संयुक्त राष्ट्र 27 मार्च (एपी) लैंगिक समानता के लिए काम करने वाले संयुक्त राष्ट्र के एक संगठन ने निर्णय लेने वाली वैश्विक संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की मांग की है।
संस्थान ने शुक्रवार रात को स्वीकार किए गए एक दस्तावेज में यह मांग की है।
‘कमीशन ऑन स्टेटस ऑफ वूमन’ ने लैंगिक समानता हासिल करने के लिए 25 वर्ष पहले बीजिंग में महिला सम्मेलन में स्वीकार की गई रूपरेखा की पुन: पुष्टि की और आज के कई अहम मसलों पर रोशनी डाली जिसमें सार्वजनिक जीवन में पुरुषों और महिलाओं के बीच सत्ता का संतुलन और डिजिटल दुनिया में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा का बढ़ता प्रभाव शामिल है।
राजनयिकों ने आखिरी मिनट तक महिला अधिकार रक्षकों, लैंगिक आधारित हिंसा और इससे पहले प्रजनन और यौन स्वास्थ्य एवं अधिकारों की भाषा पर बातचीत की। कुछ पश्चिमी राष्ट्रों ने गैर पुष्ट लिंगों और ट्रांसजेंडर महिलाओं को आयोग से मान्यता दिलाने की कोशिश की लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।
हालांकि उन्हें यह संदर्भ हासिल करने में कामयाबी मिली की ‘जो महिलाएं कई तरह के भेदभाव एवं विविध स्थितियों का सामना करती हैं।”
यूरोपीय संघ ने कहा कि वह चाहता था कि 23 पन्नों के दस्तावेज में ‘और महत्वकांक्षी भाषा’ हो। उसने कहा कि कुछ प्रतिनिधियों द्वारा प्रक्रिया को पटरी से उतारने और लैंगिक समानता पर अतंरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता और दायित्यवों को लेकर सवाल उठाना दिखाता है कि महिला अधिकारों को लेकर पीछने हटना अब भी जारी है।
संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्यों ने ‘सहमत निष्कर्षों’ पर चर्चा की थी और दो हफ्ते चली बैठक के अंत में आयोग के 45 सदस्यों ने सर्वसम्मति से इसे स्वीकार किया।
दस्तावेज में आयोग ने सभी महिलाओं के मानव अधिकारों और स्वतंत्रता को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने में नागरिक समाज की महत्वपूर्ण भूमिका का समर्थन किया।
संयुक्त राष्ट्र महिला की कार्यकारी अधिकारी फुमज़िले म्लाम्बो-न्गकुका ने कहा कि यह दस्तावेज सब को खुश नहीं कर सकता है और परिणाम ‘और महत्वकांक्षी तथा सिफारिशें और स्पष्ट तथा निर्णायक होनी चाहिए थी।
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