कार्बन उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य समानता के सिद्धांत पर आधारित हो : भारत
By भाषा | Updated: October 9, 2021 13:13 IST2021-10-09T13:13:30+5:302021-10-09T13:13:30+5:30

कार्बन उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य समानता के सिद्धांत पर आधारित हो : भारत
(योषिता सिंह)
संयुक्त राष्ट्र, नौ अक्टूबर भारत ने इस बात का विशेष रूप से उल्लेख किया है कि 2050 तक शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने का लक्ष्य समता के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए जहां विकासशील देशों को उनके संबंधित सतत विकास मार्ग पर आगे बढ़ने देने के मद्देनजर विकसित देशों को कार्बन उत्सर्जन के मुकाबले कार्बन अवशोषण बढ़ाना चाहिए।
शून्य उत्सर्जन (नेट जीरो) का मतलब है कि दुनिया वायुमंडल में में किसी तरह का नया उत्सर्जन नहीं कर रही है।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने जोर देकर कहा है कि 2030 तक उत्सर्जन आधा हो जाना चाहिए और 2050 तक किसी भी सूरत में शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य पूरा कर लिया जाना चाहिए ताकि पेरिस जलवायु समझौते के तहत वैश्विक तापमान वृद्धि 1.5 सेल्सियस से अधिक न बढ़ने देने के निर्धारित लक्ष्य को हासिल किया जा सके।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी एस तिरुमू्ति ने शुक्रवार को कहा, “शून्य उत्सर्जन के सिद्धांत पर चर्चा हो रही है लेकिन इसके निहितार्थों को समझना भी जरूरी है। वैश्विक स्तर पर शून्य उत्सजर्न साझा लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारी और समानता के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए, जहां विकासशील देश अपने-अपने सतत विकास पथ को देखते हुए बाद में उत्सर्जन के चरम पर पहुंचेंगे।”
संकट, सामान्य स्थिति तक पहुंचने की क्षमता और पुनर्प्राप्ति - 2030 एजेंडा की ओर तेजी से प्रगति' पर दूसरी समिति की संयुक्त राष्ट्र महासभा की आम बहस में उन्होंने कहा, "परिणामस्वरूप, विकासशील देशों के विकास के लिए 2050 में कार्बन स्थल को विकासशील देशों के लिए जगह खाली करने के लिए, विकसित देशों को वास्तव में अपने उत्सर्जन को ऋणात्मक (नेट माइनस) करना चाहिए।”
तिरुमूर्ति ने कहा, “यदि विकसित देश केवल व्यक्तिगत तौर पर शून्य उत्सर्जन कर रहे हैं, तो हम वास्तव में पेरिस लक्ष्यों को प्राप्त करने से बहुत दूर जा रहे हैं। और समान रूप से, विकसित देशों को पहले यह दिखाना होगा कि वे 2050 के बारे में चर्चा करने से पहले वे अपनी 2030 की प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं।”
भारत ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र रूपरेखा सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) के आसपास निर्मित समावेशी और व्यापक संरचना से "केवल लाभकारी चीजें चुनने" से दूर रहने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया। इस सम्मेलन पर सभी सदस्य-राज्यों ने बातचीत की और सहमति जताई है।
उन्होंने कहा, “कुछ को सभी के लिए निर्णय नहीं लेना चाहिए। भारत ऐसे किसी भी प्रयास का समर्थन नहीं करेगा जो सदस्य-राष्ट्र संचालित प्रक्रिया के विरुद्ध हो और विकासशील देशों के हित में न हो।”
पिछले महीने 76वें महासभा सत्र के इतर ऊर्जा पर संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय वार्ता 2021 में एक वीडियो बयान में, विद्युत एवं नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने कहा था कि जहां राष्ट्र ऊर्जा संक्रमण, ऊर्जा पहुंच और वित्त पर चर्चा कर रहे हैं, "मैं विभिन्न देशों के ऊर्जा उपभोग और राष्ट्रीय परिस्थितियों के प्रति पूरी तरह से संवेदनशील होने के महत्व को दोहराना चाहूंगा। सभी के लिए एक जैसा समाधान सही नहीं हो सकता है।”
तिरुमूर्ति ने इस बात पर भी जोर दिया कि विकसित देशों द्वारा जलवायु कार्रवाई के लिए 100 अरब डॉलर प्रदान करने की प्रतिबद्धता हासिल करने में अभी भी एक बड़ा अंतर मौजूद है।
उन्होंने कहा, “यह राशि एनएफएल द्वारा मीडिया अधिकारों पर अर्जित राशि से कम है। फिर भी हम 100 अरब डॉलर जुटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, हालांकि हम दावा करते हैं कि यह एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण मुद्दा है! इसलिए, अब समय आ गया है कि हम जलवायु कार्रवाई के बारे में गंभीर हों, विशेष रूप से विकसित देश।”
तिरुमूर्ति ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन और आपदा रोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन जैसी भारत की पहल वैश्विक जलवायु साझेदारी में भारत के योगदान के उदाहरण हैं।
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