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गोत्र क्या है और ये कितने प्रकार के होते हैं? एक गोत्र में शादी क्यों नहीं कर सकते?

By गुलनीत कौर | Updated: November 29, 2018 16:49 IST

पौराणिक कहानियों के मुताबिक कश्यप ऋषि ने सबसे अधिक शादियाँ की थीं। जिसकी बदौलत उनकी संतानें भी अन्य ऋषियों की तुलना में कई गुना अधिक थीं।

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हिन्दू धर्म में गोत्र को बेहद मत्ता दी जाती है। बदलते जमाने के साथ भले ही आज के मॉडर्न हो चुके युवा गोत्र को नहीं समझते और ना ही इसमें कोई रूचि रखते हैं, मगर धार्मिक कार्य करते समय गोत्र का महत्व बढ़ जाता है। खासतौर पर विवाह के समय पंडितजी वर और वधु का गोत्र जरूर पूछते हैं।  मगर ये गोत्र क्या है? गोत्र क्यों जरूरी है? और गोत्र कितने प्रकार के होते हैं? आइए जानते हैं...

गोत्र क्या है?

गोत्र संस्कृत का शब्द है जिसमें 'गो' से तात्पर्य हमारी इन्द्रियां से है और 'त्र' रक्षा को दर्शाता है। गोत्र शब्द किसी एक ऋषि की तरफ संकेत देता है। इसे हिन्दू धर्म में ऋषियों से जोड़ा जाता है। ऐसी मान्यता है कि गोत्र ऋषियों के ही वंशज हैं।

प्राचीन समय में प्रमुख रूप से चार प्रकार के ही गोत्र माने जाते थे: - वशिष्ठ- अंगीरा- भगु- कश्यप

परंतु बाद में चार और गोत्र भी उपरोक्त गोत्रों में शामिल हुए:- अत्रि- जमदग्नि- अगस्त्य- विश्वामित्र

हिन्दू धर्म में गोत्र

हिन्दू धर्म में गोत्र के महत्व की बात करें तो यह केवल एक हिन्दू की पहचान के लिए बना है। पहले के समय में गोत्र को सिर्फ ऋषियों से जोड़ा जाता था किन्तु आज के कलियुग के जमाने में यह गोत्र एक हिन्दू के वर्ग, जाति, क्षेत्र, कर्म, स्थान सभी को दर्शाता है।  

उपरोक्त बताए गए सभी गोत्र में से कश्यप गोत्र सबसे अधिक प्रसिद्ध है। क्योंकि पौराणिक कहानियों के मुताबिक कश्यप ऋषि ने सबसे अधिक शादियाँ की थीं। जिसकी बदौलत उनकी संतानें भी अन्य ऋषियों की तुलना में कई गुना अधिक थीं।

यह भी पढ़ें: शादी के दिन दूल्हा-दुल्हन इन 10 गलतियों से बचें, नहीं तो मजा हो जाएगा किरकिरा

इस तरह से उनके कई पुत्र भी थे।  इसलिए आज के जमाने में जिस भी हिन्दू को अपना गोत्र मालूम नहीं होता है वो खुद को कश्यप ऋषि का वंशज बताता है।  उसके नाम के साथ कश्यप गोत्र जुड़ जाता है।

एक ही गोत्र में विवाह क्यों नहीं?

गोत्र के संबंध में ये एक ऐसा सवाल है जो हर किसी के मन में आता है। हिन्दू धर्म में विवाह के दौरान गोत्र इसलिए भी पूछा जाता है ताकि वर और वधु दोनों ही एक गोत्र के ना हों।  एक ही गोत्र में विवाह करने की मनाही है।  

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार गोत्र का सीधा संबंध ऋषि से होता है। वह ऋषि उस गोत्र के अंतर्गत आने वाले महिला या पुरुष के पिता हैं।  यानी जितने भी लोग एक गोत्र में आते हैं वे एक दूसरे के भाई बहन हुए।  इसी वजह से सामान गोत्र में विवाह करना वर्जित माना गया है।  

पहले के जमाने में तो केवल लड़का लड़की ही नहीं, माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी का भी गोत्र देखा जाता था। किन्तु आजकल मॉडर्न हो रहे लोग केवल वर वधु के गोत्र को ही मानते हैं। कुछ तो इसे भी दरकिनार कर देते हैं। मगर हिन्दू मान्यताओं के अनुसार एक गोत्र में विवाह करना गलत होता है। 

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