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महिंदा राजपक्षे ने श्रीलंकाई प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली

By भाषा | Updated: August 9, 2020 10:34 IST

नव निर्वाचित सरकार ने मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या 26 तक सीमित रखने का निर्णय किया है

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ठळक मुद्देराजपक्षे परिवार का श्रीलंका की राजनीति पर दो दशक से वर्चस्व है।महिंदा 2005 से 2015 के बीच करीब एक दशक तक राष्ट्रपति रह चुके हैं।

श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने ऐतिहासिक बौद्ध मंदिर में रविवार को देश के नये प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली। श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) के 74 वर्षीय नेता को नौंवी संसद के लिए पद की शपथ उनके छोटे भाई एवं राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने केलानिया में पवित्र राजमाहा विहाराय में दिलाई।

महिंदा नीत एसएलपीपी ने पांच अगस्त के आम चुनाव में जबर्दस्त जीत हासिल करते हुए संसद में दो तिहाई बहुमत हासिल किया। इस बहुमत के आधार पर वह संविधान में संशोधन कर पाएगी जो सत्ता पर शक्तिशाली राजपक्षे परिवार की पकड़ को और मजबूत बनाएगा। महिंदा को 5,000,00 से अधिक व्यक्तिगत वरीयता के मत मिले। चुनावी इतिहास में पहली बार किसी प्रत्याशी को इतने मत मिले हैं। एसएलपीपी ने 145 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत दर्ज करते हुए अपने सहयोगियों के साथ कुल 150 सीटें अपने नाम की जो 225 सदस्यीय सदन में दो तिहाई बहुमत के बराबर है। 

‘डेली मिरर’ समाचारपत्र के मुताबिक, नया मंत्रिमंडल सोमवार को शपथ ग्रहण करेगा, इसके बाद राज्य एवं उप मंत्री शपथ ग्रहण करेंगे। नव निर्वाचित सरकार ने मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या 26 तक सीमित रखने का निर्णय किया है, हालांकि 19 वें संविधान संशोधन के प्रावधानों के तहत इसे बढ़ा कर 30 किया जा सकता है। राजपक्षे परिवार का श्रीलंका की राजनीति पर दो दशक से वर्चस्व है। इसमें एसएलपीपी संस्थापक एवं इसके राष्ट्रीय संयोजक बासिल राजपक्षे, जो राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के छोटे भाई और महिंदा से बड़े हैं, भी शामिल हैं।

महिंदा 2005 से 2015 के बीच करीब एक दशक तक राष्ट्रपति रह चुके हैं। परिवार के उत्तराधिकारी और महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे को भी पांच अगस्त को हुए आम चुनाव में हम्बनटोटा से जीत मिली है। राष्ट्रपति गोटाबाया ने एसएलपीपी के टिकट पर नवंबर का राष्ट्रपति चुनाव जीता था। जब उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी तब ही महिंदा की चौथी बार देश का प्रधानमंत्री बनने का मौका मिलने की उम्मीद बढ़ गई थी।

संसदीय चुनाव में उन्हें 150 सीटों की जरूरत थी जो संवैधानिक बदलावों के लिये जरूरी है। इनमें संविधान का 19वां संशोधन भी शामिल है जिसने संसद की भूमिका मजबूत करते हुए राष्ट्रपति की शक्तियों पर नियंत्रण लगा रखा है। संविधान में संशोधन की संभावनाओं पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एसएलपीपी अध्यक्ष जी एल पेइरिस ने शुक्रवार को कहा कि काफी विचार-विमर्श के बाद इसे किया जाएगा।

उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘स्पष्ट रूप से, कुछ संशोधन की जरूरत है। लेकिन जब देश के शासन की बात आती है तो इसे इस तरीके से नहीं किया जा सकता। ’’ उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति पद पर गोटाबाया के निर्वाचित होने के बाद वह 19ए संविधान संशोधन की वजह से संसद को भंग कर उनके कार्यक्रम को समर्थन करने वाली सरकार बनाने में असफल रहे जबकि पूर्व विपक्षी सांसदों ने संसद को दोबारा बुलाने की मांग की। पेइरिस ने कहा, ‘‘आम चुनावों के नतीजों से स्पष्ट हो गया है कि नये राष्ट्रपति के बाद लोग जो सरकार चाहते थे, वह निर्वाचित हो गई है लेकिन यह पिछली संसद से अलग है।

उन्होंने कहा, ‘‘इन चीजों को बदलना चाहिए। अगर जरूरत हो, नयी सरकार के पास संविधान में बदलाव करने की शक्ति है।’’ जब उनसे पूछा गया कि क्या निष्पक्ष आयोग को भंग किया जाएगा,पेइरिस ने कहा उसकी जरूरत नहीं है। कार्यकर्ता पहले ही चेतावनी दे रहे हैं कि देश में असहमति और आलोचना की गुंजाइश कम हो रही है और इससे श्रीलंका अधिनायकवाद की ओर बढ़ सकता है।

संसदीय चुनाव में सबसे बड़ा झटका पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की यूनाटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) को लगा है, जो सिर्फ एक सीट ही जीत सकी। देश की सबसे पुरानी पार्टी 22 जिलों में एक भी सीट जीत पाने में नाकाम रही। चार बार प्रधानमंत्री रहे इसके नेता को 1977 के बाद से पहली बार शिकस्त का सामना करना पड़ा है।

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