भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने की कोशिश न करें
By भरत झुनझुनवाला | Updated: December 2, 2019 15:44 IST2019-12-02T15:44:14+5:302019-12-02T15:44:14+5:30
इसलिए नीति बनाई गई कि विकासशील देशों की सरकारें अपने वित्तीय घाटे को नियंत्नण में रखें. बताते चलें कि वित्तीय घाटा वह रकम होती है जो सरकार अपनी आय से अधिक खर्च करती है.

भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने की कोशिश न करें
वर्तमान मंदी के तमाम कारणों में से एक कारण सरकार की वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने की नीति है. वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण ने कहा है कि परिस्थिति को देखते हुए हम वित्तीय घाटे के लक्ष्य को आगामी बजट में निर्धारित करेंगे. उनके इस मंतव्य का स्वागत है. उन्होंने यह भी कहा है कि वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए सरकार अपने खर्चो में कटौती नहीं करेगी. लेकिन पिछले छह वर्षो में सरकार के पूंजी खर्च सिकुड़ते गए हैं और यह आर्थिक मंदी को लाने का एक कारण दिखता है.
वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने की नीति मूलत: भ्रष्ट सरकारों पर अंकुश लगाने के लिए बनाई गई थी. सत्तर के दशक में दक्षिण अमेरिका के देशों के नेता अति भ्रष्ट थे. वे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक से ऋण लेकर उस रकम को स्विस बैंक में अपने व्यक्तिगत खातों में हस्तांतरित कर रहे थे.
इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए विश्व बैंक, मुद्रा कोष और अमेरिकी सरकार के बीच सहमति बनी कि आगे विकासशील देश की सरकारों को ऋण देने के स्थान पर उन्हें प्रेरित किया जाए कि वे बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा निजी निवेश को आकर्षित करें. तब वह रकम सरकार के दायरे से बाहर हो जाएगी. इसके बाद बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने का प्रश्न उठा.
माना गया कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां उन देशों में निवेश करती हैं जहां की सरकारों को वे जिम्मेदार एवं संयमित मानती हैं. इसलिए नीति बनाई गई कि विकासशील देशों की सरकारें अपने वित्तीय घाटे को नियंत्नण में रखें. बताते चलें कि वित्तीय घाटा वह रकम होती है जो सरकार अपनी आय से अधिक खर्च करती है.
सरकार की आय यदि 100 रुपया है और खर्च 120 रुपया है तो 20 रुपया वित्तीय घाटा होता है. विचार यह बना कि यदि विकासशील देशों की सरकारें अपने खर्चो को अपनी आय के अनुरूप रखेंगी तो अर्थव्यवस्था में महंगाई नहीं बढ़ेगी, अर्थव्यवस्था स्थिर रहेगी, जिसे देखते हुए बहुराष्ट्रीय कंपनियां उन देशों में निवेश करने को उद्यत होंगी. वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने का मंत्न मूलत: भ्रष्ट सरकारों पर लगाम लगाने के लिए बनाया गया था.
भारत का अब तक का प्रत्यक्ष अनुभव बताता है कि वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने से विदेशी निवेश वास्तव में आया नहीं है. कारण यह है कि जब सरकार अपने वित्तीय घाटे को नियंत्रित करती है तो वह बुनियादी संरचना जैसे बिजली, टेलीफोन, हाइवे इत्यादि में निवेश कम करती है और इस निवेश के अभाव में बुनियादी संरचना लचर हो जाती है और बहुराष्ट्रीय कंपनियां नहीं आती हैं. इसलिए हमें वित्तीय घाटा बढ़ने देना चाहिए व उस रकम को निवेश में लगाना चाहिए.