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लॉकडाउन के बाद आपको चिंता महसूस क्यों हो सकती है, इससे कैसे उबरें

By भाषा | Updated: October 11, 2021 11:31 IST

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(क्रिस्टीन नारागॉन-गेनी, वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया यूनिवर्सिटी)

सिडनी, 11 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स में आज पाबंदियों में ढील दी गयी और विक्टोरिया में इस महीने के आखिर में लॉकडाउन में ढील मिलने की उम्मीद है, इसके साथ ही कई लोग अब सामान्य जीवन में ढलना शुरू कर देंगे।

कई महीनों के बाद लॉकडाउन से बाहर आने से उत्तेजना और राहत से लेकर तनाव और चिंता तक कई तरह की भावनाएं पैदा हो सकती हैं। हालांकि, पहले वाली आजादी और जीवन के तरीकों पर लौटने के बारे में चिंतित होने की बात पूर्वाग्रह हो सकती है, लेकिन इस तरह के बड़े बदलाव को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक ही है।

तो यह चिंता को बढ़ाने वाला क्यों हो सकता है और आप इसका सामना कैसे कर सकते हैं?

मिली जुली भावनाएं

मनुष्य आदतों पर आधारित प्राणी है और लॉकडाउन लंबे समय तक बना रहा है, जो उन्हें लॉकडाउन के दौरान के दिनचर्या के साथ सहज और आदी बनाने के लिए काफी है - यहां तक ​​कि वे हिस्से भी जो उन्हें पसंद नहीं हैं। एक नयी दिनचर्या को फिर से अपनाने के लिए प्रयास करना पड़ता है, क्योंकि इसके लिए हमें अपनी वर्तमान आदतों और जड़ता पर काबू पाने की आवश्यकता होती है।

इसके अलावा, कुछ लोग लॉकडाउन के कुछ पहलुओं को लाभकारी अनुभव कर सकते हैं, जैसे कि काम पर न जाना, परिवार या रूममेट्स के साथ अधिक समय बिताना और काम के घंटों में अधिक लचीलापन। लॉकडाउन खत्म होने के बाद लोग इन सकारात्मक पहलुओं को याद कर सकते हैं। लॉकडाउन के दौरान घर भी सुरक्षा और नियंत्रण से जुड़ा हो सकता है, इसलिए सार्वजनिक जीवन को फिर से शुरू करना थोड़ा कठिन लग सकता है।

हर कोई लॉकडाउन को अलग तरह से अनुभव कर रहा है। विशेष रूप से घर से बाहर या लोगों के साथ बातचीत करते समय चिंता से जुड़ी मनोवैज्ञानिक स्थितियों वाले लोगों को लॉकडाउन के दौरान सामान्य से कम सामाजिक तनाव का अनुभव हो सकता है क्योंकि उन्हें कई चिंताजनक स्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता है। इनमें कुछ लोग शामिल हैं, उदाहरण के लिए सामाजिक चिंता, अभिघातजन्य तनाव विकार (पीटीएसडी) या आत्मकेंद्रित स्पेक्ट्रम वाले लोग।

वहीं, इनमें से कई लोगों ने भी लॉकडाउन के दौरान सामान्य आबादी की तरह अधिक अकेलापन और अन्य चिंताओं को महसूस किया। कई अन्य लोग पहली बार तीव्र चिंता या अवसाद का अनुभव कर रहे होंगे, या कोविड-19 या महामारी के प्रभाव के बारे में अत्यधिक चिंता महसूस कर सकते हैं।

इसके विपरीत इन स्थितियों में बार-बार शामिल होना समय के साथ चिंता को कम करने में मदद करता है जैसा कि एक्सपोजर थेरेपी जैसे उपचारों द्वारा प्रदर्शित किया गया है। एक अध्ययन में पाया गया कि हाल के वर्षों में शैक्षणिक वर्ष के दौरान कॉलेज के छात्रों की सामाजिक चिंता कम हुई, लेकिन लॉकडाउन में इसी अवधि के दौरान उनकी चिंता संभवत: सामाजिक संपर्क में कमी के कारण बढ़ गयी।

ये चार विचार चिंताओं का सामना करने में मददगार हो सकते हैं -

लॉकडाउन को पीछे छोड़ते हुए ऐसी कई रणनीतियां हैं जिनका उपयोग आप सफलतापूर्वक चिंता से निपटने में मदद के लिए कर सकते हैं

1. दिनचर्या में फिर से ढलने की अपेक्षा करें

दुनिया में जिस असामान्य और तनावपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, उसे देखते हुए खुद को यह दिलासा देना मददगार हो सकता है कि किसी दिनचर्या में फिर से ढलने की अवधि सामान्य है और कोई भी संकट आम तौर पर अस्थायी होता है।

2. सहयोगी मित्रों से बात करें

जिनके साथ आप सहज महसूस करते हैं उनसे आप मदद ले सकते हैं। आप कैसा महसूस कर रहे हैं, इस बारे में उनसे बात कर सकते हैं। यह उन कई लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो खासकर अन्य लोगों के समान भावनाओं और चुनौतियों से जूझ रहे हों।

3. मौज मस्ती के साथ फिर से जुड़ना

आप उन गतिविधियों को करने का भी प्रयास कर सकते हैं जो आपको आम तौर पर सुखद या सार्थक लगती हैं - विशेष रूप से वे जिन्हें आप लॉकडाउन के दौरान नहीं कर पाए हैं, भले ही उन्हें करने के बारे में आपकी मिश्रित भावनाएं हों।

4. इस पल में जिएं

गहरी सांस लेने या माइंडफुलनेस का अभ्यास लोगों को लॉकडाउन के बाद कठिन भावनाओं या स्थितियों से उबरने में मदद कर सकता है। हालांकि, महामारी के बारे में कई चीजें हमारे नियंत्रण से बाहर हैं, अपने तनाव के स्तर को कम करने के लिए ठोस कदम उठाना - यहां तक ​​कि छोटे तरीकों से भी - आपको बेहतर महसूस करने में मदद कर सकता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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