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क्या आपको इसलिए मास्क पहनना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि अब यह गैरकानूनी नहीं है?

By भाषा | Updated: November 2, 2021 15:10 IST

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मैक्सिमिलियन कीनर, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय

ऑक्सफोर्ड, दो नवंबर (द कन्वरसेशन) अमेरिका के अलबामा में एक दिसंबर, 1955 को रोस पार्क्स ने एक कानून तोड़ा था, लेकिन वह कोई आम अपराधी नहीं थीं। उन्होंने केवल एक श्वेत व्यक्ति को बस में अपनी सीट देने से इनकार कर दिया था और मात्र इसी कारण से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पार्क्स एक नायिका बनीं, क्योंकि उन्होंने अश्वेत लोगों के अधिकारों के लिए गलत के खिलाफ आवाज उठाई।

पार्क्स ने हमें सिखाया कि हमें कानून को बहुत गंभीरता से नहीं लेना चाहिए, क्योंकि कानूनी प्रतिबंध हमेशा नैतिक प्रतिबंध नहीं होता है। दरअसल, ऐसे भी मामले हो सकते हैं, जब हमें वह करना चाहिए, जिसकी कानून के अनुसार मनाही है।

हम भी पार्क्स की दी शिक्षा से सीख ले सकते हैं तथा एक और ऐसी स्थिति है, जिसमें हमें कानून को बहुत गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। कानूनी प्रतिबंध (जैसे कि श्वेत लोगों के लिए आरक्षित सीटों पर नहीं बैठना) हमेशा यह तय नहीं करते कि हमें क्या करना चाहिए, उसी तरह कई बार ऐसा भी होता है, जब कानूनी अनुमति या अधिकार यह तय नहीं कर सकते कि हमारे लिए नैतिक रूप से क्या उचित है।

ब्रिटेन सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण की दर बढ़ने के बावजूद अपने नागरिकों को बिना मास्क पहने सार्वजनिक स्थानों पर जाने की अनुमति दी है। क्या इस अनुमति का अर्थ है कि इंग्लैंड के लोगों के पास मास्क न पहनने का उचित कारण है?

मुझे ऐसा नहीं लगता। जैसे कि पार्क्स के लिए कानूनी रूप से जो प्रतिबंधित था, वह नैतिक रूप से प्रतिबंधित नहीं था, उसी तरह कानून के तहत किसी बात की अनुमति मिल जाने से, वह बात नैतिक रूप से भी उचित नहीं हो जाती।

किसी काम को करने का अधिकार होने और उस काम के उचित होने में काफी अंतर है।

सामान्य समझ

उदाहरणार्थ, मान लीजिए कि आप भीड़भाड़ वाली ट्रेन में हैं। कुछ यात्रियों को कोविड-19 का बहुत खतरा हो सकता है, लेकिन यह पता करना मुश्किल है कि ऐसे यात्री कौन हैं। हमें यह नहीं पता कि क्या कोई व्यक्ति मधुमेह जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है या नहीं, या किसका टीकाकरण हो चुका है किसका नहीं। केवल मास्क पहनने से ही हम स्वयं को परेशानी में डाले बिना लोगों के जीवन की रक्षा कर सकते हैं।

कोरोना वायरस वैश्विक महामारी को मात देने के लिए हमें कभी-कभी हमारे कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल करने के बजाय सामान्य बुद्धि का इस्तेमाल करने की आवश्यकता होती है। यदि हमें लगता है कि कानूनी अधिकार मिलने से समस्या का हल निकल सकता है और यदि हम उन नियमों का पालन करते हैं, जो हमारा मार्गदर्शन करने के लिए उचित नहीं हैं, तो हम नैतिक रूप से असफल हो सकते हैं।

अपने लिए सोचने का अर्थ केवल यह नहीं है कि मात्र अपने बारे में सोचा जाए। हमें एक दूसरे के बारे में भी सोचना होगा, एकजुटता दिखानी होगी और वैश्विक महामारी से निपटने में योगदान देना होगा। केवल सरकार इस संकट से नहीं निपट सकती। हमें नैतिक आधार पर उचित बनने के लिए कभी-कभी अपने कानूनी कर्तव्यों से भी आगे बढ़कर काम करना चाहिए।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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