UP Caste Census: यूपी में जातिगत जनगणना की सियासत, भाजपा और योगी सरकार के लिए चुनौती बनेगा, बसपा प्रमुख मायावती ने की मांग

By राजेंद्र कुमार | Published: August 9, 2023 07:47 PM2023-08-09T19:47:57+5:302023-08-09T19:49:28+5:30

UP Caste Census: भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना कराने को तैयार नहीं है. जबकि जिस यूपी की सभी 80 संसदीय सीटें जीतने का लक्ष्य भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने तय किया है, वहां की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव पहले ही राज्य में जातिगत जनगणना कराने की मांग कर चुके है.

UP Caste Census politics UP will become challenge BJP and Yogi government BSP chief Mayawati demanded | UP Caste Census: यूपी में जातिगत जनगणना की सियासत, भाजपा और योगी सरकार के लिए चुनौती बनेगा, बसपा प्रमुख मायावती ने की मांग

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Highlights सवर्ण जातियों के मतदाता उससे नाराज हो सकते हैं.जातीय जनगणना की सियासत को तेज कर दिया है.यूपी में जातिगत जनगणना की सियासत ज़ोर पकड़ेगी.

लखनऊः लोकसभा चुनावों के पहले ही जातिगत जनगणना की सियासत अब देश और प्रदेश में ज़ोर पकड़ने लग गई. बिहार सरकार जातिगत जनगणना करा रही हैं. दूसरी तरफ मोदी सरकार पहले ही जातिगत जनगणना कराने से इंकार कर चुकी है, क्योंकि उसे  लगता है कि इससे सवर्ण जातियों के मतदाता उससे नाराज हो सकते हैं.

इसलिए भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना कराने को तैयार नहीं है. जबकि जिस यूपी की सभी 80 संसदीय सीटें जीतने का लक्ष्य भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने तय किया है, वहां की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव पहले ही राज्य में जातिगत जनगणना कराने की मांग कर चुके है.

अब बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती ने भी यूपी समेत देश भर में जातीय जनगणना कराए जाने की मांग करते हुए जातीय जनगणना की सियासत को तेज कर दिया है. ऐसे में अब यह तय हो गया कि बिहार के साथ अब यूपी में जातिगत जनगणना एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनेगा. यूपी में जातिगत जनगणना की सियासत ज़ोर पकड़ेगी. फिर इसके इसके जरिए भाजपा के राष्ट्रवाद को विपक्ष चुनौती देगा.

वास्तव में जातिगत जनगणना कराने को प्रमुख मुद्दा बनाने का श्रेय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को है. उन्होने ही जातिगत जनगणना को जन मुद्दा बनाया है. जब नीतीश सरकार ने बिहार में जातिगत जनगणना करानी शुरू की और भाजपा सहित तमाम लोगों के इस रोकने का प्रयास किया. उसके चलाते ये मामला अदालत पहुंचा.

तो पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के द्वारा कराए गए जाति जनगणना को सही ठहराया. सुप्रीम कोर्ट ने भी जातिगत जनगणना कराने के मामले में रोक नहीं लगाई और देश भर में यह संदेश चला गया कि राज्य में जातीय जनगणना कराना गलत नहीं है.

इसके पहले ही सपा मुखिया अखिलेश यादव ने यूपी में ओबीसी समाज को अपने साथ जोड़ने के लिए जातिगत जनगणना कराने की मांग की और अपनी कई सभाओं में इसे दोहराया. कहा जा रहा है कि सपा के हाथों में इस मुद्दे को जाता देख बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी जातीय जनगणना कराने का समर्थन किया.

अब सबसे रोचक बात तो यह है कि जो भाजपा जातीय जनगणना कराने का विरोध कर रही है, उसके ही सहयोगी अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के मुखिया जातीय जनगणना कराने के समर्थक हैं. यहीं नहीं एनडीए में शामिल हुए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के मुखिया भी जातीय जनगणना कराने का समर्थन कर चुके हैं. 

ऐसे में अब जब मायावती ने जातीय जनगणना का समर्थन करते हुए ट्वीट करके कहा है कि ओबीसी समाज की आर्थिक, शैक्षणिक व सामाजिक स्थिति का सही आकलन कर उसके हिसाब से विकास योजना बनाने के लिए बिहार सरकार द्वारा कराई जा रही जातीय जनगणना को पटना हाईकोर्ट द्वारा पूर्णतः वैध ठहराए जाने के बाद अब सबकी निगाहें यूपी पर टिकी हैं कि यहां यह जरूरी प्रक्रिया कब शुरू होगी ?

बसपा चाहती है कि यूपी में नहीं बल्कि केंद्र को राष्ट्रीय स्तर पर भी जातीय जनगणना करानी चाहिए. क्योंकि देश में जातीय जनगणना का मुद्दा, मंडल आयोग की सिफारिश को लागू करने की तरह, राजनीति का नहीं बल्कि सामाजिक न्याय से जुड़ा महत्त्वपूर्ण मामला है.

समाज के गरीब, कमजोर, उपेक्षित व शोषित लोगों को देश के विकास में उचित भागीदार बनाकर उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए ऐसी गणना जरूरी. मायावती के इस कथन से भाजपा पर अब जातीय जनगणना कराने का दबाव बढ़ेगा. कहा जा रहा है कि भाजपा नेताओं के इस मामले में फैसला ना लेने की स्थिति में विपक्ष को भाजपा की घेराबंदी करने और उसे पिछड़ा तथा गरीब विरोधी साबित करना का मौका मिलेगा.  

जातिगत जनगणना की सियासत: 

राजनीति के जानकारों के अनुसार विपक्ष को जातीय जनगणना के आधार पर भाजपा की घेराबंदी करने का मजबूत आधार मिला है.  बसपा, सपा और कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों के नेताओं का यह पता है कि वह भाजपा की मोदी-योगी सरकार का मुकाबला धर्म और राष्ट्रवाद के नाम पर नहीं कर सकते.

आगामी लोकसभा चुनावों के पहले अयोध्या का भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूजा अर्चना करने अयोध्या पहुंचेगे. उस आयोजन को देश भर में दिखाया जाएगा. ऐसे में विपक्ष जातिगत जनगणना के मुद्दे को लेकर जनता के बीच उठाएगा. और एक बार फिर से यूपी मंडल बनाम कमंडल जैसी सियासत की जाएगी जैसे वर्ष 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम ने की थी.

यूपी में जातिगत जनगणना की वकालत करने वाली सपा के आजमगढ़ की गोपालपुर विधान सभा सीट से विधायक विधायक नफीस अहमद कहते हैं, जातिगत जनगणना के मुद्दे पर सबसे पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल के दौरान साल 1951 में चर्चा की गई थी.

हालांकि तब जातिगत जनगणना नहीं हुई थी. रही बात अब इस मुद्दे को फिर उठाने की तो आज जातिगत जनगणना कराना समाज के लिए बहुत जरूरी है. इसीलिए सिर्फ सपा और जेडीयू ही नहीं कांग्रेस सहित मंडल विचारधारा से प्रभावित देश के अन्य राजनीतिक दल भी जातिगत जनगणना की मांग को पिछले एक साल से ज़ोर-शोर से उठा रहे हैं. 

नफीस कहते हैं कि दक्षिण भारत के कई राजनीतिक दल भी जातिगत जनगणना का समर्थन करते हैं। ऐसे में लोकसभा चुनावों के पहले तमाम विपक्ष दल अब जातिगत जनगणना के मुद्दे पर एक प्लेटफार्म पर आ रहे हैं. जातिगत जनगणना के मुद्दा विपक्षी दलों की ये एकता भाजपा के लिए संकट बनेगी.

भाजपा के शीर्ष नेताओं को यह बताना होगा कि वर्ष 2018 में जब कैबिनेट मंत्री राजनाथ सिंह ने वादा किया था कि 2021 की जनगणना में ओबीसी जातियों की गिनती भी की जाएगी। तो अब केंद्र सरकार ने इससे इनकार क्यों कर रही है? केंद्र सरकार ने बीते वर्ष जुलाई में लोकसभा में जवाब देते हुए यह कहा था कि संवैधानिक प्रावधानों के तहत सिर्फ एससी और एसटी जातियों की गिनती ही की जा सकती है, ओबीसी की नहीं.

इसलिए उठाया जा रहा जातीय जनगणना का मुद्दा

फिलहाल अब यूपी में जातिगत जनगणना की सियायत शुरू हो गई है और अब जातिगत जनगणना के पक्षधर दल इसके पक्ष में ओबीसी समाज को अपने साथ जोड़ने में जुटेंगे, वही भाजपा विपक्ष के इस प्रयास को नाकाम करने का प्रयास करेंगी. जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में विपक्षी दलों का यह तर्क है कि वर्ष 1951 से एससी और एसटी जातियों का डेटा जारी होता है.

लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों के आंकड़े नहीं आते। इस कारण ओबीसी की सही आबादी का अनुमान लगाना अभी तक मुश्किल है. दूसरा तर्क यह दिया जा रहा है कि वर्ष 1990 में केंद्र की वीपी सिंह सरकार ने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों (मंडल आयोग) को लागू किया था.

तब देश में ओबीसी की 52 फीसदी आबादी होने का अनुमान लगाया गया था. हालांकि, मंडल आयोग ने ओबीसी आबादी का जो अनुमान लगाया था उसका आधार 1931 की जनगणना ही थी. मंडल आयोग की सिफारिश पर ही ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिया जाता है.

जानकारों का कहना है कि एससी और एसटी को जो आरक्षण मिलता है, उसका आधार उनकी आबादी है। लेकिन ओबीसी के आरक्षण का कोई आधार नहीं है। इसीलिए अब जातिगत जनगणना कराने की मांग की जा रही है. और भाजपा इसे कराने को तैयार नहीं है. 

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