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SC ST ACT : FIR दर्ज होने पर पहले जांच नहीं तुरंत गिरफ्तारी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 10, 2020 07:00 PM2020-02-10T19:00:06+5:302020-02-10T19:00:06+5:30

सुप्रीम कोर्ट  ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति संशोधन अधिनियम 2018 की संवैधानिक वैधता पर बड़ा फैसला सुनाया है. अब एससी-एसटी संशोधन कानून के मुताबिक शिकायत मिलने के बाद तुरंत एफआईआर दर्ज होगी और गिरफ्तारी करनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने इसकी वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि कोई अदालत सिर्फ ऐसे ही मामलों पर अग्रिम जमानत दे सकती है जहां प्रथमदृष्टया कोई मामला नहीं बनता हो. न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अधयक्षता वाली पीठ ने कहा कि अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए शुरुआती जांच की जरूरत नहीं है और इसके लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की मंजूरी की भी जरूरत नहीं है. पीठ के दूसरे जज न्यायमूर्ति रवीन्द्र भट ने सहमति वाले एक निर्णय में कहा कि प्रत्येक नागरिक को साथी नागरिकों के साथ समान बर्ताव करना होगा और बंधुत्व की अवधारणा को बढ़ावा देना होगा.  न्यायमूर्ति भट ने कहा कि यदि प्रथमदृष्टया एससी/एसटी अधिनियम के तहत कोई मामला नहीं बनता तो कोई अदालत Fir को रद्द कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला एससी,एसटी संशोधन अधिनियम 2018 को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर आया है.  ये याचिकाएं न्यायालय के 2018 के फैसले को निरस्त करने के लिए दाखिल की गई थीं. 

दरअसल, 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के गिरफ्तारी के प्रावधान को कमजोर  कर दिया था इसमें अग्रिम जमानत की व्यवस्था दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने एक्ट में संशोधन करते हुए कहा था कि यदि सरकारी कर्मचारी/अधिकारी पर आरोप लगता है तो गिरफ्तारी से पहले संबधित विभाग से परममिशन लेनी होगी. और अगर उत्पीड़न का आरोप  आम नागरिक पर  तो एसएसपी लेवल के पुलिस ऑफिसर से इसकी परमिशन लेगी होगी.

दरअसल, एससी/एसटी एक्ट में संशोधन के जरिए शिकायत मिलने पर फौरन गिरफ्तारी का प्रावधान फिर से जोड़ा गया था. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में इस संशोधन को खत्म करने की मांग की गई थी. इससे पहले मार्च 2018 में कोर्ट ने तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाने वाला फैसला सुनाया था.  कोर्ट का कहना था कि कानून के दुरुपयोग के बढ़ते मामलों को देखते हुए शिकायतों की शुरुआती जांच के बाद ही पुलिस को कोई गिरप्तारी करनी चाहिए . इस फैसले का विरोध होने के बाद सरकार को कानून में बदलाव कर फौरन गिरफ्तारी का प्रावधान दोबारा जोड़ना पड़ा . 

2018 में एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अनुसूचित जाति-जनजाति संगठनों ने 2 अप्रैल को भारत बंद बुलाया. एस एसटी एक्ट को कमजोर होते देश शुरू हुए प्रदर्शनों   के बाद केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुर्नविचार याचिका दाखिल की . सरकार ने 9 अगस्त 2018 को sc st act को पहले वाले रुप में लाने के लिए एससी-एसटी संशोधन बिल संसद में पेश किया. जिसे  अगस्त 2018 में राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई. जिसके बाद  1 अक्टूबर 2019 को  सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने फौरन गिरफ्तारी पर रोक लगाने के 2 जजों की बेंच के मार्च 2018 वाले फैसले को रद्द कर दिया और फैसला सुरक्षित रख लिया.

सरकार ने एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून में एक धारा 18 ए जोड़ी जिसके मुताबिक कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले शुरूआती जांच की जरूरत नहीं है . साथ ही ये भी कहा कि जांच कर रहे आईओ को गिरफ्तारी करने से पहले किसी से परमिशन लेने की जरूरत है. हालांकि  केन्द्र की तरफ से लाए गए इस बिल के बाद इसका विरोध कर रहे वर्गों ने भी भारत बंद का ऐलान किया गया था. 

 

 

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