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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसःएआई के दौर में चकित करता है मनुष्येतर जीवों का सहज ज्ञान 

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: April 19, 2025 05:23 IST

Artificial Intelligence: अब इस मादा कछुए की यात्रा को देखते हुए वैज्ञानिक कछुओं के प्रवास के बारे में नई समझ विकसित करने में लगे हुए हैं.

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ठळक मुद्देप्रकृति ने मनुष्येतर जीवों को कितनी खूबियों से नवाजा है! साल-दर-साल चला आ रहा है और उनकी आनुवंशिकी में शामिल हो गया है.घटना सामने आई जब जर्मन शिकारियों ने एक सफेद सारस को मार गिराया.

Artificial Intelligence: आज जबकि दुनिया में चारों ओर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का डंका बज रहा है, पक्षियों व जलीय जीव-जंतुओं की प्राकृतिक मेधा की आश्चर्य में डालने वाली खबरें अक्सर ही सामने आ जाती हैं. ताजा घटना में महाराष्ट्र के रत्नागिरि में एक ऐसा कछुआ मिला है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वह करीब 3500 किलोमीटर की यात्रा करके वहां तक पहुंचा है. उसे वर्ष 2018 में ओडिशा में टैग किया गया था और इस बीच वह एक बार श्रीलंका भी जाकर आ चुका है. अब इस मादा कछुए की यात्रा को देखते हुए वैज्ञानिक कछुओं के प्रवास के बारे में नई समझ विकसित करने में लगे हुए हैं.

जब अपनी सुस्त चाल के लिए जाना जाने वाला कछुआ इतनी लंबी दृूरी तय कर सकता है तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रकृति ने मनुष्येतर जीवों को कितनी खूबियों से नवाजा है! बहुत से पक्षी हर साल प्रवास के लिए हजारों किमी की यात्रा करते हैं. हमारे भारत देश में ही हर साल लाखों की संख्या में पक्षी यूरोप और रूस के क्षेत्रों से आते हैं, यहां की झीलों, तालाबों में कई महीनों का समय गुजारते हैं और सर्दी खत्म होने पर वापस अपने पुराने क्षेत्र में लौट जाते हैं. यह सिलसिला शायद हजारों वर्षों से साल-दर-साल चला आ रहा है और उनकी आनुवंशिकी में शामिल हो गया है.

कहते हैं यात्रा का समय नजदीक आते ही प्रवासी पक्षी बेचैनी महसूस करने लगते हैं और कुछ पक्षी तो बिना रुके ही हजारों किमी की यात्रा तय करते हुए अपने गंतव्य तक पहुंच जाते हैं. 1800 के दशक से ही पशुओं के प्रवासन के प्रमाण सामने आने लगे थे. 1822 में एक चर्चित घटना सामने आई जब जर्मन शिकारियों ने एक सफेद सारस को मार गिराया.

इस सारस के गले में करीब 75 सेंटीमीटर लंबा अफ्रीकी लकड़ी का भाला फंसा हुआ था. इससे पता चला कि उस सारस ने दो अलग-अलग महाद्वीपों के बीच यात्रा की थी. इस सारस के संरक्षित अवशेष अभी भी जर्मनी के रोस्टॉक विश्वविद्यालय में प्रदर्शनी के तौर पर रखे हुए हैं. आखिर रास्ते की विभिन्न बाधााओं को झेलते हुए ये पक्षी इतना लंबा प्रवास क्यों करते हैं?

विशेषज्ञों का कहना है कि चरम मौसम की वजह से भोजन की तलाश और मौसम की मार से बचे रहने के लिए पक्षी ऐसा करते हैं. लेकिन जो पक्षी पहली बार प्रवास करते हैं उन्हें कैसे पता होता है कि हजारों किमी दूर उन्हें रहने-खाने के लिए अनुकूल स्थान मिल पाएगा? शायद प्रवास करने वाली प्रजातियों में हजारों वर्षों के प्रवास से ऐसी समझ विकसित हो गई है और अब प्रवास यात्रा उनकी आनुवंशिकी का हिस्सा बन गई है. उनमें मौसम, भूगोल, भोजन के स्रोत, दिन की लंबाई और अन्य कारकों के लिए प्रतिक्रियाएं विकसित हो चुकी हैं.

कहा तो यहां तक जाता है कि लंबी दूरी पर अपने आवासों की पहचान के लिए वे पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड की भी पहचान रखते हैं. कहने का मतलब यह है कि विरासत से मिलने वाले अनुभवों का सभी प्राणी अपनी बेहतरी के लिए इस्तेमाल करते हैं. तो क्या हम मनुष्य भी ऐसा ही करते हैं? अभी ज्यादा समय नहीं बीता जब हम अपने पूर्वजों के संचित ज्ञान का कृषि सहित जीवन के अन्य क्षेत्रों में इस्तेमाल करते थे.

दुर्भाग्य  से तकनीकी विकास बढ़ने के साथ ही हम मनुष्य अपने सहज ज्ञान को खोते जा रहे हैं. वर्ष 2004 में जब विनाशकारी सुनामी आई थी, तब कहते हैं अंडमान निकोबार के द्वीपों में रहने वाली आदिवासी जनजातियों के किसी भी सदस्य की मृत्यु नहीं हुई थी, क्योंकि उन्होंने पहले ही सुनामी के आने को महसूस कर लिया था और ऊंचे स्थानों पर चले गए थे.

आज भी भूकंप आने के पहले कई जीव-जंतुओं में अस्वाभाविक प्रतिक्रिया देखी जाती है, उन्हें भूकंप आने का शायद पहले ही पता चल जाता है! कृत्रिम मेधा ने हमें बहुत फायदा पहुंचाया है लेकिन नुकसान भी शायद कम नहीं किया है. क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कृत्रिम मेधा के साथ-साथ हम अपनी प्राकृतिक मेधा को भी बचाए रख सकें?

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