नीरव मोदी प्रत्यर्पण: ब्रिटिश अदालत को राजनीतिक प्रभाव का कोई साक्ष्य नहीं मिला

By भाषा | Published: February 25, 2021 10:36 PM2021-02-25T22:36:52+5:302021-02-25T22:36:52+5:30

Nirav Modi extradition: British court finds no evidence of political influence | नीरव मोदी प्रत्यर्पण: ब्रिटिश अदालत को राजनीतिक प्रभाव का कोई साक्ष्य नहीं मिला

नीरव मोदी प्रत्यर्पण: ब्रिटिश अदालत को राजनीतिक प्रभाव का कोई साक्ष्य नहीं मिला

(अदिति खन्ना)

लंदन, 25 फरवरी भारत में धोखाधड़ी और धनशोधन के आरोपों का सामना कर रहे नीरव मोदी के प्रत्यर्पण के पक्ष में बृहस्पतिवार को अपना फैसला देने वाले न्यायाधीश ने कहा कि उन्हें इस मामले में विपरीत राजनीतिक प्रभाव का कोई साक्ष्य नहीं मिला जैसा कि हीरा कारोबारी के कानूनी दल ने दावा किया था।

अपने दावे के समर्थन में मोदी के वकीलों ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू की गवाही दिलवाई थी- जिसकी जिला न्यायाधीश सैमुअल गूजी ने कड़ी निंदा की और इस साक्ष्य को “गैर निष्पक्ष और गैरविश्वसनीय” करार दिया था।

न्यायाधीश गूजी ने कहा, “अलबत्ता, कुछ राजनीतिक व्याख्यान को गलत सलाह करार दिया जा सकता है, मीडिया, ब्रॉडकास्टिंग व सोशल मीडिया लिंक, जो बचाव पक्ष की तरफ से बड़ी मात्रा में मेरे सामने पेश किये गए, में ऐसा कुछ भी नहीं जो यह संकेत दें कि मुकदमे की सुनवाई को प्रभावित करने के लिये राजनेता किसी तरह का दखल दे रहे हैं, एनडीएम (नीरव दीपक मोदी) के मुकदमे की तो छोड़िए, सुनवाई प्रक्रिया ऐसे किसी प्रभाव को लेकर अतिसंवेदनशील होगी।”

उन्होंने कहा, “मैं ऐसे किसी भी प्रतिवेदन को खारिज करता हूं कि भारत सरकार ने जानबूझकर मीडिया में इसे इतना चर्चित किया है। मैं न्यायमूर्ति काटजू की विशेषज्ञ राय को भी काफी कम तवज्जो देता हूं।”

पिछले साल वीडियो लिंक के जरिये काटजू की गवाही के संदर्भ में न्यायाधीश गूजी का मानना है कि यह पूर्व वरिष्ठ न्यायिक सहकर्मियों के प्रति असंतोष लिये हुए थे और उसके कुछ हिस्सों को “हैरान करने वाला, अनुचित और पूरी तरह असंवेदनशील तुलना” करार दिया।

गूजी ने अपने फैसले में कहा, “इसमें एक मुखर आलोचक के अपने व्यक्तिगत एजेंडे के चिन्ह थे। साक्ष्य देने से एक दिन पहले मीडिया को उलझाने वाले उनके व्यवहार को मैंने सवालों के दायरे में पाया वह भी ऐसे व्यक्ति के लिये जिसे भारतीय न्यायपालिका में इतने ऊंचे ओहदे पर कानून के राज के संरक्षण व रक्षा के लिये नियुक्त किया गया हो।”

“मीडिया द्वार मुकदमे” और मोदी के मामले पर इसके प्रभाव के आलोचक होने के बावजूद वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत के न्यायाधीश ने इस बात पर हैरानी जताई कि 2006 से 2011 तक उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश रहने वाले काटजू ने ब्रिटेन में कार्यवाही के दौरान दिये जाने वाले साक्ष्यों के संबंध में पत्रकारों को जानकारी देने का “चौंकाने वाला फैसला” लिया, “मीडिया में अपना तूफान खड़ा किया और मीडिया के हितों को देखा।”

गूजी ने बचाव पक्ष द्वारा पेश किये गए एक अन्य गवाह उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अभय थिप्से की भी आलोचना की जिन्होंने बचाव पक्ष के गवाह के तौर पर पेश होते हुए यह बताया था कि कैसे भारतीय अदालतों में यह मामला चलेगा।

ब्रिटश न्यायाधीश ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि थिप्से अपनी सेवानिवृत्ति के बाद एक राजनीतिक दल (कांग्रेस) से जुड़ गए थे और इसके फलस्वरूप मीडिया में उनके विपरीत प्रतिक्रियाएं आईं और वह भी उससे उलझे और खुद मीडिया को आमंत्रित भी किया।

फैसले में कहा गया, “कुल मिलाकर, इन तथ्यों का मेरे आकलन पर प्रभाव है कि मैं इन साक्ष्यों को कोई तवज्जो न दूं।”

पंजाब नेशनल बैंक घोटाला मामले में मोदी के खिलाफ प्रथम दृष्टया धोखाधड़ी और धनशोधन का मामला पाते हुए ब्रिटिश न्यायाधीश ने कहा कि ऐसे कोई साक्ष्य नहीं हैं जिससे यह पाया जाए कि हीरा कारोबारी को प्रत्यर्पित करने पर “न्याय से इनकार का सामना करना होगा” जैसा कि उसके वकीलों की दलील रही है।

अदालत ने पाया कि भारत और दुनिया में नीरव मोदी ब्रांड को बड़ी सफलता दिलाने वाले हाईप्रोफाइल कारोबारी को मीडिया रिपोर्टिंग के दौरान “सनसनी” का निशाना बनाया गया लेकिन ब्रिटेन में भी अदालतों के लिये यह नयी बात नहीं है।

न्यायाधीश ने इस बात को भी रेखांकित किया कि कैसे उन्हें भारत सरकार की तरफ से 16 खंडों में साक्ष्य मिले, विशेषज्ञ रिपोर्ट के 16 बंडल आदि मिले जिन्हें उन्होंने फैसला करते समय ध्यान में रखा।

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Web Title: Nirav Modi extradition: British court finds no evidence of political influence

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