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जलवायु परिवर्तन: पर्वतीय क्षेत्रों के गर्म होने के कारण, पनबिजली बिजली संयंत्र कमजोर हो सकते हैं

By भाषा | Updated: June 30, 2021 15:44 IST

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साइमन कुक, डंडी विश्वविद्यालय

डंडी (स्कॉटलैंड), 30 जून (द कन्वरसेशन) 7 फरवरी 2021 को उत्तरी भारतीय हिमालय में रोंटी पीक से लगभग दो करोड़ 70 लाख क्यूबिक मीटर चट्टान और ग्लेशियर बर्फ टूटकर 1,800 मीटर नीचे घाटी में गिर गई।

ग्लेशियर की बर्फ पिघलकर पहाड़ से नीचे गिरी और चट्टान तथा तलछट के मलबे का एक असाधारण प्रवाह अपने साथ बहा लाई, जिसने सड़कों, पुलों और दो पनबिजली स्टेशनों को नष्ट कर दिया। दुख की बात है कि इस दौरान 200 से अधिक लोगों की जान चली गई, जिनमें से कई तपोवन जलविद्युत संयंत्र में निर्माण श्रमिक थे।

हालांकि किसी एक घटना को जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ठहराना हमेशा मुश्किल होता है, लेकिन हो सकता है कि बढ़ते वैश्विक तापमान ने इस घटना, जिसे चमोली आपदा के रूप में जाना जाता है, में एक भूमिका निभाई हो। और अगर जलवायु परिवर्तन ने इस भूस्खलन का कारण बनने में मदद की, तो इससे विश्व स्तर पर जलविद्युत बुनियादी ढांचे को खतरा हो सकता है।

हिमालय जैसे पर्वतीय क्षेत्र परिवर्तन के प्रति संवेदनशील हैं। इनमें खड़ी, अस्थिर घाटी की दीवारें होती हैं, और भूकंप सामान्यत: आते रहते हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन भूकंप के पैमाने को अधिक लगातार और उच्च परिमाण की घटनाओं की ओर ले जा सकता है।

उदाहरण के लिए, हम अधिक भूस्खलन की उम्मीद कर सकते हैं जहां घाटी के ढलान बिना समर्थन के छोड़ दिए जाते हैं, क्योंकि आसन्न ग्लेशियर पतले हो जाते हैं। जहां बर्फ की परत पिघलती है, यह बर्फीले बंधन को हटा देती है जो पहाड़ की चट्टान और तलछट को एक साथ बांधता है। बढ़ते तापमान हिमनदों की बढ़ती हुई झीलों से पिघले पानी के अचानक निकलने और गर्म होने पर पूरे हिमनदों के ढहने का कारण बन सकते हैं।

ऐसे में सवाल यह है कि अगर यह स्थान अधिक अस्थिर होते जा रहे हैं तो क्या हमें पर्वतीय क्षेत्रों में जलविद्युत विकसित करने से परहेज करना चाहिए? खैर, यह जटिल है। जलविद्युत जीवाश्म ईंधन जलाने पर निर्भरता को कम करने में मदद कर सकता है, और यह दुनिया के उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, पेरू अपनी लगभग आधी बिजली जल विद्युत से उत्पन्न करता है, और वह नए बुनियादी ढांचे में लगातार निवेश कर रहा है।

आपदाएं अनिवार्य रूप से कठिन प्रश्नों को जन्म देती हैं, जलविद्युत की स्थिरता पर कुछ बातों का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है।

एक गर्म होती दुनिया में जलविद्युत

जैसा कि मेरे एक सहयोगी ने कहा: “कभी-कभी पहाड़ी ढलानें बस ढह जाती हैं; कोई विशिष्ट कारण नहीं है।” इस संबंध में कई घटनाएं दर्ज हैं, जहां जलविद्युत बांध किसी तरह के जलवायु परिवर्तन के बिना क्षतिग्रस्त या नष्ट हो गए हैं। ऐसा ही एक कुख्यात उदाहरण उत्तरी इटली में 1963 की वाजोंट आपदा है, जहां एक घाटी की दीवार एक जलाशय में गिर गई और एक विशाल-सुनामी उत्पन्न हुई जिसने बांध को अपनी चपेट में ले लिया, जिससे नीचे की तरफ 2,500 से अधिक लोग मारे गए।

तब से इस घटना के सटीक कारणों पर बहस हो रही है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि जलाशय पानी से भर रहा था, घाटी के किनारे मिट्टी की परतें अपनी क्षमता का पर्याप्त पानी सोख चुकी थीं। यह गीली मिट्टी स्वाभाविक रूप से कमजोर हो चुकी थी, जो किसी भी समय खिसक कर गिर सकती थी।

अन्य ऊर्जा स्रोत और उनके बुनियादी ढांचे में अपने स्वयं के निहित जोखिम होते हैं - चेरनोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र, या डीपवाटर होराइजन तेल ड्रिलिंग रिग के बारे में सोचें। दुनिया के कई बिजली स्टेशन तट से निकटता के कारण जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील हैं, जिनमें से कई समुद्र के बढ़ते स्तर से खतरे में हैं।

चमोली आपदा स्थल पर जल विद्युत का विकास करना शायद कभी भी बुद्धिमानी नहीं रही होगी। इसी घाटी ने 2000 और 2016 में बड़े हिमस्खलन का अनुभव किया था और हाल के वर्षों में कई बड़ी बाढ़ देखी हैं। इस प्रकार की घटनाएँ कब और कहाँ घटित हो सकती हैं, इसका अनुमान लगाना निश्चित रूप से अत्यंत कठिन है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से एक अस्थिर भू परिस्थिति तो है।

वैज्ञानिकों ने निगरानी के लिए कई तरीके विकसित किए हैं कि कैसे परिदृश्य बदल रहे हैं, विशेष रूप से उपग्रह छवियों का उपयोग करके। हमारे पास चेतावनी के संकेतों को पहचानने और यथोचित रूप से अपेक्षित जलविद्युत को सुरक्षित रूप से विकसित करने के लिए उपकरण हैं। दुर्भाग्य से, इन उपकरणों का हमेशा उपयोग नहीं किया जाता है, या चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जैसा कि चमोली में हुआ।

एक क्रूर विडंबना यह है कि जलविद्युत देशों को कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद तो कर सकता है, लेकिन साथ ही उन उत्सर्जन के परिणामस्वरूप गर्म होती जलवायु में बांध तेजी से कमजोर हो रहे हैं। हम इस ऊर्जा स्रोत को सुरक्षित रूप से विकसित कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए सावधानीपूर्वक निर्णय लेने, अनुसंधान द्वारा जानकार बनने, और बदलते परिदृश्य और जलवायु की निरंतर निगरानी की आवश्यकता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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