पाकिस्तान: लाहौर हाईकोर्ट ने कहा, "राज्य के प्रति वफादारी और सरकार के प्रति वफादारी अलग-अलग होती हैं, इनका आपसी संबंध नहीं होना चाहिए"

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: April 7, 2023 13:34 IST2023-04-07T13:27:11+5:302023-04-07T13:34:18+5:30

पाकिस्तान के लाहौर हाईकोर्ट में जस्टिस शाहिद करीम ने पाकिस्तान दंड संहिता (पीपीसी) 1860 की धारा 124-ए के तहत राजद्रोह के अपराध को रद्द करते हुए कहा कि राज्य के प्रति वफादारी को सरकार के प्रति वफादारी से अलग होना चाहिए।

Pakistan: Loyalty to the state should be different from loyalty to the government, says Lahore High Court | पाकिस्तान: लाहौर हाईकोर्ट ने कहा, "राज्य के प्रति वफादारी और सरकार के प्रति वफादारी अलग-अलग होती हैं, इनका आपसी संबंध नहीं होना चाहिए"

फाइल फोटो

Highlightsलाहौर हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य के प्रति वफादारी को सरकार के प्रति वफादारी से अलग होना चाहिएलोगों को स्वतंत्रता होना चाहिए कि वो सरकारी नीतियों के प्रति असंतोष की भावना व्यक्त कर सकेंसरकार से असहमति के खिलाफ नागरिक या प्रेस के सदस्य पर राजद्रोह का केस दर्ज करना गलत है

लाहौर:पाकिस्तान के लाहौर हाईकोर्ट ने पाकिस्तान दंड संहिता (पीपीसी) 1860 की धारा 124-ए के तहत राजद्रोह के अपराध को रद्द करते हुए अपने 48 पन्नों के विस्तृत फैसले में कहा है कि राज्य के प्रति वफादारी को सरकार के प्रति वफादारी से अलग होना चाहिए।लाहौर हाईकोर्ट के जस्टिस शाहिद करीम ने राजद्रोह के कानून को रद्द करते हुए कहा कि चूंकि किसी दल या दल के समूह द्वारा सत्ता का संचालन किया जाता है तो ऐसा नहीं है कि सरकारी दफ्तर उन राजनैतिक दलों की वैचारिक प्रतिबद्धता के अनुसार विचार या कार्य करने के अधीन हैं।

जस्टिस करीम ने कहा कि इसलिए यह जरूरी है कि राज्य के प्रति वफादारी को सरकार के प्रति वफादारी से अलग होना चाहिए क्योंकि हर कोई सत्ताधारी दल की विचारधारा के संबंध नहीं होता है और इस कारण से लोगों को स्वतंत्रता होना चाहिए कि वो सरकारी नीतियों के प्रति असंतोष की भावना व्यक्त कर सकें।

जस्टिस शाहिद करीम ने प्रश्न किया था, "क्या संघीय या प्रांतीय सरकार से असहमति या असंतोष के कारण नागरिक या प्रेस के सदस्य पर राजद्रोह का आरोप लगाया जाना चाहिए?" जस्टिस करीम ने 30 मार्च को एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए अपने आदेश में संविधान संरक्षित नागरिकों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ कायम होने वाली राजद्रोह की धारा 124-ए को रद्द कर दिया था।

जस्टिस करीम की कोर्ट में अधिवक्ता अबुजार सलमान नियाजी ने एक नागरिक हारून फारूक द्वारा राजद्रोह की धारा 124-ए को रद्द किये जाने के वाली याचिका पर बहस की थी। जस्टिस शाहिद करीम ने मामले की सुनवाई के बाद राजद्रोह की धारा 124-ए को रद्द करते हुए अपने विस्तृत फैसले में कहा, "मनुष्य के रूप में हम सभी किसी न किसी बिंदु पर असहमति की भावनाओं को प्रदर्शित करते हैं, जो अतिसंवेदनशील होते हैं और उन पर अंकुश लगाने का अर्थ है कि पाकिस्तान के नागरिकों को रोबोट बनाना है।"

जस्टिस करीम ने कहा कि यह स्पष्ट है कि जनता ही देश की मालिक हैं और सरकार कर्मचारी लोक सेवक हैं। इसके साथ ही उन्होंने धारा 124-ए में तीन प्रमुख शब्दों अवमानना, घृणा और असंतोष को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि एक निश्चित समय में और विशेष मामले में दर्ज होने वाली अस्वीकृति की मजबूत भावनाओं पर विभिन्न परिस्थितियों में ध्यान नहीं दिये जाने के कारण अपराध के लिए आकर्षित करती हैं और राजद्रोह जैसे मुकदमें में मुकदमा चलाने का निर्णय इस बात पर निर्भर करता है कि उन अधिकारों का इस्तेमाल कौन कर रहा है।"

जस्टिस करीम ने कहा, "राजनीतिक विरोधियों के बीच वस्तुतः कोई स्नेह नहीं होता है, इसलिए वे जो कुछ भी कहते हैं वह धारा 124-ए के दायके में दर्ज हो जाता है। अपने मौजूदा स्वरूप में धारा 124-ए मांग करती है कि सभी विपक्षी दलों के सदस्य, नागरिक और प्रेस के सदस्य संघीय या प्रांतीय सरकारों के प्रति निष्ठा और वफादारी रखें।"

उन्होंने बताया कि असहमति और अरुचि की अभिव्यक्ति में अभक्ति और शत्रुता की भावना को भी शामिल कर लिया गया है। इसका मतलब यह है कि कोई भी राजनीतिक विरोधी या एक अलग राजनीतिक समूह के प्रति वफादारी रखने वाला नागरिक सत्ता के प्रति असहमति, अरुचि और अभक्ति प्रदर्शित करता है तो वह अपराध करता है।

जज करीम ने कहा कि एक नागरिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में आवश्यक निहितार्थ है कि संघीय या प्रांतीय सरकार के प्रति लोगों की अरुचि हो और यह लोकतंत्र और संवैधानिकता की अवधारणा के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि किसी भी विशेष क्षण में ऐसा हो सकता है कि लगभग आधी आबादी राजद्रोही अपराध की दोषी हो जाए।

न्यायमूर्ति करीम ने आगे कहा कि राजद्रोह के अपराध का इस्तेमाल प्रेस, उसके संपादकों आदि के खिलाफ भी किया जा सकता है क्योंकि यह स्वतंत्र प्रेस के अधिकार का उल्लंघन करता है। जो कि जनता को किसी भी तरह की सूचना पहुंचाने के लिए स्वतंत्र रूप से खबरों को प्रकाशित करने का अधिकार रखता है।

उन्होंने कहा, "स्वतंत्र प्रेस का अस्तित्व इसलिए संवैधानिक लोकतंत्र और कानून के शासन में अतिआवश्यक तत्व है। राजद्रोह की धारा 124-ए संविधान के अनुच्छेद 19 द्वारा प्रेस की भूमिका और उसकी स्वतंत्रता के संबंध में निर्धारित सीमा से परे है, जो की पूरी तरह से गलत है।"

जस्टिस करीम ने अपने फैसले में कहा कि यदि धारा 124-ए अपने वर्तमान स्वरूप में रहता है तो मीडिया और प्रेस भी इसके शिकंजे में आसानी से फंस जाएंगे और कई राजनीतिक मुद्दों को आम जनता के बीच पहुंचाने के उनके दायित्व के खिलाफ सरकार उन्हें बेड़ियों में जकड़ देगी। विवादित राजद्रोह की धारा 124-ए के प्रावधानों में ऐसी क्षमता है कि उससे स्वतंत्र प्रेस के लिए स्वतंत्र रूप से लिखने और बिना सरकारी पक्ष से भयभीत हुए जमता के बीच आबाध जानकारी पहुंचाने में निरंतर खतरा बना रहेगा।

Web Title: Pakistan: Loyalty to the state should be different from loyalty to the government, says Lahore High Court

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