे उद्योगों को संरक्षण दें

भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: मंदी से निपटने के लिए छोटे उद्योगों को संरक्षण दें

Highlightsस रकार के सभी प्रयासों के बावजूद अर्थव्यवस्था की विकास दर लगातार गिरती ही जा रही है विकास दर गिरने का मूल कारण यह है कि बाजार में मांग नहीं है.

स रकार के सभी प्रयासों के बावजूद अर्थव्यवस्था की विकास दर लगातार गिरती ही जा रही है. विकास दर गिरने का मूल कारण यह है कि बाजार में मांग नहीं है. यदि बाजार में मांग होती है तो उद्यमी येन केन प्रकारेण पूंजी एकत्रित कर फैक्ट्री लगाकर माल बना कर उसे बेच ही लेता है. बाजार में मांग होती है तो उसे उत्पादित माल के दाम ऊंचे मिलते हैं और वह लाभ कमाता है. बाजार में मांग नहीं हो तो माल बना कर गोदाम में रखना पड़ता है जहां वह बर्बाद होता है. इसलिए मांग के अभाव में निवेश नहीं होता है. इस समय विकास दर न्यून होने और निवेश न होने का मूल कारण है कि बाजार में मांग नहीं है. प्रश्न है कि ऐसा क्यों?

अर्थव्यवस्था की वर्तमान दुर्गति नोटबंदी और जीएसटी के बाद शुरू हुई है. इन दोनों कदमों से बड़े उद्योगों को लाभ और छोटे उद्योगों को हानि हुई है. छोटे उद्योगों को तीन प्रकार से हानि हुई है. पहला यह कि जीएसटी लागू होने से किसी राज्य के माल को दूसरे राज्य में ले जाना आसान हो गया है. पूरा देश एक बाजार बन गया है. एक बाजार बनने से बड़े उद्योगों को पूरे देश में अपने माल को भेजने में सहूलियत हो गई है. बड़े उद्योगों की क्षमता होती है कि वे दूसरे राज्यों में माल भेज सकें. छोटे उद्योग मुख्यत: अपने शहर अथवा राज्य में ही माल भेज पाते हैं. नोटबंदी और जीएसटी से छोटे उद्योगों को जो पूर्व में अपने राज्य की सरहद पर संरक्षण मिलता था वह समाप्त हो गया है.  
दूसरी बात यह कि छोटे उद्योगों पर जीएसटी लागू करने में बोझ ज्यादा पड़ रहा है. उन्हें कम्प्यूटर इत्यादि में निवेश करना पड़ रहा है या उनकी समझ से यह कार्य बाहर है. छोटे उद्यमी को माल खरीदना, श्रमिक को रखना, माल बेचना, बैंक जाना, खाते लिखना, सब कार्य स्वयं ही करने होते हैं. उस पर जीएसटी रिटर्न भरने का अतिरिक्त बोझ आ पड़ा है.

तीसरा कारण यह कि जीएसटी लागू होने से छोटे उद्योगों पर टैक्स का वास्तविक भार बढ़ गया है. यह सच है कि उन्हें जीएसटी में माल की बिक्र ी पर टैक्स कम देना पड़ता है लेकिन साथ-साथ उनके द्वारा खरीदे गए कच्चे माल पर अदा किए गए जीएसटी का सेटऑफ या रिफंड भी नहीं मिलता है. इन तीनों कारणों से छोटे उद्यमियों के लिए नोटबंदी एवं जीएसटी नुकसानदेह हो गया है. इसी प्रकार सरकार ने जो रियल एस्टेट कानून बनाया है उसको लागू करने के बाद छोटे बिल्डरों को परेशानी है और बड़े बिल्डरों को नहीं. इस प्रकार की तमाम योजनाओं के चलते सरकार ने चाहे-अनचाहे छोटे उद्यमों को दबाव में लाया है जिसके कारण छोटे उद्यमों द्वारा रोजगार कम उत्पन्न किए जा रहे हैं और बाजार में मांग कम है. याद रखें कि बड़े उद्यमी की आय अधिक हो तो वह विदेश सैर करता है. उसकी आय से घरेलू बाजार में मांग कम ही बनती है. इसके विपरीत छोटे उद्यमी की आय अधिक हो तो वह घरेलू बाजार में माल ज्यादा खरीदता है. इस विश्लेषण के सही होने का प्रमाण यह है कि हमारा शेयर बाजार लगातार उछल रहा है जबकि विकास दर लगातार गिर रही है. यह विरोधाभासी चाल इसलिए है कि कुल अर्थव्यवस्था में संकुचन के बावजूद बड़े उद्योगों का धंधा बढ़ रहा है.

इस परिस्थिति में सरकार को छोटे उद्योगों को संरक्षण देना चाहिए. जीएसटी में व्यवस्था करनी चाहिए कि कच्चे माल पर दिए गए जीएसटी का छोटे उद्यमों को नगद रिफंड मिले. इसके अलावा पूर्व में जिस प्रकार कई माल को छोटे उद्योगों के उत्पादन के लिए संरक्षित कर दिया गया था उसे पुन: लागू करने पर भी विचार करना चाहिए. हमें समझना चाहिए कि मुक्त व्यापार से आम आदमी को लाभ नहीं हो रहा है.

Web Title: Bharat Jhunjhunwala's blog: Protect small industries to cope with recession

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