श्रीलंका ने विश्व समुदाय से बच्चों को खाना खिलाने के लिए की आर्थिक मदद की अपील
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: August 1, 2022 09:48 PM2022-08-01T21:48:02+5:302022-08-01T21:52:17+5:30
श्रीलंका ने यूनिसेफ समेत विश्व की तमाम मानवीय संस्थाओं से अपील की है कि वो बच्चों के समुचित भोजन के लिए फौरन आर्थिक सहायता के लिए आगे आयें क्योंकि मौजूदा वक्त में 10 में से नौ लोग सरकारी सहायता पर निर्भर है।
कोलंबो: आर्थिक तौर पर दिवालिया हो चुके श्रीलंका के सामने सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है छोटे बच्चों का पोषण। श्रीलंका ने खराब आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए विश्व समुदाय के अपील की है कि वो बच्चों के लिए फूड की सहायता तत्काल उनके देश भेजे ताकि छोटे बच्चों में तेजी से फैल रही कुपोषण की गंभीर समस्या से निपटा जा सके।
इस सिलसिले में श्रीलंका ने सोमवार को यूनिसेफ समेत विश्व की तमाम मानवीय संस्थाओं से अपील की है कि वो बच्चों के समुचित भोजन के लिए फौरन आर्थिक सहायता के लिए आगे आये क्योंकि मौजूदा वक्त में 10 में से नौ लोग सरकारी सहायता पर निर्भर है।
इस संबंध में श्रीलंका के महिला एवं बाल मामलों के मंत्रालय ने कहा कि वे देश में बच्चों के लिए अपर्याप्त भोजन के कारण विश्व की विभिन्न संस्थाओं से निजी दान की मांग कर रही है ताकि कुपोषण की जद में आ रहे बच्चों को भोजन दिया जा सके।
मंत्रालय के सचिव नील बंडारा हापुहिने ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, "जब कोविड महामारी अपने चरम पर थी, तभी से बच्चों के भोजन की स्थिति बेहद खराब चल रही थी लेकिन मौजूदा आर्थिक संकट के कारण स्थिति और भी भयावह हो गई है।
हापुहिने ने कहा कि साल 2021 में बाल मंत्रालय ने पांच साल से कम उम्र की कुल 570,000 लड़कियों और 127,000 लड़कों की पहचान की थी, जो कुपोषित की गिरफ्त में थे। अब चूंकि 2022 चल रहा है और श्रीलंका आर्थिक तौर पर पूरी तरह से तबाह हो चुका है। इसलिए अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चों के भोजन किस कदर बढ़ गया होगा।
उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति बढ़ने के साथ देश में भोजन से संबंधित सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमते वास्तविक मूल्य से कई गुना बढ़ गई है, जिस कारण पौष्टिक भोजन लोगों की पहुंच से दूर हो गया है।
हापुहिने ने कहा कि पिछले एक साल में सरकारी सहायता प्राप्त करने वालों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है और कड़वी सच्चाई तो यह है कि देश की 90 फीसदी जनता से अधिक आबादी वित्तीय मदद के लिए सरकारी मदद पर निर्भर है, जिनमें करीब 16 लाख सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि जुलाई में श्रीलंका की मुद्रास्फीति आधिकारिक तौर पर 60.8 फीसदी दर्ज की गई है लेकिन निजी अर्थशास्त्रियों का कहना है कि असल में यह 100 फीसदी से भी अधिक है और मुद्रास्फीति की यह स्थिति श्रीलंका को जिम्बाब्वे के बाद दूसरे स्थान पर ठहराती है।