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फुल पैसा वसूल है भारत की सबसे तेज चलने वाली ट्रेन 'वंदे भारत', जानें खाना, स्पीड, सुविधाओं पर यात्री का अनुभव

By उस्मान | Updated: March 12, 2019 18:45 IST

Vande Bharat Express Train 18 review: ट्रेन की बनावट ऐसी है कि शीशों से बाहर की दुनियानवी हकीकतों को ढक दिया जाए तो आपको एहसास नहीं होगा कि आप मेट्रो में यात्रा कर रहे हैं या ट्रेन में.

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भारत की सबसे तेज चलने वाली ट्रेन 'वंदे भारत एक्सप्रेस' (Vande Bharat Express Train 18) की जिस बोगी में बैठा था, उसमें 32 इंच की चार स्क्रीन लगी हुई थीं। हर स्क्रीन पर बार-बार नरेंद्र मोदी का चित्र उभर रहा था। साथ में रेलवे परियोजनाओं की स्लाइड्स भी चल रही थी, जिसे देखकर बहुत सारे सहयात्री उत्साही नजर आ रहे थे। मेरी बगलवाली सीट पर बैठा आदमी कहता है कि कुछ भी कहिये 'मोदी जी के पास कुछ कर गुजरने का जुनून तो है'। 1800 रुपये वाले चेयरकार में साढ़े 6 बजे के समय दो बिस्किट और कॉफी मिली थी और ये कॉफी इतनी थी कि आप नींद को कुछ देर के लिए झटक सके।

इतने में पीछे वाली बोगी से एक नौजवान हैंड ट्राइपॉड पर मोबाइल के जरिये वीडियो शूट करता दिखाई देता है। ट्रेन में स्पीकर लगा है और नियत समय पर घोषणाएं होती है। पहले कुछ सेकेंड के लिए तेज इंस्ट्रुमेंटल म्यूजिक बजता है और फिर एक थकी हुई आवाज, जिस पर उत्साहित दिखने का बोझ है, यात्रियों का स्वागत करती है। सुबह के समय हुई घोषणाओं में अनाउंसर वन्दे भारत बोलता है, लेकिन 12 बजे के बाद ट्रेन इलाहाबाद पहुँचती है, वो घोषणा करता है, 'वन्दे मातरम ट्रेन में यात्रा कर रहे यात्रियों का स्वागत है। वो दो बार वन्दे मातरम बोलता है।' अनाउंसमेंट पूरा हो जाता है। कुछ लोग अनाउंसर की गलती अपनी सीटों पर बैठे-बैठे सुधारते हैं। वन्दे भारत है वन्दे मातरम नहीं।

आरामदायक सीटेंट्रेन की बनावट ऐसी है कि शीशों से बाहर की दुनियानवी हकीकतों को ढक दिया जाए तो आपको एहसास नहीं होगा कि आप मेट्रो में यात्रा कर रहे हैं या ट्रेन में। ट्रेन की बोगियों में एसी है, सीसीटीवी लगा है, लम्बी चौड़ी खिड़कियां है, जिन पर ट्रेन चलने के शुरुआती दिनों पर पत्थर फेंके गए हैं, लेकिन उनके निशान ढूंढ़ने की जहमत मैंने नहीं उठाई। हर सीट के नीचे चार्जर पॉइंट है और पूरी बोगी फाइबर से बनी है। सामान रखने के रैक और बैठने की कुर्सियों के अलावा और ज्यादा कुछ नहीं दिखता। उन इंजीनियरों को दाद जिन्होंने सुविधाओं को करीने से समेटा है। दो कुर्सियों के बीच जगह इतनी है कि आप पाँव फैला सकते हैं, लेकिन पीठ सीधी रहेगी। कह सकते हैं कि आप चैन से सो नहीं सकते, क्योंकि कुर्सी पर पीठ सीधी करके कौन सोता है? हर कुर्सी के पीछे लेफ्ट में पानी का बोतल रखने की व्यवस्था है, मतलब आपका बोतल आपके सामने पैरों के पास रहेगा।

अत्याधुनिक टॉयलेट्सशौचालय में बायो वैक्यूम सिस्टम है, जो प्रेशर पर काम करता है। लेकिन जिन्हें अत्याधुनिक टॉयलेट्स की जानकारी नहीं है, क्षण भर के लिए उनकी स्थिति सोचनीय हो सकती है, लेकिन फ्लश दबाते ही चीजें साफ हो जाती है।

खाना ठंडा लेकिन स्वादिष्टनाश्ता मिला तो एकदम ठंडा था। लोग शिकायत करने लगे। सामने की सीट पर बैठे एक अंकल ने मैनेजर को बुलाया तो उसने माफी मांगी और अपनी मजबूरी बताई। उसका कहना था कि चीजें गरम नहीं कर पा रहे हम लोग क्योंकि खाना बाहर से आ रहा है। लोगों ने ताकीद किया कि लंच ठंडा नहीं होना चाहिए।

नाश्ते में मिली ये चीजेंइस ट्रेन में पैंट्री कार नहीं है। खाना बाहर से आता है। जैसे दिल्ली से चाय और नाश्ता मिला तो इलाहाबाद में खाने के पैकेट अपलोड हुए। आठ बजे के आसपास नाश्ता मिला था, जिसमें दो आलू के कटलेट थे और एक ब्रेड पकौड़ा की तरह था। दो फ्लेवर्ड ब्रेड थे और उसके साथ जूस और चाय-कॉफी का विकल्प।

लंच में पनीर, गुलाब जामुन, चिकन, दहीलंच में एक तंदूरी रोटी, एक कप चावल, दही, गुलाब जामुन, दाल, सब्जी, चिकन/पनीर के साथ अचार भी मिला। खाना नॉर्मल था और स्वाद भी नॉर्मल। हालांकि परोसा ठीक से गया, तो मैं थोड़ी नरमी बरत रहा हूँ।

तेज रफ्तार में नहीं होगा शोर झटकों का एहसास ट्रेन जब रफ्तार में दौड़ती है, तो आम ट्रेन के मुकाबले शोर कम होता है, लेकिन पटरियां बिदकती है तो ट्रेन खूब हिचकोले खाती है। इलाहाबाद के आगे ऐसा खूब होता है और ये बताता है कि बाबा आदम के जमाने की पटरियां बहुत ज्यादा स्पीड नहीं झेल सकतीं। ट्रेन बहुत हल्की है, राजधानी और अन्य ट्रेनों के मुकाबले स्मार्ट लगती है। बोगियों में एसी होने की वजह से सफर का बोझ पता नहीं चलता। दिल्ली से 6 बजे चली ट्रेन अगर मुझे 2 बजे तक बनारस पहुँचा देती है।

नोट: यह लेख वरिष्ठ डिजिटल पत्रकार नंदलाल शर्मा द्वारा लिखा गया है और ट्रेन की सुविधाओं और खामियों को लेकर उनके अनुभव दिल्ली से वाराणसी तक की गई यात्रा के आधार पर हैं। संभव है ट्रेन को लेकर मुसाफिरों के विचार अलग-अलग हो सकते हैं। 

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