Yogini Ekadashi 2024 Date: योगिनी एकादशी व्रत कब है? जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि-नियम और कथा
By रुस्तम राणा | Updated: June 28, 2024 14:18 IST2024-06-28T14:18:02+5:302024-06-28T14:18:02+5:30
Yogini Ekadashi 2024: शास्त्रों के अनुसार, योगिनी एकादशी व्रत विधि-विधान के साथ करने से सारे पाप मिट जाते हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि योगिनी एकादशी व्रत रखने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर का फल प्राप्त होता है।

Yogini Ekadashi 2024 Date: योगिनी एकादशी व्रत कब है? जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि-नियम और कथा
Yogini Ekadashi 2024: हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बड़ा महत्व है, इस तिथि पर एकादशी व्रत किया जाता है। मान्यता के अनुसार, यह तिथि भगवान विष्णु जी को समर्पित है। हर माह में दो बार एकादशी तिथि आती है, जिन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, योगिनी एकादशी व्रत विधि-विधान के साथ करने से सारे पाप मिट जाते हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि योगिनी एकादशी व्रत रखने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर का फल प्राप्त होता है। इस बार योगिनी एकादशी व्रत 02 जुलाई 2024, मंगलवार को रखा जाएगा।
योगिनी एकादशी शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ - 01 जुलाई को सुबह 10:26 बजे
एकादशी तिथि समाप्त - 02 जुलाई को सुबह 08:42 बजे
पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 03 जुलाई को सुबह 05:27 बजे से 07:10 बजे तक
योगिनी एकादशी की व्रत विधि
सुबह तड़के उठना चाहिए स्नान आदि कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
इसके बाद भगवान विष्णु जी को पंचामृत से स्नान करवाना चाहिए।
मंदिर की अच्छी तरह से सफाई करें और भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें।
विष्णु जी के समक्ष घी का दीपक जलाएं।
उन्हें हलवा-पूरी का भोग लगाएं।
भोग में तुलसी को अवश्य शामिल करें।
शाम को तुलसी की पूजा करें।
रात्रि में भगवान विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
सुबह व्रत पारण मुहूर्त में व्रत खोलें।
अंत में ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर विदा करें।
एकादशी व्रत तोड़ने के नियम
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है। एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिये। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिये। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिये सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिये। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिये।
योगिनी एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में अलकापुरी नगर में राजा कुबेर के यहां हेम नामक एक माली रहता था। उसका कार्य रोजाना भगवान शंकर के पूजन के लिए मानसरोवर से फूल लाना था। एक दिन उसे अपनी पत्नी के साथ स्वछन्द विहार करने के कारण फूल लाने में बहुत देर हो गई। वह दरबार में विलंब से पहुंचा। इस बात से क्रोधित होकर कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से हेम माली इधर-उधर भटकता रहा और एक दिन देवयोग से मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि ने अपने योग बल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया। तब उन्होंने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने को कहा। व्रत के प्रभाव से हेम माली का कोढ़ समाप्त हो गया और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।