वाशिंगटन: भारत और रूस के संबंधों पर एक महत्वपूर्ण बयान देते हुए अमेरिका ने कहा है कि वह किसी भी देश की विदेश नीति पर टिप्पणी नहीं कर सकता है। यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से ही अतरराष्ट्रीय कूटनीति का माहौल भी गर्म है। भारत और रूस के संबंधों, खासकर दोनों देशों के बीच होने वाले सुरक्षा समझौतों और हथियारों के सौदों पर अमेरिका से बार-बार सवाल पूछे जाते हैं। हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने मीडिया से की जाने वाली नियमित बातचीत में भारत-रूस संबंधों पर अमेरिका के रुख पर विस्तार से बात की।
नेड प्राइस ने कहा कि भारत और रूस के बीच संबंध बहुत पुराने हैं। ये एक झटके में खत्म नहीं किया जा सकता। रूस से अलग अपनी विदेश नीति को नई दिशा देना एक दीर्घकालिक प्रस्ताव होगा। ये बिजली का स्विच दबाने जैसा नहीं है।
मीडिया से बातचीत के दौरान नेस प्राइड से यह भी पूछा गयी कि भारत रूस के साथ सैन्य अभ्यास भी कर रहा है तो उन्होंने जवाब दिया, "विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कई बार ये संदेश दिया है कि ऐसा नहीं है कि देशों को अमेरिका और रूस में किसी एक को चुनना है। दुनिया के सभी देश अपने फैसले खुद लेंगे और वे फैसले उनके हितों और मूल्यों के आधार पर होंगे। जिन देशों के साथ रूस का सुरक्षा समझौता है या हथियार खरीद समझौता है, वो देश अचानक रूस से अलग अपनी विदेश नीति नहीं बना सकते।"
बता दें कि यूक्रेन पर रूसी हमले की भारत ने कभी भी आलोचना नहीं की न ही संयुक्त राष्ट्र में रूस में खिलाफ होने वाले किसी भी मतदान में हिस्सा लिया। भारत रूस से कच्चे तेल की खरीदारी भी लगातार कर रहा है। हाल ही में यूक्रेनी विदेश मंत्री ने कहा था कि रूस की ओर से भारत को मिल रहे कच्चे तेल के हर बैरल में यूक्रेनी ख़ून का एक अच्छा हिस्सा है। रूसी तेल की खरीद पर भारतीय विदेश मंत्री ने कहा था कि भारत में लोगों की आमदनी इतनी नहीं है कि वे ऊंचे दामों पर पेट्रोल-डीजल खरीद पाएं। ऐसे में ये उनका नैतिक दायित्व है कि वे अपने लोगों को सबसे अच्छा सौदा दिलवाएं।
अमेरिका भी भारत का एक प्रमुख सुरक्षा सहयोगी है और मौजूदा हालात में रूस और अमेरिका दोनो से अपने संबंधों को बेहतर रखना भारतीय कूटनीति की सबसे बड़ी परीक्षा है।