विजय दर्डा का ब्लॉग: अग्निपथ पर बवाल! विश्वास में लेकर ही निर्णय करना चाहिए

By विजय दर्डा | Published: June 20, 2022 09:09 AM2022-06-20T09:09:11+5:302022-06-20T11:18:40+5:30

लोकतंत्र में विरोध का अधिकार हर किसी को है लेकिन यह अधिकार किसने दिया कि आप ट्रेनें जला दें. ट्रेन में बैठे यात्रियों की पिटाई कर दें! बसें जला दें और पत्थरबाजी करें! इतिहास गवाह है कि हिंसा के बल पर कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता.

Vijay Darda blog on Agneepath scheme: Decision should be done after taking all parties in confidence | विजय दर्डा का ब्लॉग: अग्निपथ पर बवाल! विश्वास में लेकर ही निर्णय करना चाहिए

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारतीय सेना में अग्निपथ योजना के तहत साढ़े 17 से 21 साल के तरुणों और युवाओं को चार साल के लिए सेवा का मौका देने पर इस वक्त देश के कई हिस्सों में तूफान जैसी स्थिति है. न जाने कितनी ट्रेनें जला दी गई हैं और सरकारी संपत्ति का न जाने कितना नुकसान हुआ है. तूफान अभी थमा नहीं है! वैसे अब उम्र सीमा को बढ़ाकर 23 साल किया गया है.

मैं इस बात से हैरान हूं कि इस तरह का हिंसक विरोध क्यों? ...और विरोध कर भी कौन रहा है...वो लोग जो सेना में भर्ती होने का जज्बा रखते हैं! सेना जिनके लिए देश सेवा का सपना है, उनसे इस तरह के हिंसक विरोध की उम्मीद कैसे की जा सकती है? सेना अनुशासन के लिए जानी जाती है और पूरा देश उसे सम्मान के साथ देखता है. मैं यात्रा के दौरान जब भी किसी सैनिक से मिलता हूं तो उनकी देश सेवा, उनके समर्पण और उनके जज्बे को लेकर नतमस्तक हो जाता हूं. ऐसे संगठन में अनुशासनहीनता के लिए जगह हो ही नहीं सकती है.  

सबसे बड़ी बात यह है कि सेना को जो लोग नौकरी का माध्यम मानते हैं, वे बुनियादी रूप से गलत हैं. भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने बड़े साफ शब्दों में कहा था कि सेना नौकरी की जगह नहीं है. उनके शब्दों को मैं यहां हू-ब-हू संक्षेप में रख रहा हूं.. ‘‘अक्सर ऐसा देखा गया है कि लोग भारतीय सेना को नौकरी का जरिया मानते हैं. मैं आपको चेतावनी देना चाहूंगा कि यह गलतफहमी अपने दिमाग से निकाल दीजिए. अगर आपको भारतीय सेना में शामिल होना है तो आपका हौसला बुलंद होना चाहिए.  जहां रास्ता नहीं निकल सकता, वहां रास्ता ढूंढ़ने की काबिलियत होनी चाहिए. अक्सर मेरे पास कई नौजवान आते हैं कि सर मुझे भारतीय सेना में नौकरी चाहिए. मैं उन्हें यही बोलता हूं कि भारतीय सेना नौकरी का साधन नहीं है. नौकरी लेनी है तो रेलवे में जाइए, पीएंडटी में जाइए. और बहुत से जरिये हैं. अपना खुद का छोटा-मोटा बिजनेस शुरू कर दीजिए.’’

मैं जनरल बिपिन रावत की बात से पूरी तरह सहमत हूं कि सेना देश सेवा का माध्यम है. राष्ट्रीयता के लिए वीरता की अभिव्यक्ति का माध्यम है. इसीलिए सेना को इतना सम्मान मिलता है. देश में बहुत सी दुर्घटनाएं होती हैं, लोग मारे जाते हैं लेकिन उनमें से किसी को भी वह सम्मान नहीं मिलता जो किसी शहीद सैनिक को मिलता है. उनका पार्थिव शरीर विमान से लाया जाता है. सारा गांव अंतिम विदाई के लिए उमड़ता है और सशस्त्र बल सलामी देते हैं.  

लोकतंत्र में विरोध का अधिकार हर किसी को है लेकिन यह अधिकार किसने दे दिया कि आप ट्रेनें जला दें. ट्रेन में बैठे हुए यात्रियों की पिटाई कर दें! बसें जला दें और पत्थरबाजी करें! आखिर ट्रेन किसके पैसे से तैयार होती है? हम आप जो टैक्स देते हैं, उसी से तो ये सेवाएं वजूद में आती हैं. सरकारी संपत्ति का मतलब है आम आदमी की संपत्ति. हमारे मेहनतकश हाथ ही तो इसे तैयार करते हैं.

इतिहास गवाह है कि हिंसा के बल पर कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता. हम उस देश के वासी हैं जहां से भगवान महावीर और गौतम बुद्ध ने अहिंसा का संदेश दिया. महात्मा गांधी ने अहिंसा की शक्ति दुनिया को बताई. एक ऐसी फिरंगी सल्तनत को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया जिसके राज में कभी सूरज नहीं डूबता था. उन्होंने भारत को तो आजाद कराया ही, अहिंसा के उनके रास्ते पर चलकर अफ्रीका और दूसरे इलाकों के 40 से ज्यादा देश भी आजाद हुए. 

बराक ओबामा ने भारतीय संसद के सेंट्रल हॉल में कहा था कि यदि गांधीजी इस धरती पर न आए होते तो शायद मैं कभी अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं बन सकता था. वाजिब सी बात है कि जब अहिंसा की ऐसी शक्ति हमारे पास है तो हिंसा की जरूरत क्यों?

अग्निपथ योजना कितनी सार्थक साबित होगी या अग्निवीरों की फौज का क्या फायदा होगा, यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है. कुछ विशेषज्ञ इसे क्रांतिकारी योजना बता रहे हैं. 

इजराइल, सिंगापुर और ब्रिटेन में तो बारहवीं के बाद हर लड़का और हर लड़की को कुछ वक्त के लिए सेना में सेवा देनी ही होती है. ब्रिटेन में तो भले ही राजा का ही बेटा क्यों न हो, उसे सेना में निर्धारित वक्त बिताना ही होता है. बहरहाल, अग्निपथ योजना को लेकर कुछ विशेषज्ञ कई आशंकाएं भी जता रहे हैं. लेकिन एक बात तय है कि योजना लाने से पहले सरकार को प्रारंभिक तैयारियां अच्छी तरह से करनी चाहिए थीं. 

इस पूरी योजना को लेकर जनमानस तैयार करना था. यहां यह सवाल पूछा जा सकता है कि जब इस योजना के लिए अधिकतम उम्र 21 वर्ष रखी गई तो विरोध के बाद इसे 23 साल क्यों किया गया? एक करोड़ रु. का बीमा करवाने और सैनिकों जैसी ही बाकी सुविधाएं प्रदान करने की बात बाद में क्यों आई? दरअसल अधूरेपन से समस्याएं पैदा होती हैं. 
उदाहरण के लिए इनकम टैक्स रिटर्न को फेसलेस बनाने की योजना को ही आप ले सकते हैं. अभी भी कई मामले अनसुलझे पड़े हैं और विवाद जारी है. स्वाभाविक सी बात है कि यदि लोग किसी भी योजना के लाभप्रद होने से आश्वस्त होंगे तो विरोध पैदा नहीं होगा. हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह या रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कुछ सकारात्मक सोच कर ही इतना बड़ा फैसला लिया होगा. 

ऐसे में यह जरूरी है कि उनके मन में भविष्य को लेकर जो योजनाएं हैं उन्हें स्पष्टता के साथ अधिकारियों को नीचे के स्तर तक पहुंचाना चाहिए. अधिकारी गलती कर देते हैं और लोकप्रतिनिधि के बारे में गलत संदेश जाता है. यहां मैं यह भी कहना चाहूंगा कि सरकार जब इस तरह के निर्णय लेती है तो उसे विपक्ष को भी भरोसे में लेना चाहिए. ऐसा हमेशा ही होता रहा है.

सबसे बड़ी बात है कि किसी योजना को लेकर हिंसक विरोध की चिनगारी न किसी राजनीतिक दल को पैदा करनी चाहिए और न ही असंतोष को हवा देकर उसका लाभ उठाना चाहिए. मैं इस बात से वाकिफ हूं कि देश में बेरोजगारी एक बहुत बड़ी समस्या है और इस मुद्दे पर युवाओं का भड़कना या उन्हें भड़का देना या गुमराह करना बहुत आसान है क्योंकि उनके भीतर असंतोष तो रहता ही है! 

कोशिश यह करनी चाहिए कि युवाओं के लिए आजीविका के इतने साधन उपलब्ध हो जाएं कि किसी सरकारी योजना को वे अपने लिए अवसर छिन जाने के रूप में नहीं देखें. आजीविका केवल सरकार उपलब्ध नहीं करा सकती. यह काम उद्योग ही ज्यादा सक्षमता के साथ कर सकते हैं. सरकार उद्योगों को बढ़ावा दे तो तस्वीर बदल सकती है. 

प्रधानमंत्री ने अगले डेढ़ वर्षों में 10 लाख नौकरी के अवसर उपलब्ध कराने की घोषणा की है. यह संकल्पना अधिकारियों ने यदि वाकई पूरी की तो निश्चय ही युवाओं में भरोसा पैदा होगा. अधिकारियों ने पहले की घोषणाएं पूरी नहीं कीं लेकिन हमें उम्मीद तो बेहतर की ही करनी चाहिए.

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