प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की राजनीतिक समझ और दूरदर्शिता ने वाकई विपक्ष को मूर्छित कर रखा है. विपक्ष को कोई संजीवनी सुंघाने वाला नहीं है. राष्ट्रपति चुनाव में मोदी की पछाड़ से विपक्ष चारों खाने चित्त हो गया. एक संताल आद ...
हमारी भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में शब्द को ब्रह्मा माना गया है तो सवाल है कि कोई शब्द असंसदीय कैसे हो सकता है? लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि शब्दों को ही कठघरे में खड़ा किया जा रहा है जबकि असली सवाल तो सांसदों के आचरण का है. यदि बातों में वजन है, मुद्दों ...
पिछले सप्ताह दो दुखदायी घटनाएं हुईं. दुनिया की एक महान हस्ती और मेरे तथा भारत के मित्र शिंजो आबे की हत्या कर दी गई. कोई ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकता था! दूसरी घटना श्रीलंका की है जहां पेट की आग ने सत्ताधीश की सल्तनत को तबाह कर दिया. राष्ट्रपति भवन में ...
राजनीति की तासीर ही ऐसी है कि वह कभी शांत नहीं बैठती. जो सत्ता में है और जो सत्ता से बाहर है, वे दोनों ही जाल बुनते रहते हैं. किसके जाल में कौन फंसा, यह पूरी तरह से राजनीतिक पैंतरे और चतुराई पर निर्भर करता है. इस वक्त बड़ा सवाल है कि क्या शिंदे के बा ...
अभी हाल ही में राज्यसभा से गुलाम नबी आजाद की विदाई के वक्त गौरवपूर्ण वाक्यों का उपयोग करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रो पड़े थे। सम्मान, प्रेम और सहयोग के ऐसे और भी ढेर सारे उदाहरण हैं। लेकिन बदलते वक्त में राजनीति के रिश्ते भी क्षतिग्रस्त हो रहे ...
लोकतंत्र में विरोध का अधिकार हर किसी को है लेकिन यह अधिकार किसने दिया कि आप ट्रेनें जला दें. ट्रेन में बैठे यात्रियों की पिटाई कर दें! बसें जला दें और पत्थरबाजी करें! इतिहास गवाह है कि हिंसा के बल पर कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता. ...
निश्चय ही राज्यसभा के गठन के पीछे लक्ष्य यह था कि राज्यों का इसमें समुचित प्रतिनिधित्व हो। जो लोग सीधे चुनाव लड़कर लोकसभा में न पहुंच पाएं, लेकिन जिनकी जरूरत हो उन्हें राज्यसभा में पहुंचाया जाए। ...