नई दिल्लीः दक्षिणी दिल्ली के महापौर मुकेश सूर्यान के नवरात्रि के दौरान मीट की दुकानों पर लगाए गए पाबंदी को लेकर सोशल मीडिया पर लोग नाराजगी जता रहे हैं। मुकेश सूर्यान ने 4 अप्रैल को जारी आदेश में कहा कि ‘नवरात्रि के दिनों में लोग मंदिरों में जाते हैं। दिल्ली के 99 प्रतिशत लोग अपने घर में प्याज और लहसुन का उपयोग तक नहीं करते। मंदिरों के पास मीट की बिक्री उन्हें असहज करती है। लोग नवरात्रि के दौरान माता की पूजा करने के लिए मंदिर जाते हैं और जब रास्ते में मीट की दुकानों के सामने से गुजरते हैं तो उन्हें मांस की दुर्गंध का सामना करना पड़ता है, इससे उनकी धार्मिक आस्था प्रभावित होती है।’
मुकेश सूर्यान के इस आदेश के बाद सोशल मीडिया पर इसको लेकर प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो गया। कइयों ने सूर्यान के उस तर्क पर भी सवाल खड़े किए जिसमें उन्होंने कहा कि 99 प्रतिशत लोग लहसून और प्याज तक नहीं खाते। यूजर्स ने कहे कि अगर ऐसा है तो फिर प्याज और लहसून पर भी बैन लगा दो। किसी ने मीट बैन को लेकर 2008 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को कोट किया। वहीं कइयोंं ने कहा कि हम बंगाली हैं, हम तो मछली देवी को अर्पित करते हैं। तो कइयों ने अपने को हिंदू बताते हुए कहा कि हमें मीट के बिकने से कोई आपत्ति नहीं। अगर 99 प्रतिशत लोग नवरात्रि में नहीं खाते तो 1 प्रतिशत को तो खाने-जीने का अधिकार है।
सूर्यान के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कवि पुनीत शर्मा ने लिखा- तो लहसुन और प्याज़ पर बैन लगाओ न।
धीरज नाम के एक यूजर ने भी कहा, नवरात्रि के दौरान प्याज और लहसुन की खरीद-बिक्री पर भी प्रतिबंध और अपराधीकरण क्यों नहीं किया जाता? कृपया कीजिए। सिर्फ मांस पर ही क्यों रोक?
एक अन्य ने लिखा- एक प्रतिशत लोगों को जीने का अधिकार है।
दुकान बंद करना समाधान नहीं है। आपको अपने धर्म के लोगों को समझाना चाहिए कि नवरात्रि में नॉनवेज ना खाएं। क्यों 9 दिन के लिए बेरोजगार कर रहे हैं लोगो को..सबका घर होता है सब अपने-अपने बिजनेस से कमाते हैं और अपना घर चलाते हैं।
एक यूजर ने लिखा-माफ़ कीजिए। यह हिंदू समुदाय के बारे में नहीं है। मैं हिंदू हूं और उस हिस्से से आता हूं जो दशहरा के दौरान खुशी-खुशी नवरात्रि मनाता है। कोई वर्जना नहीं, क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। कोई टैबू नहीं है। एक यूजर ने 2008 में जैन संबंधी मामले को लेकर मीट बैन पर दिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को साझा करते हुए लिखा- एक रिमाइंडर कि दक्षिण दिल्ली नगर निगम का मांस की दुकानों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश पूरी तरह से कानूनी है, 2008 में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के लिए धन्यवाद।
एक यूजर ने लिखा, रमजान की शुरुआत भी नवरात्रि से ही होती है तो जो लोग रोजा रखते हैं उनकी भी धार्मिक भावनाएं होती हैं। अगर किसी को इफ्तार के लिए मांस चाहिए तो उनके बारे में क्या कहेंगे। कृपया एमसीडी..।
गौरतलब है कि दक्षिणी दिल्ली के मीट विक्रेताओं ने भी कहा कि हम सरकार के साथ हैं लेकिन लेकिन इस तरह के आदेश मांस और मछली की दुकान के मालिकों को समय पर अवगत करा दिए जाने चाहिए। आईएनए बाजार में बॉम्बे फिश शॉप के मालिक एके बजाज ने कहा कि हमारे कारोबार को काफी नुकसान होगा नुकसान।