आइंस्टीन को चैलेंज करने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह कहानी
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 15, 2019 03:25 PM2019-11-15T15:25:35+5:302019-11-15T16:56:46+5:30
हमेशा हाथों में कलम लिए रहते, डायरी पर लिखते, डायरी भर जाती तो दीवारों पर लकीरें खींचने लगते. इससे भी मन भर जाता तो बांसुरी बजाने लगते. बांसुरी उनको बहुत प्रिय थी. नासा के लिए काम कर चुके वशिष्ठ नारायण को अमेरिका रास नहीं आया और 1972 में अपनी प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर भारत लौट आए. उन्होंने भारत आकर आईआईटी कानपुर और भारतीय सांख्यकीय संस्थान कोलकाता में पढ़ाना शुरू कर दिया.
आइंस्टाइन को चुनौती देने वाले देश के महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह 14 नवंबर को दुनिया से विदा हो गए. 74 साल के वशिष्ठ नारायण सिंह ने लंबी बीमारी के बाद पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में अंतिम सांसे ली. बर्कले के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से वर्ष 1969 में गणित में पीएचडी तथा 'साइकिल वेक्टर स्पेस थ्योरी' पर शोध करने वाले सिंह लंबे समय से शिजोफ्रेनिया रोग से पीडि़त थे. लेकिन सब कुछ भूलने के बाद भी उन्हें कुछ याद था तो वो थी गणित…